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आदिवासियों के छिपे हुए ज्ञान व परंपराओं पर शोध करेगा JNU, जानें- क्या है खास

प्रोग्राम के तहत आदिवासी समुदायों की चिकित्सा पद्धति, जड़ी-बूटियों के प्रयोग, कृषि व्यवस्था, समेत उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन व शोध किया जाएगा।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 23 Apr 2018 02:26 PM (IST)Updated: Mon, 23 Apr 2018 02:26 PM (IST)
आदिवासियों के छिपे हुए ज्ञान व परंपराओं पर शोध करेगा JNU, जानें- क्या है खास

नई दिल्ली [मनोज भट्ट]। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) भारत के आदिवासियों के परंपरागत गूढ़ ज्ञान पर शोध प्रारंभ करेगा। जिसका मकसद आदिवासियों के छिपे हुए ज्ञान व परंपराओं के महत्व का समाज हित में कैसे प्रयोग किया जाए व तकनीक की मदद से आदिवासियों के जीवन स्तर को कैसे बेहतर किया जाए, इसकी कार्य योजना तैयार करना है। इसके लिए जेएनयू इसी सत्र से साइंस एंड टेक्नोलॉजी प्रोग्राम फॉर ट्राइबल स्टडीज शुरू करने की तैयारी कर रहा है।

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विस्तृत होगा दायरा

प्रोग्राम फॉर ट्राइबल स्टडीज के बारे में जानकारी देते हुए जेएनयू शोध विकास कार्यक्रम के निदेशक प्रोफेसर रूपेश चतुर्वेदी ने बताया कि आदिवासी समुदाय के ज्ञान व उनकी समस्याओं पर शोध के लिए इसे एक प्रोग्राम की तरह शुरू किया जा रहा है। फिलहाल इस प्रोग्राम की शुरूआत भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के बीच से करने की योजना है, लेकिन आने वाले दो वर्षों में इस प्रोग्राम को बतौर मास्टर व पीएचडी पाठ्यक्रम की तरह पढ़ाया जाएगा। जिसका दायरा विस्तृत होगा।

पीएचडी छात्र होंगे शामिल 

प्रोफेसर चतुर्वेदी ने बताया कि इस प्रोग्राम के तहत आदिवासी समुदायों की चिकित्सा पद्धति, जड़ी-बूटियों के प्रयोग, कृषि व्यवस्था, पर्यावरण संतुलन समेत उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन व शोध किया जाएगा। इन शोध कार्यों को जेएनयू के सभी स्कूलों से चयनित प्रोफेसरों व छात्रों की टीम आदिवासी समुदायों के साथ रहकर ही पूरा करेगी। जिसमें विज्ञान व मानविकी दोनों संकाय के पीएचडी छात्र शामिल किए जाएंगे।

समाज से जोड़ा जाएगा ज्ञान

शोध कार्य पूरा होने के बाद आदिवासियों के परंपरागत ज्ञान को बाकी समाज से जोड़ा जाएगा और उसका प्रयोग समाज हित में किया जाएगा। उनकी समस्याओं पर आधारित शोध के बाद तकनीक से उनके जीवन स्तर को सुधारने की कार्य योजना भी तैयार की जाएगी।

ये है खास बात 

प्रोफेसर चतुर्वेदी ने बताया कि इस प्रोग्राम की सबसे खास बात यह है कि आदिवासी समुदाय के जिस ज्ञान का प्रयोग समाज में किया जाएगा। उसका बौद्धिक संपदा अधिकार भी इसी समुदाय के नाम दर्ज किया जाएगा। जबकि समाज हित में प्रयोग होने से जो भी आर्थिक संपदा प्राप्त होगी वह उसी समुदाय के नाम पर स्थानांतरित कर दी जाएगी।

अपनी तरह का पहला शोध 

प्रो रूपेश चतुर्वेदी ने बताया कि अभी तक आदिवासियों के समाजिक, सांस्कृतिक परंपराओं पर काफी शोध हुए हैं, लेकिन यह पहला शोध है जो विज्ञान व तकनीकी दृष्टिकोण से आदिवासी समुदायों के बीच रहकर किया जाएगा। इसके लिए काम शुरू किया जा चुका है, जो शिक्षक पहले से इस पर काम कर रहे हैं, उन्हें एक मंच पर लाकर ग्रुप बनाया जा रहा है। 

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