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पत्रकार वार्ता में दिखी सिद्धू की 'धीमी बल्लेबाजी', नहीं खोले सियासी पत्ते

नवजोत सिंह सिद्धू ने आखिरकार अपनी खामोशी तोड़ी और भाजपा पर हमला किया, लेकिन साथ ही अपने अगले कदम को लेकर पत्ते नहीं खोले।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 26 Jul 2016 09:18 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jul 2016 11:38 AM (IST)
पत्रकार वार्ता में दिखी सिद्धू की 'धीमी बल्लेबाजी', नहीं खोले सियासी पत्ते

नई दिल्ली (आशुतोष झा)। राज्यसभा से इस्तीफा देकर राजनीतिक छक्का जड़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू अब खुद ही भ्रमित दिखने लगे हैं कि बॉल सीमा रेखा से पार गई थी या नहीं। जो भी हो फिलहाल यह दिखने लगा है कि उनका निशाना सही नहीं बैठा।

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असमंजस में सिद्धू

आम आदमी पार्टी की ओर से कोई ठोस आश्वासन न मिलने के कारण वह आज भी उतने ही असमंजस में हैं जितना पहले थे। उनके सामने ऐसी कोई स्पष्ट राह नहीं दिख रही है जिसकी वह खुलेआम घोषणा कर सकें।

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नया कुछ नहीं कहा

कुछ दिनों की चुप्पी के बाद सिद्धू सोमवार को दिल्ली में पत्रकारों से रूबरू हुए, लेकिन कहने को कुछ खास नहीं था। वह उतना ही बोले जितना पहले भी लिखा जाता रहा है।

पंजाब से दूर रहने को कहा गया था

उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव में अमृतसर से टिकट न दिए जाने का उलाहना दिया और खुलासा किया कि उन्होंने इस्तीफा इसलिए दिया कि उन्हें पंजाब से दूर रहने को कहा गया था। सिद्धू इसका जवाब देने के लिए भी नहीं रुके कि भाजपा ने उन्हें न केवल राज्यसभा में भेजा था, बल्कि वह शुरू से पंजाब भाजपा कोर ग्रुप के सदस्य भी थे।

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आज के दिन भी वह उस कोर ग्रुप के सदस्य हैं जो प्रदेश से संबंधित रणनीतियों पर फैसले लेती है, बल्कि सूत्रों का तो यह कहना है कि अकालियों से रिश्ता तोड़ने की शर्त रखकर वह पिछले ढाई-तीन साल से कोर ग्रुप में नहीं जा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि जो सिद्धू लगातार भाजपा पर अंगुली उठा रहे हैं उसने पार्टी से नाता तोड़ने की औपचारिक घोषणा क्यों नहीं की है?

जाहिर है कि वह असमंजस में हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से खुलकर कहा गया है कि उनके संगठन में हर कोई आम आदमी की तरह आता है। किसी एक सदस्य ने तो यह भी कहा कि वह आप में आते हैं तो अभी चुनाव लड़ने को नहीं मिलेगा।

सूत्र बताते हैं कि इन घटनाओं के बारे में शायद सिद्धू ने पहले सोचा ही नहीं था। वैसे भी रायसभा से इस्तीफे के तत्काल बाद वह जिस तरह पंजाब में लहर पैदा करने में सफल हुए थे, पिछले पांच-सात दिनों में वह ठंडा पड़ गया है। शायद दिल्ली आकर सिद्धू ने उसे ही फिर से उभारने की कोशिश की है।

सोमवार को भी उन्होंने पंजाब की सेवा की ही रट लगाई, लेकिन उतनी ही बार अमृतसर का भी नाम दोहराते रहे। जो भी हो फिलहाल यह यह स्पष्ट नहीं है कि पंजाब में रहकर पंजाब की सेवा करना चाहते हैं या फिर दिल्ली में रहकर।


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