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    Beautiful जारिया की कहानी आपको हैरत में डाल देगी, जिसने बदल दिया भारत का कानून

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Fri, 19 Jan 2018 12:20 PM (IST)

    जारिया पटनी उस वक्त सिर्फ 19 साल की थीं जब उनकी शादी हो गई, लेकिन पति के बर्ताव ने उनकी जिंदगी को झकझोर कर रख दिया।

    Beautiful जारिया की कहानी आपको हैरत में डाल देगी, जिसने बदल दिया भारत का कानून

    नई दिल्ली (अतुल पटैरिया)। 12 जनवरी को भारत सरकार ने पासपोर्ट संबंधी नियमों में बड़ा बदलाव करते हुए पासपोर्ट में पिता का नाम गैरजरूरी करार दिया है। विदेश मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के बाद यह फैसला लिया गया।

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    मंत्रालय की यह समिति पासपोर्ट में पिता के नाम को हटाए जाने की मांग पर विचार कर रही थी। इस मांग को लेकर पहली आवाज उठाई थी मुंबई की एक सिंगल पेरेंट जारिया पटनी ने। 25 वर्षीय जारिया ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि तार्किक रूप से यह बदलाव बेहद जरूरी था।

    महिलाओं के लिए यह एक बड़े बदलाव का संकेत है। उन सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं, जिन्होंने इसे समझा और साथ दिया। दिसंबर में जारिया ने महिलाओं के हक में इस विषय को पुरजोर तरीके से उठाया था। उनकी मांग थी कि पासपोर्ट और वीजा अप्रूवल संबंधी उन पुराने नियमों में बदलाव किया जाए, जिनमें नाबालिग बच्चे के लिए पिता के नाम या सहमति की अनिवार्यता है।

    जारिया ने चेंज डॉट ओआरजी पर एक ऑनलाइन पिटीशन भी फाइल की थी। उन्होंने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को मेल पर एक पत्र भी प्रेषित किया था। सरकार ने जारिया की मांग को गंभीरता से लेते हुए दिसंबर में ही नियमों में जरूरी बदलाव कर दिए थे। तब पासपोर्ट के आवेदन में माता-पिता में से किसी एक का नाम या कानूनी अभिभावक का नाम देने की व्यवस्था बनाई गई।

    यह भी व्यवस्था बनाई गई कि आवेदनकर्ता की मांग पर पासपोर्ट पर माता-पिता में से किसी एक का ही नाम प्रकाशित किया जाए। जारिया पासपोर्ट में हुए बदलाव को एक बड़े प्रतीकात्मक परिवर्तन के रूप में देख रही हैं।

    दरअसल, पति की क्रूरता से तंग आकर जारिया को 2012 में तलाक लेना पड़ा था। जारिया ने बेटे की परवरिश की जिम्मेदारी भी कोर्ट से हासिल की। दिक्कत तब आई जब बेटे के पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया। इसमें पिता का नाम देना अनिवार्य था। वीजा अप्रूवल के लिए भी पिता की सहमति की आवश्यकता थी।

    जारिया ने बताया, मैंने नवंबर में आवेदन दिया था, लेकिन पासपोर्ट कार्यालय के कई चक्कर काटने के बाद भी मेरी बात नहीं सुनी गई। तब मैंने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखा।

    सरकार की प्रतिक्रिया के बारे में पूछने पर जारिया ने कहा, मैंने जब सुषमा जी को मेल किया था, तब वह अस्वस्थ चल रही थीं, लिहाजा मैं उनसे मिल तो नहीं पाई, लेकिन विदेश मंत्रलय ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि आप एक बार पुन: पासपोर्ट कार्यालय पहुंचें, आपकी हर बात सुनी जाएगी।

    वहां मुझसे कहा गया कि आप फार्म का खंड-सी न भरें, इसे खाली छोड़ दें। 24 दिसंबर को सरकार ने पासपोर्ट संबंधी नियमों में बदलाव की घोषणा भी कर दी। पति से तलाक लेने के बाद जारिया दुबई छोड़ मुंबई में अपने माता-पिता के पास आ गई थीं।

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    यहां अपनी बहन के फोटोग्राफी स्टूडियो के कामकाज में हाथ बटाने लगीं। जारिया खुद भी एक पेशेवर फोटोग्राफर हैं। फिलहाल वह अपने पिता का लॉजिस्टिक का बिजनेस संभाल रही हैं।

    वहीं, जारिया पटनी का कहना है कि इससे चीजें बदलेंगी। यह सिर्फ पासपोर्ट में पुरुष के वर्चस्व की समाप्ति का मसला नहीं है, बल्कि महिलाओं को दोयम दर्जे का समझने वाली ठेठ पुरुषवादी सोच के खात्मे का एक प्रभावी संदेश है।

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