"किल्ली तो ढिल्ली भई", क्या इस कहावत से पड़ा दिल्ली का नाम? दिलचस्प है इससे जुड़ी कहानी
History of Delhi यह सहस्त्राब्दियों पुराना शहर है। पौराणिक गाथाओं में इसका उल्लेख इंद्रप्रस्थ के रूप में मिलता है। दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा इसे जानने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं।
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। दिल्ली आज जिस स्वरूप में है, इसे ऐसा बनने में कई शताब्दियां लगी। कभी इसे तोड़ा गया तो कभी फिर से संवारा गया। इतिहास में इसके बनने की कई कहानियां हैं। जो रोमांच से भरी हैं। यह सहस्त्राब्दियों पुराना शहर है।
पौराणिक गाथाओं में इसका उल्लेख इंद्रप्रस्थ के रूप में मिलता है। दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा, इसे जानने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। तो चलिए जानते हैं वो कहानियां जो दिल्ली को दिल्ली बनाती हैं।
पहली कहानी
इतिहासकार मानते हैं कि तोमर राजवंश में जो सिक्के बनाए जाते थे, उन्हें देहलीवाल कहा जाता था। ऐसे मान्यता है कि इसी से दिल्ली नाम पड़ा। कुछ लोगों इसे एक कहावत से जोड़ते हैं। लोगों का मानना है कि मौर्य राजा दिलु के सिंहासन के आगे एक कील ठोकी गई। कहा गया कि जब तक यह कील धंसी रहेगी। तब तक साम्राज्य कायम रहेगा।
कहानी के अनुसार राजा को शक हुआ। उन्होंने कील उखड़वा ली। तब से कहावत बहुत मशहूर हुई। किल्ली तो ढिल्ली भई। कहावत मशहूर हो रही और किल्ली, ढिल्ली और दिलु मिलाकर दिल्ली बन गया।
दूसरी कहानी
उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों में दिल्लिका शब्द का प्रयोग किया हुआ पाया गया। कहा जाता है कि यह शिलालेख 1170 ईसवी का था। कहानी आगे बढ़ी तो 1206 ईसवी में दिल्ली, दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी। ऐसा माना जाता है कि आज की आधुनिक दिल्ली बनने से पहले दिल्ली सात बार उजड़ी, जिनके कुछ अवशेष आधुनिक दिल्ली में अब भी देखे जा सकते हैं।
Delhi History Timeline: इंद्रप्रस्थ से नई दिल्ली बनने तक की कहानी, प्वाइंट्स में जानें समय की जुबानी
आज की दिल्ली
इसके बाद दिल्ली ने मुगलों का शासन काल, ब्रिटिश शासन काल देखा। सन् 1947 में भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ। आजादी के बाद इसे अधिकारिक रूप से भारत की राजधानी घोषित कर दिया गया। दिल्ली में कई राजाओं के साम्राज्य के उदय तथा पतन के साक्ष्य आज भी देखने को मिल जाते हैं। दिल्ली हमारे देश के भविष्य, भूतकाल एवं वर्तमान परिस्थितियों के मेल से बनी है।