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दिल्ली के इस अस्पताल में 99 फीसद से अधिक मानसिक रोगियों का ओपीडी में हो जाता है इलाज

इहबास में पिछले 15 सालों में ओपीडी में आने वाले मरीज ढाई गुणा बढ़ चुके हैं। वहीं इमरजेंसी के मरीजों दोगुना बढ़े हैं।

By Edited By: Published: Mon, 17 Aug 2020 02:03 AM (IST)Updated: Mon, 17 Aug 2020 03:23 PM (IST)
दिल्ली के इस अस्पताल में 99 फीसद से अधिक मानसिक रोगियों का ओपीडी में हो जाता है इलाज
दिल्ली के इस अस्पताल में 99 फीसद से अधिक मानसिक रोगियों का ओपीडी में हो जाता है इलाज

नई दिल्ली [स्वदेश कुमार]। कई लोग को यह भ्रांति है कि मनोरोगियों को अस्पताल में भर्ती करना जरूरी है। लेकिन हकीकत इससे उलट है। मनो चिकित्सा के उत्तर भारत में सबसे बड़े केंद्र मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में 99 फीसद से अधिक मरीजों का इलाज ओपीडी में ही हो जाता है। एक फीसद से भी कम मरीजों को भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। इहबास में पिछले 15 सालों में ओपीडी में आने वाले मरीज ढाई गुणा बढ़ चुके हैं। वहीं, इमरजेंसी के मरीजों दोगुना बढ़े हैं। लेकिन बेड की संख्या में मामूली बढ़ोतरी ही दर्ज हुई है। 2005 में जहां इस अस्पताल में 219 बेड थे, वहीं साल 2019 में इनकी संख्या 297 तक ही पहुंची थी। इसके बावजूद 2019 में 32 फीसद बेड खाली रहे।

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अस्पताल प्रशासन की तरफ से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2005 में ओपीडी में 1,32,062 मरीज पहुंचे थे। इनकी संख्या में साल दर साल बढ़ोतरी दर्ज की गई और 2019 में कुल 3,20,657 मरीज इलाज के लिए ओपीडी में पहुंचे। वहीं इमरजेंसी में 2005 में 8,291 मरीज पहुंचे थे। 2019 तक आते-आते इनकी संख्या एक साल में 16,424 हो गई। लेकिन इस अनुपात में बेड बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी। 2005 में 96 फीसद बेड पर मरीज थे।

वहीं 2019 में 68 फीसद बेड पर ही मरीज भर्ती हुए। अस्पताल के पास सबसे अधिक 356 बेड 2017 में थे। तब भी 87 फीसद बेड पर भी मरीज भर्ती हुए थे। 13 फीसद खाली रहे। इसके बाद अगले बेड घटाकर 323 किए गए। इस साल भी 64 फीसद बेड ही भर पाए। इसे देखते हुए 2019 में 297 बेड किए गए। मौजूदा वर्ष में कोरोना संक्रमण की वजह से मरीजों की संख्या कम हो गई है। इसे देखते हुए अप्रैल में 180 बेड चालू अवस्था में रखे गए। अगस्त में मरीजों की संख्या बढ़ी तो इनकी संख्या बढ़ाकर 240 कर दी गई। आंकड़ों के मुताबिक अस्पताल आने वाले कुल मरीजों में अब तक 2010 में सबसे अधिक 0.95 फीसद मरीजों को यहां भर्ती किया गया था। इसके बाद से इसमें गिरावट दर्ज की जा रही है। 2019 में मात्र 0.74 फीसद मरीज भर्ती किए।

डॉ. निमेष जी देसाई (निदेशक) का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की वजह से मरीजों के दाखिले की दर कम हो रही है। आम लोग और यहां तक कि स्वास्थ्यकर्मियों में यह गलतफहमी है कि भर्ती किए जाने के बाद ही मरीज का बढि़या इलाज होता है या बेड की संख्या अधिक होगी, तभी अस्पताल बेहतर होगा। इसे दूर करने की जरूरत है। किसी भी मानसिक रोगी को जरूरत से एक दिन भी अधिक भर्ती रखना मानवाधिकार का उल्लंघन है। 

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