चेहरे पर मुस्कान और दिल में उत्साह हर मर्ज की दवा, आते हैं सकारात्मक विचार
चेहरे पर मुस्कान और दिल में उत्साह हर मर्ज की दवा है। मुस्कान से बढ़िया वैक्सीन और भला क्या होगी? मुस्कराने का मतलब सिर्फ भाव बदलना नहीं। अगर चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट हो तो सकारात्मकता उभर कर आती है और हर कोई आपसे बात करके खुश होना चाहता है...
नई दिल्ली, यशा माथुर। मुस्कान रूपी वैक्सीन कोरोना से तो नहीं, लेकिन हर दम दुख का रोना रोते रहने से जरूर निजात दिलाती है। जिन महिलाओं ने इसकी डोज ली है वे अपनी मेहनत से न केवल खुद खुश हैं, बल्कि हजारों के भीतर खुशी भर रही हैं।
अवसाद से लड़ाई : किसी के चेहरे पर मुस्कराहट केवल इसलिए नहीं होती कि उनकी जिंदगी में खुशियां ज्यादा हैं, बल्कि इसलिए होती है, क्योंकि उनकी मुस्कान जिंदगी से न हारने का एक वादा होती है। अभिनेत्री दीपिका पादुकोण सिनेमा जगत की एक जानी-मानी हस्ती हैं। ग्लैमर और अदाकारी दोनों है उनमें, लेकिन बहुत कम उम्र में दीपिका ने डिप्रेशन जैसी गंभीर स्थिति का सामना किया था। जब वह इससे बाहर आईं तो उन्होंने देश में डिप्रेशन के मरीजों को सहायता प्रदान करने और इस मानसिक बीमारी के बारे में जागरूक करने के लिए एक फाउंडेशन बनाया जिसे नाम दिया द लिव, लव एंड लाफ फाउंडेशन। इन दिनों उनका फाउंडेशन अवसाद से लड़ने के लिए तेजी से आगे आ रहा है।
दीपिका के इस फाउंडेशन की कमान उनकी बहन एवं पेशेवर गोल्फर अनीशा पादुकोण ने संभाल रखी है। अपने इस फाउंडेशन की गतिविधियां बताते हुए दीपिका कहती हैं, हम डॉक्टर्स को प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम करते हैं। हम जनरल प्रैक्टिशनर्स के लिए सेशन करवाते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि वे ही बचाव की पहली सीढ़ी हैं। स्ट्रेस, एंजायटी और डिप्रेशन के दौरान लोगों को फिजिकल लक्षण दिखाई देते हैं और वे इसके लिए जनरल प्रैक्टिशनर के पास जाते हैं, जो उनका इलाज भी करते हैं, लेकिन वे भी इन लक्षणों को मानसिक बीमारी से जोड़कर नहीं देखते हैं। जब वे हमारे साथ दो से तीन सप्ताह का कोर्स करते हैं तो हम उन्हें फिजिकल और मेंटल हेल्थ के बीच संबंध बताते हैं।
अच्छा करने की मंशा : दूसरों के दुखों के मुकाबले खुद को खुशनसीब समझना, सकारात्मक सोच के साथ दूसरों की मदद के लिए आगे आना भी होंठों पर मुस्कान ले आता है। खुद पर एसिड अटैक के बाद अस्पताल में ठीक से चल नहीं पाती थीं प्रज्ञा सिंह, लेकिन धीरे-धीरे अन्य मरीजों के पास जातीं और कहतीं कि तुम एक्सरसाइज करोगे तो ठीक हो जाओगे। वह मरीजों को मोटिवेट करतीं और उनमें पॉजिटिव रिजल्ट देखतीं। धीरे-धीरे वे खाने लगते और फिजियोथेरेपी करवाने लगते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता। फिर चेन्नई की एक डॉक्टर उन्हें अपने रोगियों से मिलवाने लगीं और कांफ्रेंस में बुलाने लगीं।
प्रज्ञा कहती हैं, बन्र्स वार्ड में इतना दुख देखा कि मुझे लगा शायद भगवान मुझे इस तरह का अनुभव इसलिए करवा रहे हैं कि मुझे इनके लिए कुछ अच्छा करना है साथ ही इनकी मदद करनी है। मैंने एक गैर सरकारी संस्था अतिजीवन फाउंडेशन शुरू किया और सर्वाइवर्स की सर्जरी करवाना, उनको पढ़ाना, स्किल ट्रेनिंग देना शुरू किया ताकि वे अपना जीवन सम्मान से जी सकें। आज बहुत सारे सर्वाइवर्स नौकरी कर रहे हैं, जो नौकरी नहीं कर सकते उनकी छोटी दुकानें भी खुलवाईं। मुझे लगता है कि वित्तीय आत्मनिर्भरता से इनका आत्मविश्वास बना रहेगा और इन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ेगी।
