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Advocate Day 2020: दृढ़ निश्चय और मजबूत इरादों से लेफ्टिनेंट वासवी ने पूरा किया मां का सपना

वासवी की दिसंबर के दूसरे सप्ताह में पहली ज्वाइनिंग श्रीनगर स्थित जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री (जैकलाई) में होगी यहां वह तीन माह रहेंगी। इस दौरान वो सीखेंगी कि फौज में किस तरह से काम होता है। उसके बाद छह माह के लिए नागालैंड के दीमापुर में कार्य करेंगी।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 03 Dec 2020 10:29 AM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 10:29 AM (IST)
वासवी बताती हैं कि उनके पिता ने बहुत मेहनत से कमा कर उन्हें पढ़ाया है।

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। मजबूत इरादे और दृढ़ निश्चय से इंसान उन बुलंदियों को भी छू सकता है, जिसकी वह मात्र कल्पना भर करता है। दिल्ली की निजी कंपनी में पिछले साल बतौर कानूनी सहायक कार्य कर चुकीं लेफ्टिनेंट वासवी शुक्ला इसका उदाहरण हैं। मूलत: कानपुर की रहने वालीं वासवी ने मेहनत और लगन के साथ चौथे प्रयास में एसएससी जेएजी (शॉर्ट सर्विस कमीशन- जज एडवोकेट जनरल)-2019 परीक्षा में देशभर में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने न सिर्फ अपने अभिभावकों बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। वासवी कानपुर की पहली युवती होंगी, जो सेना में बतौर जज एडवोकेट जनरल के पद पर कार्य करेंगी।

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वो बताती हैं, मेरी मां कहा करती थीं कि अगर एक बेटा होता तो उसे सेना में जरूर भेजती। मैंने उनकी इस ख्वाहिश को पूरा किया, लेकिन बेटी के कंधे पर लगे सितारे को चूमने के लिए वह अब इस दुनिया में नहीं हैं। साल 2018 में किडनी खराब होने के चलते उनकी मृत्यु हो गई थी।

चौथे प्रयास में मिली सफलता

वासवी ने कानपुर के सेंट थॉमस स्कूल से विज्ञान संकाय से 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद 2012 में देहरादून के सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। लॉ की पढ़ाई के तीसरे साल से ही उन्होंने एसएससी-जेएजी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी। वह रोजाना सुबह जल्दी उठकर व्यायाम करतीं और फिर कॉलेज की कक्षाएं करने के बाद परीक्षा की तैयारी में जुट जातीं। उनके मुताबिक, दो बार परीक्षा में मेरिट आउट होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और चौथे प्रयास में देशभर में तीसरा स्थान लाकर सफलता हासिल की। वासवी कहती हैं, मुझे बचपन से बस यही सिखाया गया है कि मजबूत इच्छाशक्ति हो तो चाहे कितनी भी परेशानियां जीवन में आएं, सफलता मिल ही जाती है।

वासवी की दिसंबर के दूसरे सप्ताह में पहली ज्वाइनिंग श्रीनगर स्थित जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री (जैकलाई) में होगी, यहां वह तीन माह रहेंगी। इस दौरान वो सीखेंगी कि फौज में किस तरह से काम होता है। उसके बाद छह माह के लिए नागालैंड के दीमापुर में कार्य करेंगी।

पॉकेट मनी निकालने के लिए छात्र जीवन में की नौकरी

वासवी बताती हैं कि उनके पिता ने बहुत मेहनत से कमा कर उन्हें पढ़ाया है। इसलिए कॉलेज में दाखिला लेने के दूसरे साल से ही पॉकेट मनी निकालने के लिए नौकरी करने लगीं। साल 2017 में पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने देहरादून की जिला अदालत में एक साल प्रैक्टिस भी की। फिर वर्ष 2019 में कुछ माह उन्होंने दिल्ली के लॉ ऑफिसेज ऑफ इंडिया में कानूनी सलाहकार के रूप में कार्य किया। लेफ्टिनेंट रैंक के सितारे लगने पर लगा, मेहनत सफल हुईवासवी जुलाई 2019 में परीक्षा का परिणाम आने के बाद सितंबर 2019 में चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी चली गई। वह बताती हैं, अकादमी में करीब 11 माह प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जब 21 नवंबर 2020 को पासिंग आउट परेड के बाद मेरे कंधे पर लेफ्टिनेंट रैंक के सितारे लगाए गए, तब लगा कि मेहनत सफल हुई।

दोस्तों ने दिया साथवासवी बताती हैं कि उन्होंने कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही ध्येय बना लिया था कि कुछ भी हो जाए मां के सपने को पूरा करने के लिए सेना में जाना है। हालांकि, उनके परिवार में कोई भी सेना में नहीं है, लेकिन देहरादून में पढ़ाई के दौरान उन्हें दोस्तों का बहुत साथ मिला।

वो बताती हैं, देहरादून में पढ़ाई के दौरान जब भारतीय सैन्य अकादमी में पढ़ रहे दोस्तों से सेना में जाने के सपने को साझा किया तो दोस्तों ने आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्हें तैयारी के तरीके के साथ अपने व्यवहार का विश्लेषण करना सिखाया। वो बताती हैं कि उनके पिता राकेश शुक्ला ने ¨जदगी की हर मोड़ पर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। बड़ी बहन निहारिका शुक्ला ने कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया और मां की तरह उनकी जरूरतें पूरी कीं।

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