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Delhi Congress News: जानिये- दिल्ली में कांग्रेस के किस नेता ने लिया संन्यास और किसने कराया खुद का 'अपमान'

Delhi Congress News दिल्ली में दिग्गज नेताओं से लेकर कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता तक पार्टी की पतली हालत को लेकर निराश और परेशान हैं। हालत यह है कि कोई जबरदस्ती दूसरों को समर्थन देकर अपमानित हो रहा है तो कोई संन्यास ले रहा है।

By Jp YadavEdited By: Published: Thu, 30 Sep 2021 09:48 AM (IST)Updated: Thu, 30 Sep 2021 10:17 AM (IST)
Delhi Congress News: जानिये- दिल्ली में कांग्रेस के किस नेता ने लिया संन्यास और किसने कराया खुद का 'अपमान'
जानिये- दिल्ली में कांग्रेस के किस नेता ने लिया संन्यास और किसने कराया खुद का 'अपमान'

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। 15 सालों तक दिल्ली की सत्ता पर धमक के साथ राज करने वाली कांग्रेस फिलहाल सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। दिग्गज नेताओं से लेकर कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ता तक पार्टी की पतली हालत को लेकर निराश और परेशान हैं। हालत यह है कि कोई जबरदस्ती दूसरों को समर्थन देकर अपमानित हो रहा है तो कोई संन्यास ले रहा है। 

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 गए थे समर्थन देने, भद पिटवाकर लौटे

अपना कोई भी एजेंडा सेट कर पाने में नाकाम प्रदेश कांग्रेस आजकल उधार के मुद्दे ढूंढ़ने में लगी है। पुरानी कहावत ''जहां देखी तवा परांत, वहां बिताई सारी रात'' की तर्ज पर चलते हुए सुबह अखबार देखकर प्रदेश नेतृत्व और उनकी टीम के नेता पत्रकार वार्ता या बयान जारी करते हैं। कहीं कोई आंदोलन या धरना-प्रदर्शन चल रहा हो तो वहां समर्थन देने पहुंच जाते हैं। कृषि कानूनों के विरोध में भारत बंद का आयोजन हुआ तो दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी अपने कुछ साथियों के साथ गाजीपुर बार्डर पर किसानों को समर्थन देने पहुंच गए। लेकिन तब नजारा देखने लायक था जब प्रदर्शनकारियों ने इन्हें वहां से चले जाने को कह दिया। उनका कहना था कि न तो यह राजनीतिक मंच है और न ही उन्हें किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन चाहिए। इस पर कुछ ने चुटकी भी ली, खुद का जनाधार नहीं, चले हैं औरों को समर्थन देने।

पकड़ी सन्यास की राह

दिल्ली में कांग्रेस की खस्ता हालत देख जहां एक ओर पुराने नेता लगातार पार्टी को अलविदा कहने में लगे हैं वहीं ज्यादातर दिग्गज घर बैठ गए हैं। इसी कड़ी में दिल्ली महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष शर्मिष्ठा मुखर्जी ने तो सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की ही घोषणा कर दी है। उन्होंने टवीट कर कहा, ''सक्रिय राजनीति से विदा ले रही हूं लेकिन कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य बनी रहूंगी। कोई अगर देश-जाति की सेवा करना चाहता है तो दूसरे तरीके से भी कर सकता है।'' शर्मिष्ठा ने आगे कहा- ''राजनीति मेरे लिए नहीं है। मैं दूसरे कामों में व्यस्त रहना चाहती हूं। राजनीति, विशेषकर विरोध की राजनीति करने के लिए बहुत भूख की जरूरत होती है। मैंने महसूस किया है कि मुझमें उस तरह की भूख नहीं है इसलिए सक्रिय राजनीति में मेरे रहने का कोई मतलब नहीं रह गया है।'' शर्मिष्ठा से इस कदम से ज्यादातर कांग्रेसी हैरान हैं।

कैप्टन की स्थिति दिल्ली के कांग्रेसियों में भी चिंता का विषय

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ कांग्रेस आलाकमान ने जो किया, उसे लेकर दिल्ली के वरिष्ठ कांग्रेसियों में भी खासा आक्रोश है। भले ही खुलकर सामने कोई नहीं आ रहा और अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त नहीं कर रहा, लेकिन ज्यादातर वरिष्ठ नेताओं ने इसे शीर्ष नेतृत्व का सबसे गलत फैसला करार दिया है। जहां तहां दबी जुबान में चर्चा कर रहे इन कांग्रेसियों का कहना है कि आलाकमान ने कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से एकाएक हटाकर पंजाब में भी कांग्रेस की लुटिया डुबोने का काम कर दिया है। कल तक वहां पार्टी जितनी मजबूत थी, आज उतनी ही कमजोर हो गई है। इन नेताओं का दुख यह भी है कि पार्टी नेतृत्व वरिष्ठ कांग्रेसियों की लगातार अनदेखी कर रहा है। दिल्ली में भी यही हाल है। न कहीं वरिष्ठों को मान दिया जाता है और न ही सलाह ली जाती है। इसे ही कहते हैं विनाशकाले विपरीत बुद्धि।

अब युवा कांग्रेस से भी जोर पकड़ने लगी प्रदेश कांग्रेस की खटपट

देश में ज्यादातर राजनीतिक दल एक दूसरे से लड़ते हैं, वो भी मुद्दों पर। लेकिन कांग्रेस के नेता शुरू से आपस में ही लड़ते रहे हैं, वह भी अहम की लड़ाई। अब दिल्ली में ही देख लीजिए, प्रदेश कांग्रेस में मुठ्ठी भर नेता ही सक्रिय रह गए हैं, ज्यादातर ने कन्नी काट रखी है। प्रदेश नेतृत्व के साथ किसी ही बनती ही नहीं। अब यह लड़ाई युवा कांग्रेस के साथ भी जोर पकड़ने लगी है। आलम यह हो गया है कि प्रदेश कांग्रेस और भारतीय युवा कांग्रेस की ओर से एक दूसरे की शिकायत करने का दौर भी चल निकला है। प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी का दर्द है कि युवा कांग्रेस उन्हें अपने कार्यक्रमों में नहीं बुलाती जबकि युवा कांग्रेस की ओर से चौधरी के व्यवहार की शिकायत की गई है। कभी कभी तो लगता है कि देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कहीं अहम की लड़ाई में अपना वजूद ही न गंवा बैठे।

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