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सांस्कृतिक हमलावरों को सम्मान पर सवाल, मुगल आक्रांता हुमायूं के नाम से सड़क और मुहल्ला बना दिया

भारतीय इतिहासकारों ने बाबरनामा हुमायूंनामा और अकबरनामा को आधार बनाकर लिखा। ये सब आत्मकथाएं या जीवनियां थीं। इनका स्त्रोत के तौर पर उपयोग किया जा सकता था लेकिन इसको इतिहास लेखन का आधार बनाने से इतिहास दोषपूर्ण हो गया।

By Jp YadavEdited By: Published: Sat, 11 Sep 2021 09:35 AM (IST)Updated: Sat, 11 Sep 2021 09:35 AM (IST)
सांस्कृतिक हमलावरों को सम्मान पर सवाल, मुगल आक्रांता हुमायूं के नाम से सड़क और मुहल्ला बना दिया
सांस्कृतिक हमलावरों को सम्मान पर सवाल, मुगल आक्रांता हुमायूं के नाम से सड़क और मुहल्ला बना दिया

नई दिल्ली [अनंत विजय]। नई दिल्ली में एक सड़क है जिसका नाम है हुमायूं रोड। ये सड़क करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी है और दिल्ली के पाश इलाकों को जोड़ती है। इंडिया गेट से सुजान सिंह पार्क या खान मार्केट जाना हो तो हुमायूं रोड होकर ही जाया जाता है। हिंदुस्तान में मुगल सल्तनत की स्थापना करने वाले बाबर का बेटा है हुमायूं। मध्यकाल पर लिखने वाले इतिहासकारों ने हुमायूं पर बहुत उदारता के साथ लिखा है। 1970 के बाद के वर्षों में रूस के कई प्रकाशन गृहों ने इस तरह की पुस्तकें प्रकाशित कीं, जिनमें मुगल बादशाहों का महिमामंडन किया गया था। उनको बहुत कम दाम पर बेचा भी जाता था ताकि अधिक से अधिक लोग खरीद कर पढ़ सकें। इनमें प्रगति प्रकाशन और रादुगा प्रकाशन प्रमुख थे।

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मुगलकाल के इतिहास पर लिखते हुए भारतीय इतिहासकारों ने बाबरनामा, हुमायूंनामा और अकबरनामा को आधार बनाकर लिखा। ये सब आत्मकथाएं या जीवनियां थीं। इनका स्त्रोत के तौर पर उपयोग किया जा सकता था लेकिन इसको इतिहास लेखन का आधार बनाने से इतिहास दोषपूर्ण हो गया। कालखंड विशेष का समग्र मूल्यांकन नहीं हो पाया। परिणाम यह हुआ कि हमारे देश पर आक्रमण करने वाले, हजारों लोगों का कत्ल कर अपने सल्तनत की स्थापना करने वालों, देश की सांस्कृतिक परंपराओं को नष्ट करने वालों के प्रति उदारता का भाव पैदा होने लगा। इसी उदारता की वजह से मुगल आक्रांता हुमायूं के नाम से सड़क और मुहल्ला बना दिया गया।

अपने पिता की मौत के बाद जब हुमायूं दिल्ली की गद्दी पर बैठा था तो कई युद्धों के बावजूद सल्तनत नहीं बचा सका था। शेरशाह सूरी से हारने के बाद वो फारस भाग गया था। कई वर्षों बाद फारस के सैनिकों के साथ उसने फिर से दिल्ली सल्तनत पर कब्जा किया। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने भले ही हिंदुस्तान में मुगल सल्तनत की स्थापना की लेकिन उसके बेटे हुमायूं ने सांस्कृतिक सल्तनत का बीजारोपण किया। जब हुमायूं दूसरी बार दिल्ली की गद्दी पर बैठा तब उसने भारत में फारसी कलाओं को बढ़ाना आरंभ किया। उसने फारसी वास्तुकला, चित्रकला, स्थापत्य कला आदि को प्राथमिकता देना आरंभ किया। इसके लिए फारस के वास्तुविद, चित्रकार आदि हिंदुस्तान बुलाए गए। ये हुमायूं का हिंदुस्तान पर सांस्कृतिक हमला था। समय के साथ मुगल सल्तनत का भले ही अंत हो गया लेकिन जिस सांस्कृतिक सल्तनत की स्थापना हुमायूं ने की थी वो अब भी हमारे देश में चल रही है। आज भी मुगल जायका से लेकर मुगल स्थापत्य कला और मुगल चित्रकला तक जीवित हैं, रहें, पर उस आक्रांता के नाम पर सड़क का नाम क्यों है जिसने भारत की संस्कृति को बदलने का काम किया।

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