मिसाल : घरेलू हिंसा की शिकार बेसहारा महिलाओं का सहारा बनीं विनीता शिखर
Vinita Shikhar बचपन में ही अपनी मां क्षमा कुशवाहा के सामाजिक कार्यों को देख कर उनसे प्रभावित हुईं विनीता शिखर भी अपनी मां के पदचिन्हों पर चलते हुए गरीब-बेसहारा महिलाओं और बच्चों को सहारा देने में लगी हैं।
नई दिल्ली [राहुल चौहान]। अगर बचपन में घर से ही समाजसेवा करने की सीख मिले तो व्यक्ति पर उसका प्रभाव जरूर पड़ता है और ऐसे लोग आगे चलकर समाजसेवा से जरूर जुड़ते हैं। इसी तरह बचपन में अपनी मां क्षमा कुशवाहा के सामाजिक कार्यों को देखकर उनसे प्रभावित हुईं विनीता शिखर भी अपनी मां के पदचिन्हों पर चलते हुए गरीब-बेसहारा महिलाओं और बच्चों को सहारा देने में लगी हैं। पेशे से टेक्सटाइल डिजाइनर शिखर का अपना कपड़े के परिधानों को डिजाइन करके निर्यात करने का व्यवसाय है।
विनीता शिखर ने छतरपुर के पास अंधेरिया मोड़ पर अपने खर्चे पर स्लम के बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था की है। यहां शाम को चार से छह बजे तक वह स्लम के 50-60 बच्चों को नि:शुल्क ट्यूशन दिलाती हैं। इसके लिए वह शिक्षकों को खुद वेतन देती हैं। साथ ही इन बच्चों को सप्ताह में चार दिन दूध और तीन दिन फल भी वितरित करती हैं। वहीं अपनी कंपनी में आयानगर व आसपास के इलाके की गरीब और बेरोजगार महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं। इसके साथ ही वह सामाजिक संस्था महिला दक्षता समिति के कड़कड़डूमा स्थित आश्रयगृह में रहने वाली घरेलू हिंसा की शिकार व घर से भटकी हुईं बेसहारा महिलाओं की भी व्यक्तिगत तौर पर मदद करती हैं। वह इनके खाने की व्यवस्था और रखरखाव का भी पूरा ध्यान रखती हैं।
वहीं जिन महिलाओं की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती है उनकी काउंसलिंग और उपचार की भी व्यवस्था करती हैं। प्रत्येक त्योहार के अवसर पर वह एक दिन पहले आश्रयगृह की महिलाओं और स्लम के बच्चों को अपने घर से खाना लाकर खिलाती हैं और उनके साथ त्योहार मनाती हैं। विनीता शिखर कहती हैं कि पति सेना में अधिकारी रहे हैं उनसे भी देश और समाजसेवा की प्रेरणा मिलती रही है। इसलिए उन्हें बेसहारा और जरूरतमंदों की मदद करके एक अलग ही खुशी मिलती है।
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