डॉ. जयंतीलाल भंडारी। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने कहा कि भारत में गरीबी घटाने में डिजिटलीकरण की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि जबसे वह भारत से लौटे हैं, उनके मन में भारत की डिजिटल उपलब्धि के बारे में दुनिया को बताने के विचार बार-बार आ रहे हैं।

भारत में सिर्फ एक मोबाइल और डिजिटलीकरण माडल के उपयोग से लाखों लोगों को औपचारिक आर्थिक प्रणाली से जोड़ने में मदद मिली है। डिजिटलीकरण भारत में वित्तीय समावेशन में सहायक बनने के साथ ही लागत घटाने, अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल बनाने और सेवाओं को सस्ता करने में भी प्रभावी योगदान दे रहा है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिल रही है। ये सब भारत से मिले ऐसे डिजिटल सबक हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझा किया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की नई रिपोर्ट के अनुसार भारत में गरीबी वित्त वर्ष 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत हो गई तो इसमें डिजिटलीकरण की भी अहम भूमिका है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत में बहुआयामी गरीबी घटाने के मामले में डिजिटल व्यवस्था की सराहना की है।

नीति आयोग की तरफ से जारी बहुआयामी गरीबी इंडेक्स में कहा गया है कि पिछले नौ वर्षों में भारत में करीब 25 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आ गए है, लेकिन अभी भी भारत में करीब 15 करोड़ लोग गरीबी का सामना कर रहे हैं। बहुआयामी गरीबी कम करने में सरकार की विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं और देश में आम आदमी तक पहुंची डिजिटल सुविधाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

इसमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने अहम योगदान दिया है जिसके तहत कमजोर वर्ग के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त खाद्यान्न दिया जा रहा है। नि:संदेह गरीबी को घटाने और आम आदमी के लाभ से जुड़ा भारत का डिजिटल विकास वैश्विक मंच पर चमक रहा है। कमजोर वर्ग के 50 करोड़ से अधिक लोगों को जनधन खातों के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा गया है।

डिजिटलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने और आधार ने लीकेज को कम करते हुए लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के जरिये भुगतान में मदद की है। इस तरह वर्ष 2014 से लागू की गई डीबीटी योजना एक वरदान की तरह दिखाई दे रही है। इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी का भी कहना है कि भारत ने अपने अनोखे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और नई डिजिटल पूंजी के सहारे पिछले 10 साल में वह कर दिखाया, जो पारंपरिक तरीके से काम करने में पांच दशक लग जाते। यानी भारत ने पिछले एक दशक में मजबूत डिजिटल ढांचे से डिजिटलीकरण में एक लंबा सफर तय कर लिया है, जिससे आम आदमी सहित पूरी अर्थव्यवस्था लाभान्वित हो रही है।

कुछ अन्य प्रमुख वैश्विक अध्ययनों में भी डिजिटल अर्थव्यवस्था को भारत की नई शक्ति बताया गया है। इंडियन काउंसिल फार रिसर्च आन इंटरनेशनल इकोनमिक रिलेशंस और वैश्विक उपभोक्ता इंटरनेट समूह प्रोसेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की वैश्विक रैंकिंग में अब भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया के तीसरे नंबर का सबसे बड़ा देश बन गया है। ब्रिटेन चौथे और जर्मनी पांचवें क्रम पर हैं।

इस पर नैसकाम की चेयरपर्सन देबजानी घोष का कहना है कि प्रौद्योगिकी ने आम आदमी से लेकर सभी वर्गों के भारतीयों के दैनिक जीवन में खुद को शामिल कर लिया है। यही वास्तविक डिजिटल अर्थव्यवस्था है। एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ने डिजिटल युग में छलांग लगा दी है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट नेटवर्क वाला देश है।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार डिजिटल भुगतान में भारत विश्व रैंकिंग में शीर्ष पर है। बीते वर्ष देश में कुल डिजिटल भुगतान यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआइ) की हिस्सेदारी बढ़कर 80 प्रतिशत के करीब पहुंच गई। यूपीआइ लेनदेन की संख्या महज छह साल में 273 गुना बढ़ी है। वर्ष 2017 में 43 करोड़ यूपीआइ लेनदेन हुए थे। वर्ष 2023 में इनकी संख्या बढ़कर 11,761 करोड़ हो गई। यह एक बड़ी क्रांति है।

भारत में डिजिटल प्रौद्योगिकी को न केवल युवा अपना रहे हैं, बल्कि बुजुर्ग और गरीब वर्ग के लोग भी इसमें पीछे नहीं हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है। सरल ऋण, रोजगार सृजन, बीमा और अन्य जनकल्याण योजनाओं के लिए डिजिटल ढांचे का सफल उपयोग किया जा रहा है। इससे देश के करोड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

रिजर्व बैंक द्वारा खुदरा क्षेत्र में ब्लाकचेन तकनीक पर आधारित डिजिटल मुद्रा भी जारी की गई है। यह डिजिटल मुद्रा लोगों के बीच आपसी लेनदेन तथा लोगों और व्यापारियों के बीच लेनदेन की सुविधा देती है जिसमें डिजिटल रुपये वाले वालेट का इस्तेमाल किया जाता है। यह आशा की जानी चाहिए कि सरकार शेष 15 करोड़ गरीबों तक भी डिजिटल सुविधा की सरल पहुंच सुनिश्चित करेगी।

साथ ही भारत के आम आदमी की डिजिटल सहभागिता बढ़ाने के लिए गांवों एवं पिछड़े क्षेत्रों तक डिजिटल साक्षरता, सरल डिजिटल कौशल प्रशिक्षण, सस्ते स्मार्टफोन, इंटरनेट की निर्बाध कनेक्टिविटी और बिजली की सुगम आपूर्ति जैसी जरूरी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएंगी। इससे ही भारत वर्ष 2027 तक आम आदमी की मुस्कुराहट बढ़ाते हुए दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था तथा वर्ष 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगा।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)