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जानिए कितने समय के बाद ऐतिहासिक कुतुबमीनार की सबसे ऊपरी छतरी का होने जा रहा संरक्षण कार्य, क्या है इसका इतिहास?

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) कुतुबमीनार के मुकुट (छतरी) का संरक्षण कार्य कराएगा। इसके अलावा कुतुबमीनार की दूसरी मंजिल पर भी बड़े स्तर पर काम होने जा रहा है। इसके तहत खराब हो चुके व टूट चुके पत्थरों को बदला जाएगा।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Mon, 04 Oct 2021 12:27 PM (IST)Updated: Mon, 04 Oct 2021 12:27 PM (IST)
पार्क में रखी गई कुतुबमीनार की छतरी, इसी की होनी है मरम्मत। सौजन्य.एएसआइ

नई दिल्ली [वी के शुक्ला]। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) कुतुबमीनार के मुकुट (छतरी) का संरक्षण कार्य कराएगा। इसके अलावा कुतुबमीनार की दूसरी मंजिल पर भी बड़े स्तर पर काम होने जा रहा है। इसके तहत खराब हो चुके व टूट चुके पत्थरों को बदला जाएगा। मीनार के अंदर की कुछ सीढ़ियों के पत्थरों को भी बदले जाने की योजना है। यह कार्य एक माह के अंदर शुरू कर दिया जाएगा।

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फिलहाल यह छतरी मीनार के निकट एक पार्क में रखी हुई है। पचास साल में यह पहली बार है जब करीब 10 फीट ऊंची छतरी जो कभी कुतुबमीनार की सबसे ऊपरी मंजिल पर लगी थी उसका इतने बड़े स्तर पर संरक्षण कार्य होगा। खराब हो जाने के कारण इसके अधिकतर पत्थरों को बदला जाएगा।

इस छतरी का भी एक इतिहास है। एएसआइ के अनुसार तेज भूकंप के कारण मीनार की छतरी टूट कर गिर गई थी, जिसे 1802 ई. में मेजर स्मिथ के द्वारा एक नई छतरी बनवाकर बदला गया। मगर यह छतरी बेमेल दिखती थी। इस कारण इसे 1848 ई. में नीचे उतार लिया गया। तब से यह कुतुबमीनार के दक्षिण-पश्चिम की ओर पार्क में ही रखी हुई है। इसमें पिछले 50 साल से बड़े स्तर पर संरक्षण कार्य नहीं हुआ है।

संगमरमर की बनी है दो मंजिल

कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1193 ई. में प्रारंभ करवाया गया था। ऐबक ने केवल प्रथम मंजिल तक इसे बनवाया। इसके बाद अन्य तीन मंजिल उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश द्वारा बनवाई गई। फिरोजशाह तुगलक के शासन के दौरान इसके ऊपर दो मंजिल और बनवाई गई। इन दोनों मंजिलों का निर्माण उसने संगमरमर से करवाया था। जबकि पहली से चौथी मंजिल तक बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ था। हालांकि तुगलक द्वारा बनवाई गई दोनो मंजिलों में से ऊपरी मंजिल 1368 ई. में नष्ट हो गई।

इस मीनार के ऊपर नागरी और फारसी उत्कीर्ण लेख से प्रकट होता है कि यह मीनार दो बार 1326 ई. तथा 1368 ई. में नष्ट हुई थी। प्रथम नुकसान मुहम्मद तुगलक के 1325-51 ई. के शासन के दौरान हुआ। इसे 1332 ई. में उसके द्वारा ठीक कराया गया था। दूसरी बार नुकसान फिरोज तुगलक 1351-88 ई. के शासन के दौरान हुआ।


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