80 साल की शीला दीक्षित के सामने ये हैं 8 चुनौतियां, पढ़िए- क्या है सबसे बड़ा चैलेंज
15 साल तक बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली पर राज करने वाली शीला दीक्षित के लिए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) के अध्यक्ष का पद कांटों भरा ताज है। सबसे बड़ा चैलेंज 2019 का लोस चुनाव है
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित ने बुधवार को एक समारोह के दौरान अपनी पूरी ताकत का प्रदर्शन करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) की नई अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाल लिया। 15 साल तक बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली पर एकछत्र राज करने वाली शीला दीक्षित के लिए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) के अध्यक्ष का पद कांटों भरा ताज है।
आइए जानते हैं मार्च महीने में 80 साल की होने जा रहीं शीला दीक्षित के सामने कौन सी 8 बड़ी चुनौती है, जिनसे उबरना उनके लिए मुश्किल भरा होगा। इन चुनौतियों का शीला दीक्षित ने डटकर सामना किया और विजय हासिल की तो किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
एक. 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस ने सभी सातों लोकसभा सीटें गंवा दी थीं। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में 90 दिन से भी कम समय बचा है। ऐसे में शीला दीक्षित को आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सम्मानजनक सीट दिलानी होगी या वोट फीसद में इजाफा करना होगा।
दो. 2015 में 70 विधानसभा सीट में से 0 (शून्य) पर सिमटने वाली कांग्रेस का दिल्ली में जनाधार बिखर गया है, उसे फिर से वापस लाना होगा। खासकर आम आदमी पार्टी के पास कांग्रेसी मतदाताओं को वापस लाना बड़ा मुश्किल काम होगा।
तीन. शीला और उनके साथ जुड़ी तीन सदस्यीय टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती सबको साथ लेकर चलने की भी है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी में कई गुट हैं। ऐसे में शीला दीक्षित को आपसी भेदभाव भुलाने की सीख देकर सबको तेजी से अपने साथ जोड़ना होगा।
चार. शीला का दिल्ली का मुख्यमंत्री रहने के दौरान से अजय माकन से उनका 36 का आंकड़ा रहा है। यही वजह है कि अजय माकन को शीला के साथ काफी मशक्कत के बाद पत्रकार वार्ता भी करनी पड़ी थी। इसके बाद भी शीला दीक्षित कई बार अजय माकन पर कई अप्रत्यक्ष हमले कर चुकी हैं। ऐसे में अजय माकन के लोगों के साथ भी सामंजस्य बिठाना होगा।
पांच. कभी अपने सांगठनिक ताकत को वोटों में तब्दील करवाने वाली शीला दीक्षित के सामने सबसे बड़ी चुनौती चुनावी साल में सुस्त पड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय करना है। ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में शीला दीक्षित जीवन की सबसे बड़ी हार देखनी पड़ सकती है।
छह. आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन को लेकर अजय माकन की साफ तौर नाराजगी है और शीला भी इसी दिशा में जाती दिखाई पड़ रही हैं। ऐसे में आलाकमान के निर्देश पर AAP के साथ गठबंधन करना पड़ा और फिर इसे धरातल पर उतारना ही पड़ा तो यह शीला दीक्षित के लिए सबसे कठिन फैसला और दौर होगा।
सात. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने से पहले ही शीला दीक्षित कह चुकी हैं कि राजनीति चुनौतियों से भरी है, हम उसके ही आगे की रणनीति बनाएंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) दोनों एक चुनौती हैं और हम मिलकर इन चुनौतियों का सामना करेंगे। आप के साथ गठबंधन पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है शीला के साथ AAP-और भाजपा बड़ी ताकत हैं और इनसे पार पाने का उपाय ढूंढ़ना होगा।
आठ. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा, रामाकांत गोस्वामी, मंगतराम सिंघल जैसे नेताओं को फिर से सक्रिय करना भी शीला के लिए थोड़ा मुश्किल होगा। इसी तरह एके वालिया, किरण वालिया, योगानंद शास्त्री, संदीप दीक्षित भी सक्रिय भूमिका में दिख सकते हैं।
यहां पर बता दें कि बुधवार को दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित विधिवत रूप से पार्टी दफ्तर जाकर नई अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। इस दौरान पार्टी के जहां तमाम वरिष्ठ नेताओं के साथ उनके पूर्व सहयोगी भी साथ दिखे।
वहीं, जगदीश टाइटलर भी कार्यक्रम में पहुंचे थे। इसको लेकर थोड़ा विवाद भी हुआ। इसी के साथ दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) के दफ्तर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में शीला के साथ ही नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्षों- देवेंद्र यादव, राजेश लिलोठिया और हारून यूसुफ ने भी कार्यभार संभाल लिया है।
शीला दीक्षित के लिए यह अच्छी बात रही कि उनके कार्यभार संभालने के मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह, जनार्दन द्विवेदी, अजय माकन, पीसी चाको और संदीप दीक्षित भी मौजूद थे।
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