आदर्श तिवारी। इस नाजुक वक्त में संघ प्रमुख द्वारा दिए गए वक्तव्य के निहितार्थ गहरे हैं। मानवता की रक्षा और देश को एक सूत्र में पिरोने के लिहाज से यह उद्बोधन यकीनन एक सार्थक पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। कोरोना वायरस के कहर के बीच चल रही बहस को संघ ने फिर एक बार उस दिशा की तरफ मोड़ दिया है, जहां मानवतावादी दृष्टिकोण की सार्थकता को बल मिलता है और मानवता विरोधी शक्तियों का दंभ छिन्नभिन्न हो जाता है।समझना आवश्यक है कि तब्लीगियों के मामले सामने आने के पश्चात सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश की गई। समाज में वैमनस्यता फैलाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

मोहन भागवत ने बिना किसी किंतु-परंतु के साफतौर पर कहा है कि 130 करोड़ का समाज भारत माता के पुत्र हैं और अपने बंधु हैं। जो पीड़ित हैं, अपने हैं हमें सबके लिए कार्य करना है। भागवत ने अपरोक्ष रूप से उन लोगों को भी निशाने पर लिया जो तब्लीगी जमात की हरकतों के कारण समूचे समुदाय पर सवाल खड़े कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर कोई गलती करे तो उसमें पूरे समूह को लपेटना और उस पूरे समाज से दूरी बनाना ठीक नहीं है। संघ प्रमुख का यह संदेश बेहद महत्वपूर्ण है।

लॉकडाउन समाप्त होने के पश्चात देश में आने वाली बड़ी चुनौतियों एवं अवसरों को भी रेखांकित करते हुए मोहन भागवत ने स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग, प्लास्टिक से मुक्ति, जल एवं वृक्षों का संरक्षण तथा जैविक खेती से होने वाले लाभ की तरफ भी सबका ध्यान आकृष्ट किया। गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जहां स्वावलंबन और आयुर्वेद ऐसे विषयों का जिक्र गंभीरता से किया। संघ प्रमुख ने भी वैसी ही नीतियों पर अपनी सहमती जताई है। अत: हमें इन विचारों से अवगत होने के पश्चात यह बात समझनी होगी कि भारत की आगे की नीति में इन बिंदुओं की झलक अवश्य देखने को मिलेगी जो संकट की घड़ी में विश्व को ही राह दिखाएगी।

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