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अब जनजातीय भाषाओं व बोलियों पर मेहरबान हुआ NBT, प्रकाशित करेगा पुस्तकें

सुदूर क्षेत्रों में ऐसे भी लाखों पाठक हैं जो पढ़ना चाहते हैं, मगर अपनी भाषा या बोली में साहित्य उपलब्ध नहीं होने के कारण इससे वंचित रह जाते हैं।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 23 Apr 2018 09:18 AM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 10:54 AM (IST)
अब जनजातीय भाषाओं व बोलियों पर मेहरबान हुआ NBT, प्रकाशित करेगा पुस्तकें
अब जनजातीय भाषाओं व बोलियों पर मेहरबान हुआ NBT, प्रकाशित करेगा पुस्तकें

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। समाज के हर वर्ग और सुदूर क्षेत्रों में भी पुस्तक संस्कृति का विकास करने को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) अब जनजातीय भाषाओं/बोलियों में भी पुस्तकें प्रकाशित करेगा। इस दिशा में करीब एक दर्जन भाषाओं-बोलियों का चयन भी कर लिया गया है। साथ ही एनबीटी की योजना क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तक प्रकाशन का विस्तार करने की भी है।

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आशा के अनुरूप मिल रहा है रिस्पांस 

मौजूदा समय में एनबीटी 22 भारतीय भाषाओं के अलावा 10 क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित कर रहा है। साल भर में करीब 500 नई पुस्तकें निकाली जा रही हैं, जिनकी प्रतियां लाखों में होती हैं। ऐसी तमाम क्षेत्रीय पुस्तकों को क्षेत्र विशेष में भी आशा के अनुरूप रिस्पांस मिल रहा है, इसीलिए इस कड़ी में एनबीटी अब जनजातीय भाषाओं/बोलियों को भी शामिल करने का निर्णय ले चुका है।

लाखों पाठक हैं जो पढ़ना चाहते हैं

अधिकारियों के मुताबिक यह सही है कि देश भर में अधिकांश पाठक हिन्दी या अंग्रेजी में पढ़ने वाले ही हैं। लेकिन सुदूर क्षेत्रों में ऐसे भी लाखों पाठक हैं जो पढ़ना चाहते हैं, मगर अपनी भाषा या बोली में साहित्य उपलब्ध नहीं होने के कारण इससे वंचित रह जाते हैं। इन क्षेत्रों में रहने वाले हिन्दी या अंग्रेजी का भी बहुत ज्ञान नहीं रखते। जबकि वहां की स्थानीय भाषा एवं बोली पर अपना अच्छा खासा अधिकार रखते हैं।

संस्कृत को भी शामिल किया गया

इसी सोच के मददेनजर पिछले वर्ष संस्कृत को भी शामिल किया गया है। प्रयोग के तौर पर जनवरी 2018 में ही प्रगति मैदान में लगाए गए 26वें विश्व पुस्तक मेले में मैथिली पुस्तकों के एक प्रकाशक को नि:शुल्क स्टॉल दिया गया जहां इस भाषा के पाठकों ने भी खासी संख्या में किताबें खरीदीं।

प्रमुख जनजातीय भाषाएं / बोलियां, जिनमें शुरू किया जा रहा पुस्तक प्रकाशन

1. मैथिली 2. भोजपुरी 3. मगही

(बिहार में प्रचलित) 4. नेपाली (सिक्किम में प्रचलित) 5. काकबरथ (त्रिपुरा में प्रचलित) 6. मंडारी 7. संथाली (झारखंड में प्रचलित) 8. गोंडी 9. हड़बी 10. भकरी (बस्तर में प्रचलित)।

बढ़ रहा है पाठकों का रूझान

एनबीटी के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा का कहना है कि सैटेलाइट और डिजिटल संस्कृति के इस दौर में भी पुस्तकों के प्रति पाठकों का रूझान न केवल कायम है बल्कि बढ़ रहा है। पुस्तक मेलों में होने वाली पुस्तकों की बिक्री में हो रहा इजाफा इसका सशक्त प्रमाण है। पुस्तकें पढ़ी जा रही हैं, बिक रही हैं, इसीलिए छप भी रही हैं। एनबीटी भी इसी वजह से पुस्तक प्रकाशन का दायरा बढ़ा रहा है। अब क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में भी पाठकों को पुस्तकें उपलब्ध होंगी। हर हाथ एक पुस्तक योजना भी सफल हो रही है।

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