नई दिल्ली [केनेथ जस्टर]। भारत की प्राचीन संस्कृति और समृद्ध विरासत ने हमेशा मुझे आकर्षित किया है। चाहे दुनिया की पहली नगर सभ्यता हो या विश्व के प्रमुख धर्मों और भाषाओं की जन्मभूमि से लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में योगदान, भारत को लेकर जितना कहा जाए उतना कम ही है। भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में सेवा देना बड़े ही सौभाग्य की बात है और वह भी ऐसे दौर में जब दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा का संचार हो रहा है। कम से कम पांच ऐसे आधार स्तंभ हैं जो दोनों देशों के दीर्घकालिक और सतत मजबूत होते संबंधों के लिहाज से बेहद अहम हैं।

भारत को निरंतर सहयोग देना जरूरी 

रक्षा एवं आतंक विरोधी अभियान के मोर्चे पर जुगलबंदी पहला आधार स्तंभ है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थायित्व के लिए दोनों देशों की यह साझेदारी अपरिहार्य है। इसमें भारत को निरंतर सहयोग देना भी उतना ही जरूरी है जो क्षेत्रीय सुरक्षा मुहैया कराने और किसी भी चुनौती का जवाब देने में सक्षम है। खासतौर से हिंद महासागर और उसकी परिधि के इर्द-गिर्द यह बेहद जरूरी है। महज एक दशक से भी कम अवधि में भारत-अमेरिका रक्षा व्यापार बहुत मामूली स्तर से भारी छलांग लगाकर 15 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिका ने अपने कुछ बेहद उन्नत और संवेदनशील रक्षा उपकरण भारत को बेचे हैं जो कई दूसरे देशों को नहीं दिए गए। 

साझेदारी को नए क्षितिज पर ले जाना चाहता है US

भारत की व्यापक रक्षा जरूरतों को देखते हुए अमेरिका इस साझेदारी को नए क्षितिज पर ले जाना चाहता है। इसी परिप्रेक्ष्य में ट्रंप प्रशासन ने पिछले वर्ष सी गार्जियन ड्रोन देने का एलान किया था। भारत नाटो से बाहर इकलौता देश है जिसे अमेरिका इतनी प्रभावी तकनीक दे रहा है। अधिक से अधिक रक्षा उपकरण देश में बनाने की भारत की इच्छा को समझते हुए अमेरिका इसमें पूरी मदद कर रहा है। कई दिग्गज अमेरिकी रक्षा कंपनियां भारत में महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण तैयार करने की योजना पर काम भी कर रही हैं। इसमें दोनों देशों के बीच रक्षा तकनीक एवं व्यापार पहल ने अहम भूमिका निभाई है। इसमें तकनीक हस्तांतरण के जरिये सह-उत्पादन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

सहयोग को और पुख्ता बनाएंगे दोनों देश

खुफिया जानकारी और निगरानी के मोर्चे पर भी दोनों देश सहयोग को और पुख्ता बनाएंगे। इस सहयोग की तीसरी कड़ी सैन्य विनिमय के रूप में रक्षा सहयोग के रूप में बनती है। इस सहयोग का सबसे निर्णायक पहलू आतंक के खिलाफ लड़ाई होगी। दोनों देश आतंक का वीभत्स रूप देख चुके हैं और इसके खिलाफ निरंतर लड़ाई की प्रतिबद्धता दोहरा चुके हैं। इसके लिए पिछले महीने ही भारत-अमेरिका आतंक विरोध प्रयोजन संवाद जैसी पहल भी की गई है। दोनों देशों की समान सोच है कि आतंक के किसी भी रूप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उससे हर मोर्चे पर निपटा जाएगा। आर्थिक एवं वाणिज्यिक रिश्ते दोनों देशों की साझेदारी का दूसरा आधार स्तंभ हैं। 

दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर भारत 

भारत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। ऐसे में दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों में प्रगाढ़ता स्वाभाविक है। 2001 में 20 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार 2016 में बढ़कर 115 अरब डॉलर हो गया। हम व्यापार और निवेश में विवादों को दूर कर तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं। अमेरिका फस्र्ट और मेक इन इंडिया परस्पर विरोधी नहीं। सच तो यह है कि एक-दूसरे के यहां निवेश से दोनों लाभान्वित होंगे। अब समय आ गया है कि हम अपने आर्थिक सहयोग को रणनीतिक नजरिया भी प्रदान करें-ठीक वैसे ही जैसे हमने रक्षा क्षेत्र में किया है। वर्तमान में तमाम अमेरिकी कंपनियां इस क्षेत्र के सबसे बड़े बाजार-चीन में समस्याओं से दो-चार हो रही हैं। इसके चलते कुछ अमेरिकी कंपनियां वहां अपनी गतिविधियां कम कर रही हैं तो कुछ दूसरे विकल्प की तलाश में हैं। भारत को इस क्षेत्र में अमेरिका का वैकल्पिक व्यापारिक गढ़ बनकर रणनीतिक लाभ उठाना चाहिए। दोनों देशों की साझेदारी भारत-अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते की बुनियाद भी रख सकती है।

सामरिक सहयोग का तीसरा आधार स्तंभ

ऊर्जा एवं पर्यावरण का मुद्दा दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग का तीसरा आधार स्तंभ है। भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था, आबादी और मध्यवर्ग के आकार एवं शहरीकरण को देखते हुए उसे सतत और समावेशी विकास के लिए आने वाले वर्षों में उसे ऊर्जा की भारी जरूरत होगी। इसे देखते हुए अमेरिका भारत के साथ एक समग्र ऊर्जा सहयोग स्थापित करने का इच्छुक है। इसमें ऊर्जा के सभी रूप शामिल हैं। जैसे कोयला, कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा आदि। भारत को अपने घरेलू स्तर पर ऊर्जा के स्रोतों के विकास और उत्थान के लिए भी अमेरिका जरूरी सेवाएं, तकनीक और ढांचा मुहैया करना चाहता है। इसके लिए जल्द ही अमेरिका-भारत सामरिक ऊर्जा साझेदारी का आयोजन किया जाना है।

पर्यावरण के मुद्दे पर सहयोग

पर्यावरण के मुद्दे पर भी हमारा सहयोग समुद्र से लेकर तटीय क्षेत्रों तक फैला है। हमारे सहयोग का चौथा आधार स्तंभ दोनों देश के लोगों के कल्याण से जुड़ा है। इसमें विज्ञान, तकनीक और स्वास्थ्य शामिल हैं। अमेरिका-भारत विज्ञान और तकनीकी प्रोत्साहन कोष आधुनिक हेल्थकेयर, पर्यावरण की उन्नति और कृषि के  आधुनिकीकरण सहित इनोवेटिव परियोजनाओं को बढ़ावा देने का काम करता है। पृथ्वी के बाहर अंतरिक्ष में भी नासा और इसरो के वैज्ञानिक मिलकर काम कर रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो हमारा सहयोग सीमाओं से परे है। स्वास्थ्य का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण है। हमने मिलकर रोटावायरस के लिए पहले स्वदेशी भारतीय टीके का निर्माण किया है। अब हम टीबी, डेंगू और अन्य उभरती बीमारियों के लिए मिलकर टीके का ईजाद कर रहे हैं। 

साझेदारी का पांचवां आधार स्तंभ 

दोनों देशों की सामरिक साझेदारी का पांचवां आधार स्तंभ स्थिरता और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय सहयोग पर आधारित है। पहला क्षेत्र अफगानिस्तान है जहां शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए हम मिलकर प्रयास कर रहे हैं। दूसरा क्षेत्र जापान और ऑस्टे्रलिया सहित इलाके में समान सोच वाले देशों के साथ बहुपक्षीय गतिविधियों को बढ़ावा देने से जुड़ा है। हमने कुछ समय पहले ही जापान के साथ मालाबार नौसैनिक अभ्यास किया है और उसके साथ त्रिपक्षीय वार्ता की संभावना भी आकार लेती दिख रही है। यही नहीं, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुष्कोणीय साझेदारी की नींव रख दी गई है। इस कड़ी में अंतिम क्षेत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत से संबंधित है।

भरोसा और निरंतरता बनाए रखनी होगी

कुल मिलाकर भारत-अमेरिका की साझेदारी न सिर्फ दोनों देशों, बल्कि दुनिया को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाली साबित होगी। इसके माध्यम से हम अपने लोगों के लिए सुरक्षा और समृद्धि का लक्ष्य बखूबी हासिल कर सकते हैं। यह संभव है, बस हमें एक-दूसरे के प्रति स्वीकार्यता, भरोसा और निरंतरता बनाए रखनी होगी। 

(भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर के नई दिल्ली में दिए गए संबोधन का संपादित अंश) 

केनेथ जस्टर