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Mahatma Gandhi Death Anniversary: हिंसा के खिलाफ गांधी ने किया था दिल्ली में आखिरी उपवास

Mahatma Gandhi Death Anniversary विभाजन की त्रासदी के बाद उपजी हिंसा के खिलाफ संघर्ष करते हुए उनकी जिंदगी के आखिरी 144 दिन दिल्ली में ही गुजरे। उन दिनों वो बिड़ला हाउस में रहते थे। इसी जगह 30 जनवरी को उनकी हत्या हुई।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 30 Jan 2021 07:10 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jan 2021 08:55 AM (IST)
Mahatma Gandhi Death Anniversary: हिंसा के खिलाफ गांधी ने किया था दिल्ली में आखिरी उपवास
गांधी की दिल्ली में हिंसा की जगह नहीं

नई दिल्ली, संजीव कुमार मिश्र। ये गांधी की दिल्ली है...यहां हिंसा की कतई जगह गुंजाइश नहीं। गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में हुई हिंसा देख गांधी का दिल भी पसीज जाता। ये वही दिल्ली है जहां गांधी ने हिंसा के खिलाफ 13 से 18 जनवरी, 1948 तक उपवास रखा। दिल्ली के चप्पे चप्पे पर गांधी की छाप है। ऐसे में हिंसा को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। गांधी ने दिल्ली प्रवास के दौरान यही संदेश दिया था।

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विभाजन की त्रासदी के बाद उपजी हिंसा के खिलाफ संघर्ष करते हुए उनकी जिंदगी के आखिरी 144 दिन दिल्ली में ही गुजरे। उन दिनों वो बिड़ला हाउस में रहते थे। इसी जगह 30 जनवरी को उनकी हत्या हुई। आज वह जगह गांधी स्मृति-5, तीस जनवरी लेन के नाम से जानी जाती है।

इतिहासकाराें की मानें तो 9 सितंबर 1947 को महात्मा गांधी कोलकाता से दिल्ली पहुंचे। शाहदरा रेलवे स्टेशन पर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल गांधी उन्हें लेने आए। यह उनकी अंतिम रेल यात्रा भी थी। रेलवे स्टेशन पर ही सरदार पटेल ने गांधी को दिल्ली की स्थिति से अवगत कराते हुए यह बताया कि मंदिर मार्ग, पंचकुइयां रोड स्थित वाल्मिकी बस्ती में ठहरना अब मुनासिब नहीं हो सकेगा।

बापू बस्ती में एक अप्रैल 1946 से 10 जून, 1947 तक रह चुके थे। तय हुआ कि बापू बिड़ला हाउस में ठहरेंगे। शाहदरा से बिड़ला हाउस तक के सफर में गांधी ने दिल्ली में हिंसा के निशान देखे। वो द्रवित हो गए। 14 सितंबर को गांधी हिंसाग्रस्त ईदगाह और मोतियाखान गए। एक साक्षात्कार में महात्मा गांधी ने कहा था कि जब पिछले रविवार को मैं कलकत्ता से चला तब दिल्ली की इस दुखद परिस्थितियों की मुझे जानकारी नहीं थी। परन्तु राजधानी में पहुंचने के बाद मैं सारे दिन दिल्ली की दुखगाथा सुनता रहा हूं। आज तो दिल्ली दुख की मूर्ति बन गई है।

इस बीच गांधी जी के साथी डॉ एम ए अंसारी के दरियागंज स्थित घर पर हमला हुआ। एक के बाद हिंसा की घटनाओं से व्यथीत गांधी जी ने 13 जनवरी को 1948 से अनिश्चितकालीन उपवास शुरू किया। 12 जनवरी की शाम प्रार्थना सभा में इसकी घोषणा की। गांधी जी ने मौन व्रत धारण किया हुआ था लिहाजा उनका संदेश पढ़कर सुनाया गया। जिसमें कहा गया कि कल यानी मंगलवार सुबह पहले खाने के बाद उपवास शुरू होगा। उपवास अनिश्चितकालीन है। नमक या खट्टे नींबू के साथ या इन चीजों के बगैर पानी पीने की छूट मैं रखना चाहूंगा। उपवास तब टूटेगा जब यकीन हो जाएगा कि सभी कौम के दिल मिल गए हैं। 13 जनवरी 1948 की सुबह साढ़े दस बजे से गांधी जी का उपवास शुरू हुआ। पंडित नेहरू, बापू के निजी सचिव प्यारे लाल नैयर समेत कई अन्य लोग मौके पर उपस्थित थे।

डीयू छात्रों की अहम भूमिका

गांधी के उपवास का दिल्ली पर चमत्कारिक असर हुआ। जगह जगह गांधी के समर्थन में सभाएं होने लगी। हिंदू कालेज के पूर्व प्राचार्य एनवी थडानी की अध्यक्षता में दिल्ली विवि के शिक्षकों एवं छात्रों की एक बैठक आयोजित हुई। इसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया। जिसमें कहा गया कि छात्र एवं शिक्षक शहर में हिंसा को रोकने, सौहार्द्र कायम रखने में योगदान देंगे। वहीं 15 जनवरी 1948 को करोल बाग में एक सार्वजनिक सभा हुई। स्थानीय निवासियों ने एक शांति बिग्रेड बनाया। जिसने घर घर जाकर अमन एवं भाईचारे के लिए अभियान चलाया। 18 जनवरी की सुबह विभिन्न संगठनों के 100 से अधिक प्रतिनिधि महात्मा गांधी से मिले एवं शांति शपथ प्रस्तुत किया। जिसके बाद गांधी जी ने उपवास तोड़ा। इसी दिन एक शांति कमेटी भी गठित हुई। डॉ राजेंद्र प्रसाद के अगुवाई वाली कमेटी में 130 प्रतिनिधि थे।

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