सीख निडर बनने की : अगर मुस्कान को हम रोज का कायदा बना लें और अपनी आदत में शुमार कर लें तो बहुत सी जिंदगियों में मुस्कान बिखेर सकते हैं। बॉलीवुड में आठ साल तक लगातार कोशिश करने के बावजूद सफलता नहीं मिलने पर भी अपने चेहरे को मायूस नहीं होने दिया जर्मनी से भारत आईं अनिशा दीक्षित ने। उन्होंने अपना खुद का यू-ट्यूब चैनल बनाया और लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का जिम्मा उठा लिया। अनिशा सिर्फ कॉमेडी कंटेंट ही बनाती हैं। उनके चैनल का नाम ही रिक्शावाली है। अनिशा कहती हैं, मैं एक दिन रिक्शे में बैठी और सेल्फी लेने लगी। वो शॉट बहुत अच्छा आया। गुलाबी रिक्शा था, कोई रिक्शावाला नहीं, बल्कि मैं रिक्शावाली थी यहां। मैंने सोचा कि रिक्शे के अंदर ही कुछ बनाते हैं। यह रिक्शा एक छोटे स्टूडियो जैसा लगा मुझे। इसके बाद मैंने एक अच्छा रिक्शा ढूंढ़ा। एक घंटे के लिए किराए पर लिया। फिर रिक्शा सजाया। कुछ खिलौने रखे और अपना आई फोन बीच में टांगा और कैमरे पर बोलने लगी। पहले वीडियो पर 10 व्यूज आए तो मैं उछल पड़ी। फिर लोग मुझसे जुड़ते गए और मैं एक रिक्शावाली बन गई। वह कहती हैं, लोग क्या कहेंगे के बारे में न सोचकर, अपने आपको मजबूत और निडर बनाओ। कोशिश करो कि आप जो करना चाहती हैं वो करो। अगर हम अपने आपको कांफिडेंस नहीं देंगे तो कौन देगा?
मन के काम से आए मुस्कान : महिलाएं कुछ ऐसे काम भी करती हैं कि न केवल वे स्वयं उल्लास से भरी रहती हैं, बल्कि उनके काम पर घर, समाज यहां तक कि पर्यावरण भी मुस्कराता है। क्रिएटिव डिजाइनर और डूडलएज की को-फाउंडर कृति तुला ने अपना ब्रांड सस्टेनेबल फैशन को लेकर शुरू किया था। उन्होंने लोगों के छोड़े गए कपड़ों से अपना काम शुरू किया। वह बड़ी इकाईयों से वेस्ट खरीदती हैं और उन्हें री-डिजाइन, री-कंस्ट्रक्ट और री-साइकल करके अपना कलेक्शन बनाती हैं। पुराने स्टॉक, प्रिंट और एक्सपोर्ट में रिजेक्ट किए गए मैटेरियल से भी वह एक्सक्लूसिव पीस बनाती हैं। कृति कहती हैं, मैंने फैशन इंडस्ट्री के वेस्ट से ही अपने कलेक्शन बनाए हैं। हम फैशन मैन्युफैक्चरिंग में वेस्टेज की अनदेखी नहीं कर सकते। हमें इंडस्ट्री के वेस्ट की रिसाइकल करनी होगी। बड़े ब्रांड्स को भी वह फैब्रिक खरीदना होगा, जो रिसाइकल हो सके। आज के दौर में यह बहुत जरूरी है। जितना भी फैब्रिक बने उसका आखिर तक प्रयोग हो।
हम ज्यादातर नेचुरल फाइबर ही अपसाइकल करते हैं। पैच वर्क पर हाथ की कढ़ाई कराती हूं ताकि कारीगरों को भी काम मिले। जितना भी फैब्रिक हम आज तक बना चुके हैं अब हमें उसे रिसाइकल करना है। दरअसल कृति ने कॉलेज की इंटर्नशिप के दौरान जब देखा कि किस तरह खराब गार्मेंट्स फेंक दिए जाते हैं तब उन्होंने सस्टेनेबल फैशन अपनाने का फैसला लिया। आज वह खरीदारों से विनती करती हैं कि कपड़े कम खरीदें और ज्यादा पहनें। कपड़े जल्दी पहनना छोड़ देने से पर्यावरण के स्रोतों पर भी काफी दबाव आता है।
