यमुना की सफाई पर बहा दिए करोड़ों पर नतीजा रहा सिफर, मैली होने का ये है बड़ा कारण
यमुना की सफाई को लेकर दिल्ली सरकार की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जल बोर्ड सात सालों में इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण तक पूरा नहीं कर सका।
नई दिल्ली [जेएनएन]। यमुना की सफाई के लिए योजनाएं बहुत बनीं, करीब तीन हजार करोड़ रुपये खर्च भी हो चुके हैं, मगर फिर भी इसे स्वच्छ नहीं किया जा सका है। योजनाओं के पूरी तरह से धरातल पर लागू नहीं हो पाने और दिल्ली के करीब 50 फीसद इलाके में सीवरेज नेटवर्क नहीं होने के कारण यह मैली बनी हुई है। वहीं, यमुना की सफाई को लेकर दिल्ली सरकार की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जल बोर्ड सात सालों में इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण तक पूरा नहीं कर सका।
यमुना में प्रदूषण की मात्रा कम हो जाएगी
असल में जिन इलाकों में सीवर लाइन नहीं है, उनका सीवरेज बरसाती नालों के जरिये यमुना में गिरता है। माना जाता है कि यमुना में अधिक प्रदूषण नजफगढ़, सप्लीमेंट्री व शाहदरा ड्रेन से पहुंचता है। इसलिए इन तीनों नालों के किनारे 59 किमी लंबी इंटरसेप्टर सीवर लाइन बनाने का काम जुलाई 2011 में शुरू हुआ था। करीब 1962 करोड़ की लागत से इस परियोजना को 2014 में पूरा किया जाना था, मगर अब तक इसे पूरा नहीं किया जा सका है। हालांकि, अब दिसंबर 2018 तक इसे पूरा करने का दावा किया जा रहा है। जल बोर्ड का मानना है कि इस परियोजना के पूरा होने से यमुना में प्रदूषण की मात्रा काफी हद तक कम हो जाएगी।
परियोजना जो पूरी नहीं हुई
एनजीटी के निर्देश पर छोटे नालों के सीवर युक्त गंदे पानी की सफाई के लिए जल बोर्ड ने 14 सीवरेज शोधन संयंत्र बनाने की योजना बनाई थी, जिसे 2017 तक पूरा करने का निर्देश था। इस पर जल बोर्ड अमल नहीं कर सका। हालांकि, जल बोर्ड छोटे सीवरेज संयंत्र बनाने की योजना पर काम कर रहा है। यमुना एक्शन प्लान तीन के तहत 1600 करोड़ की योजना यमुना एक्शन प्लान तीन के तहत नदी की सफाई के लिए 1600 करोड़ की योजना है। इसमें से 800 करोड़ की परियोजना का शुभारंभ मई 2016 में हुआ था। इसके तहत तीन ट्रंक सीवर लाइनों के जीर्णोंद्धार व आइटीओ के पास यमुना घाट को आकर्षक बनाने का काम शामिल था।
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