Air Pollution: नासूर बना हुआ है दिल्ली-NCR का प्रदूषण, IIT कानपुर के प्रोफेसर दिए कई सवालों के जवाब; बताया कैसे साफ होगी हवा
वायु प्रदूषण ऐसा नासूर बन गया है जिसका किसी स्तर पर कोई उपचार नहीं हो पा रहा। कहने को केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तमाम कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन सकारात्मक सुधार नहीं के बराबर है। इस बार भी दिल्ली न केवल गैस चैंबर बनी है। आखिर क्यों है यह स्थिति क्यों नहीं हो पा रहा सुधार स्थिति बदलने के लिए क्या किया जाना चाहिए...?
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण ऐसा नासूर बन गया है, जिसका किसी स्तर पर कोई उपचार नहीं हो पा रहा। कहने को केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तमाम कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन सकारात्मक सुधार नहीं के बराबर है। इस बार भी दिल्ली न केवल गैस चैंबर बनी है
बल्कि नवंबर बीते आठ साल में तीसरा सर्वाधिक प्रदूषित माह रहा है। आखिर क्यों है यह स्थिति, क्यों नहीं हो पा रहा सुधार, स्थिति बदलने के लिए क्या किया जाना चाहिए...? इन्हीं सब प्रश्नों को लेकर 'संजीव गुप्ता' ने आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष 'प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी' से लंबी बातचीत की। हाल ही में उन्हें इंजीनियरिंग एवं कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में इन्फोसिस पुरस्कार 2023 से नवाजा गया है। उन्हें यह पुरस्कार एआइ और मशीन लर्निंग का प्रयोग करके स्थानीय स्तर पर प्रभावी तौर से वायु प्रदूषण मापने, डेटा जेनरेशन एवं उसके विश्लेषण के नए तरीकों को विकसित करने के लिए ही दिया गया है। उन्होंने बड़े पैमाने पर सेंसर-आधारित एयर क्वालिटी नेटवर्क और मोबाइल लेबोरेट्री की व्यवस्था बनाई है ताकि वायु गुणवत्ता प्रबंधन तथा जन जागरूकता की दिशा मे बेहतरी लाई जा सके। प्रस्तुत हैं उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश:-
साल दर साल उपाय किए जाने के बावजूद दिल्ली एनसीआर आज भी प्रदूषण की जद में क्यों है?
दरअसल इसकी रोकथाम के लिए जो भी उपाय किए जाते रहे, सभी तात्कालिक ही ज्यादा थे। इसीलिए समस्या आज भी वहीं की वहीं है। बिना स्थायी और दीर्घकालिक उपायों के इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट का भी साफ कहना है कि प्रदूषण का मुददा स्थायी तौर पर हल करने के प्रयास किए जाएं। विचारणीय पहलू यह भी है कि दिल्ली और एनसीआर के वायु प्रदूषण को आपस में अलग नहीं किया जा सकता। यह इंटरलिंक्ड है। यह बात अलग है कि दिल्ली के हाट स्पाट पर प्रदूषण के कारण अलग हो सकते हैं और एनसीआर के हाट स्पाट पर अलग। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 50 से 65 प्रतिशत प्रदूषण की वजह स्थानीय कारक हैं और 30 से 35 प्रतिशत की वजह बाहरी कारक।
साल भर में देश की राजधानी बमुश्किल दो तीन दिन खुलकर सांस ले पाती है, जब एक्यूआइ 50 से नीचे जाता हो। अन्यथा यह 100 या 200 से ऊपर रहता है। क्या वजह है?
जैसा कि मैंने पहले कहा कि तात्कालिक उपाय पर्याप्त नहीं है। जाड़े में जब प्रदूषण की स्थिति भयावह रूप ले लेती है, तभी सरकारें और सभी एजेंसियां सक्रिय होती हैं। उसमें भी दिखावा, दावा व आरोप-प्रत्यारोप अधिक रहता है। पाबंदियों के उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई नहीं की जाती। यहां तक कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) भी अपनी शक्तियों का प्रयोग करते नजर नहीं आता। इसीलिए हालात में सुधार भी नहीं दिखता।
पराली का धुआं सिर्फ एक डेढ़ माह ही दिल्ली को परेशान करता है, जबकि प्रदूषण यहां वर्ष भर बना रहता है। यानी वास्तविक कारण कुछ और ही हैं। क्या हैं ऐसे कारण?