आते हैं सकारात्मक विचार : कोरोना के दौर में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने भी मुस्कराने की सलाह दी है। उनकी हालिया रिसर्च बताती है कि मुस्कराने पर मस्तिष्क में सकारात्मक विचार आते हैं, जो बॉडी में एनर्जी लाने का काम करते हैं। रिसर्च में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जब चेहरे की मांसपेशियों में खिंचाव होता है तो इमोशंस बदलते हैं। यह नकारात्मकता को खत्म करने का काम करता है।
इम्युनिटी बढ़ाती है मुस्क राहट : ऑस्ट्रेलियाई रिसर्च कहती है, मुस्कराने पर शरीर में कर्ॉिर्टसोल और एंडॉर्फिन जैसे हार्मोन निकलते हैं, जो बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं साथ ही शरीर में होने वाले दर्द को घटाते हैं और तनाव को कम करते हैं। रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम को अच्छा करते हैं व इम्युनिटी बढ़ाते हैं। ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है तो दिल की बीमारी का खतरा घट जाता है।
उम्र बढ़ाने का नुस्खा : अमेरिका में महिलाओं की मुस्कान पर भी एक स्टडी गई है। रिसर्च में पाया गया कि सबसे ज्यादा नेचरल और खुलकर हंसने पर क्या असर होता है। रिपोर्ट में सामने आया कि जिन महिलाओं ने चेहरे पर नेचरल स्माइल रखी थी उनकी उम्र दूसरी महिलाओं के मुकाबले करीब सात साल तक बढ़ी।
चेहरे की मुस्कान ने फिल्म दिला दी
अभिनेत्री सादिया खातिब ने बताया कि मुझे सबसे ज्यादा तारीफ मुस्कान पर ही मिलती है। मुझे मेरी पहली फिल्म शिकारा के लिए लिया गया था तो मेरी स्माइल की वजह से। कास्टिंग डायरेक्टर इंदु शर्मा शांति के किरदार के लिए एक्टिंग के अलावा भोली-भाली, हंसती हुई सी लड़की ढूंढ़ रही थीं, मुझमें उन्हें वह मिल गई और मुझे फिल्म मिल गई। मेरा मानना है कि जब आप किसी से पहली बार मिलते हैं तो आपके चेहरे के भाव वही होते हैं, जो आप एहसास कर रहे होते हैं, लेकिन जब दो नए लोग आपस में मिलते हैं और एक मुस्करा रहा होता है तो दूसरा अपने आप ही कंफर्टेबल हो जाता है। मुस्कान वह स्रोत है जिससे बिना किसी कारण के खुशी बांटी जा सकती है। मैं खुद हंसती रहती हूं और मानती हूं कि सभी को मुस्कराते रहना चाहिए, क्योंकि हंसता हुआ इंसान सभी को पसंद आता है।
रिलैक्स कर देती है स्माइल
गुड़गांव के पारस हॉस्पिटल के क्लिनिकल साइकोलॉजी एंड साइकोथेरेपी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. प्रीति सिंह ने बताया कि जब हम मुस्कान की बात करते हैं तो यह हमारी खुशी को बयां करती है। यह हमारे पूरे शरीर को प्रभावित करती है। हमारा नर्वस सिस्टम उस समय तनाव में आ जाता है जब हम किसी मुश्किल के आने का एहसास करते हैं, लेकिन स्माइलिंग मोड में आते ही हम अपने शरीर को संकेत दे देते हैं कि चीजें इतनी बुरी नहीं हैं, हम इनसे जीत लेंगे। हमें हाइपरटेंशन से निजात मिलती है और हम रिलैक्स हो जाते हैं। जब हम किसी पार्क में किसी को आनंद लेते हुए देखते हैं तो हमारे चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है। इस तरह से हमारी मुस्कान भी दूसरों को खुश कर सकती है। इसे वाइकेरियस इन्फोर्समेंट कहते हैं। तभी लाμटर क्लब में जाने और स्टैंडअप कॉमेडी देखने की बात कही जाती है। कोरोना के दिनों में तो हम छोटी-छोटी चीजों से भी चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं। दूसरों की थोड़ी सी मदद से उन्हें खुश कर सकते हैं।
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