दिल्ली का प्रदूषण बढ़ा भी सकती हैं इलेक्ट्रिक बसें, 'आप' की योजना है हवा-हवाई: भूरेलाल
भूरेलाल कहते हैं कि तीन साल में आम आदमी पार्टी सरकार ने एक भी बस नहीं खरीदी, जबकि अब दो हजार स्टैंडर्ड बसों के साथ-साथ एक हजार इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की भी योजना बना रही है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार जिन इलेक्ट्रिक बसों के सहारे यहां की आबोहवा सुधारने का दावा कर रही है, उससे दिल्ली का प्रदूषण और बढ़ सकता है। इन बसों के साथ दिल्ली में बिजली की मांग दोगुनी संभव है कि उससे भी ज्यादा हो सकती है। इतनी बिजली कहां से आएगी यह अपनेे आप मेंं बड़ा सवाल है।
कहां से पूरी होगी बिजली की मांग
गौरतलब है कि पर्याप्त गैस उपलब्ध नहीं होने से बवाना ऊर्जा संयंत्र अपनी पूर्ण क्षमता से बिजली उत्पन्न नहीं कर पा रहा है। बदरपुर स्थित इकलौते थर्मल पावर प्लांट को अक्टूबर में स्थायी तौर पर बंद करने आदेश पहले ही हो चुके हैं। ऐसे में अगर किसी अन्य ईंधन से बिजली उत्पन्न करने का प्रयास किया गया तो दिल्ली की हवा में सल्फर डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड बढ़ने का खतरा रहेगा।
दिल्ली में अलग से कोई ट्रैक नहीं
दैनिक जागरण से बातचीत में ईपीसीए के अध्यक्ष भूरेलाल ने बड़ी चिंता के साथ इस पहलू की ओर ध्यान आकर्षित कराया। उनका कहना है कि इलेक्ट्रिक बसों को चलाने के लिए दिल्ली में अलग से कोई ट्रैक नहीं है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जो बीआरटी कॉरीडोर बनाया गया था, उसे 'आप' सरकार तोड़ चुकी है। ऐसे में अगर इलेक्ट्रिक बसों को भी जाम में ही फंसना है तो उससे सुविधा कम ईंधन की बर्बादी ज्यादा होगी।
अभी कोई रिपोर्ट नहीं बनाई गई है
भूरेलाल कहते हैं कि तीन साल में आम आदमी पार्टी सरकार ने एक भी बस नहीं खरीदी, जबकि अब दो हजार स्टैंडर्ड बसों के साथ-साथ एक हजार इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की भी योजना बना रही है। ऐसे में ये बसें महंगा सौदा भी साबित हो सकती हैं। यदि सरकार इन बसों को ले भी आए तो किराया कितना होगा? चलेंगी कहां? पार्किंग कहां होगी और इनकी चार्जिंग की व्यवस्था क्या रहेगी? इसको लेकर अभी कोई रिपोर्ट नहीं बनाई गई है।
फंड का उपयोग नहीं कर पाई 'आप'
ईपीसीए की रिपोर्ट पर 'आप' सरकार के खंडन को लेकर भूरेलाल कहते हैं कि हमारी रिपोर्ट दिल्ली सरकार के उसी शपथ पत्र पर आधारित है जो उसने सुप्रीम कोर्ट में जमा कराया है। हमने अपने आप से उसमें कुछ नहीं जोड़ा है। यह रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही बनाई गई है। ईसीसी का पैसा मुफ्त का नहीं है। ईपीसीए ने ही वर्ष 2015 में दिल्ली के पर्यावरण की बेहतरी के लिए सुप्रीम कोर्ट के जरिये इसे शुरू कराया था, लेकिन विडंबना यह कि 'आप' सरकार तीन साल में भी इस फंड का उपयोग नहीं कर पाई। अब जब योजना भी लाई है तो हवा-हवाई।
पहले अध्ययन कराना चाहिए था
भूरेलाल यह भी कहते हैं कि जब दिल्ली के प्रदूषण के कारणों और उसे कम करने के उपायों पर तमाम रिपोर्ट उपलब्ध होने के बावजूद दिल्ली सरकार वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी से नया अध्ययन करा सकती है तो इलेक्ट्रिक बसें चलाने जैसे एकदम नए प्रोजेक्ट के लिए क्या उसे पहले पुख्ता अध्ययन नहीं कराना चाहिए था।
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