देखिए, दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण तो वाहनों का धुआं ही है। सार्वजनिक परिवहन मजबूत न होने के कारण यहां निजी वाहनों की संख्या सड़कों पर बहुत ज्यादा है। इसी कारण यातायात जाम भी होता है और वाहनों की रफ्तार भी काफी धीमी हो जाती है। इस बीच ईंधन जलता रहता है। इसके अलावा धूल प्रदूषण भी एक बड़ा कारण है। साथ ही यह्रां खुले में कचरा जलाना और आग लगाना भी बड़ी ही आम बात है।
सन 2000 के आसपास दिल्ली से डीजल बसों और उद्योगों को बाहर कर दिया गया था। उम्मीद यही थी कि इससे दिल्ली रहने के लायक हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं?
बढ़ती आबादी और वाहनों की संख्या ने प्रदूषण रोकने के इन तमाम उपायों को बेअसर कर दिया। दिल्ली में वाहनों की कुल संख्या 2004 में 4.24 मिलियन से बढ़कर मार्च 2018 में 10.8 मिलियन से अधिक हो गई। पराली जलाने की घटनाएं जोर पकड़ने लगी। अनेकानेक नई बस्तियां विकसित हुईं और निर्माण गतिविधियों में भी तेजी आई। दिल्ली की जनसंख्या भी करीब 50 लाख तक बढ़ गई है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सुधार न होने से सड़कों पर वाहन बढ़ गए हैं जो दिल्ली के प्रदूषण में 40 प्रतिशत तक हिस्सेदारी निभा रहे हैं। इसी के कारण ढाई दशक पहले की गई कार्रवाई के फायदे अब समाप्त हो चुके हैं। सरकारी मशीनरी भी वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रति उदासीन है।
आपके मुताबिक सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों में कहां कमी लगती है और उसे दूर कैसे किया जाए?
दावा, दिखावा और आरोप-प्रत्यारोप खत्म कर सख्ती से काम करना होगा। जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को जो दायित्व दिया जाता है, अगर वो वह पूरा न करें तो उन्हें हटाया जाए। सीएक्यूएम भी खुद की पीठ ठोकने के बजाए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करे। क्षेत्र एवं स्रोत की पहचान कर सख्त कार्रवाई से ही नासूर बन चुकी प्रदूषण की समस्या पर काबू पाया जा सकेगा।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) इसमें कितनी मददगार हो सकती है?
आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस से वायु प्रदूषण के हाटस्पाट, स्रोत, एयरशेड को रियलटाइम में चिह्नित कर नीति निर्धारक व नियामक संस्थाओं को समुचित कार्यवाही करने में मदद मिल सकती हैं।
हाल ही में दिल्ली सरकार ने कृत्रिम वर्षा कराने के लिए योजना बनाई थी। क्या वह कारगर है?
क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम वर्षा वायु प्रदूषण के ''अत्यंत गंभीर'' होने की अवधि में काफी सहायक सिद्ध हो सकती है। इनके दुष्प्रभाव नहीं के बराबर हैं। लेकिन कुछ फील्ड ट्रायल के बाद इनकी महत्ता मालूम होगी।
आपकी निगाह में दिल्ली के प्रदूषण का समाधान क्या है, क्या किया जाना चाहिए?
दिल्ली एनसीआर एयरशेड में प्रदूषण के सभी स्रोतों पर अति शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है। सीएक्यूएम में इंजीनियर, तकनीकी- प्रौद्योगिक विशेषज्ञ और कानून के जानकारों की अविलंब भर्ती की जानी चाहिए। ऐसा होने पर नियम- कायदों पर सख्ती से अमल हो सकेगा और कार्रवाई भी सुनिश्चित की जा सकेगी।