Delhi: इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाना चाहता है दोस्त, रोकने के लिए महिला ने दिल्ली HC में लगाई गुहार
Euthanasia केरल की रहने वाली एक महिला ने अपने करीबी दोस्त को यूरोप जाने से रोकने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई है। महिला का कहना है कि उसका दोस्त स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में इच्छामृत्यु के लिए जाना चाहता है।
नई दिल्ली, एजेंसी। दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में एक इच्छामृत्यु से जुड़ा मामला पहुंचा है। नोएडा का रहने वाला एक 48 वर्षीय शख्स इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जा रहा है, जिसे रोकने के लिए केरल की रहने वाली एक दोस्त ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शख्स बीमारी से तंग आकर इच्छामृत्यु (Euthanasia) (चिकित्सक द्वारा सहायता प्राप्त आत्महत्या) के लिए जाना चाहता है।
न्यूज एजेंसी आइएएनएस के अनुसार, एडवोकेट सुभाष चंद्रन केआर ने याचिका दायर कर कहा है कि शख्स मायलजिक एन्सेफेलोमाइलाइटिस/क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (Myalgic encephalomyelitis/Chronic Fatigue Syndrome) बीमारी से ग्रसित है। इस बीमारी के कारण व्यक्ति हमेशा थकान बने रहने की स्थिति में रहता है।
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क्या है यह बीमारी और लक्षण
जिन लोगों को क्रोनिक फटीग सिंड्रोम है, उनके लिए भी एक ही समय में अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होना आम बात है। जैसे कि नींद संबंधी विकार, चिड़चिड़ापन, फाइब्रोमायल्गिया, अवसाद या चिंता।
8 साल में शख्स की हालत हुई बेहद खराब
याचिका में कहा गया है कि शख्स में बीमारी के लक्षण 2014 में शुरू हुए और पिछले आठ सालों में उसकी हालत बिगड़ती चली गई। वह अब पूरी तरह से बिस्तर से बंधा हुआ है। वह एक कदम भी चलने में असमर्थ है।
ज्यूरिख में लेगा इच्छामृत्यु
आखिरकार उसने स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में एक संगठन डिग्निटास के जरिए इच्छामृत्यु का फैसला लिया। जो चिकित्सक की सहायता से आत्महत्या प्रदान करता है। इसी साल उसने जून में ज्यूरिख की मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के लिए यात्रा की थी।
इच्छामृत्यु देने वाली संस्था ने स्वीकार किया आवेदन
याचिकाकर्ता द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, उनके आवेदन को डिग्निटास संस्धा द्वारा स्वीकार कर लिया गया था। जहां पहले मूल्यांकन को भी मंजूरी दे दी गई थी और इस साल अगस्त के अंत तक अंतिम निर्णय का इंतजार है। कोर्ट में मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होगी।
भारत में सुप्रीम कोर्ट ने दिया इच्छामृत्यु का हक (Euthanasia right in India)
सुप्रीम कोर्ट ने सम्मान से मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए भारत के लोगों को जिंदगी की वसीयत (लिविंग विल) में इच्छामृत्यु का हक 2018 में दे दिया था। उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति को निष्क्रिय इच्छामृत्यु का कानूनी अधिकार प्रदान कर दिया है। दूरगामी परिणामों वाला यह ऐतिहासिक फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया था।
कोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले सम्मान से जीवन जीने के अधिकार में सम्मान से मरने का अधिकार शामिल है। बेल्जियम, लग्जमबर्ग, हॉलैंड, स्विटजरलैंड, जर्मनी और अमेरिका के ओरेगन और वाशिंगटन राज्यों में इसको कानूनी मान्यता मिली हुई है।
कौन कर सकता है जिंदगी की वसीयत
जिंदगी की वसीयत में इच्छामृत्यु की घोषणा करने वाला व्यक्ति वयस्क स्वस्थ चित्त का होना चाहिए। वह ऐसी घोषणा करने के परिणामों को समझने की स्थिति में भी होना चाहिए। घोषणा स्वैच्छिक बिना किसी दबाव व प्रलोभन के होनी चाहिए। घोषणा लिखित और स्पष्ट होनी चाहिए। उसमें लिखा होना चाहिए कि कब उसका इलाज रोक दिया जायगा या उसे ऐसा कोई विशेष इलाज नहीं दिया जाएगा जो कि उसकी मृत्यु की प्रक्रिया में देरी करे और उसके कष्टों को बढ़ाए।
इच्छामृत्यु दो प्रकार की होती है (Types of Euthanasia)
पैसिव यूथेनेसिया या निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia)
जीवन रक्षण प्रणाली को हटाकर प्राकृतिक रूप से मौत के लिए छोड़ दिया जाता है। दवाएं बंद कर दी जाती हैं। खाना और पानी बंद कर दिया जाता है।
एक्टिव यूथेनेसिया या सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia)
मौत के लिए सीधे कदम उठाए जाते हैं। इसमें जहरीला इंजेक्शन भी शामिल हो सकता है।