दिल्ली में ई-कचरा बन रहा बड़ी समस्या, एक चौथाई का भी नहीं हो पाता निस्तारण
देश में जहां एक ओर पुराने वाहनों को स्क्रैप करने की प्रक्रिया जोरों पर चल रही है तो दूसरी ओर ई-कचरा बड़ी समस्या बनता जा रहा है। साल 2021-22 के दौरान देशभर में 3.2 मिलियन टन ई कचरे का उत्पादन हुआ। (फाइल फोटो)
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। जहां एक ओर देशभर में पुराने वाहनों को स्क्रैप में बदलने की प्रक्रिया जोर पकड़ रही है वहीं, ई कचरा भी बड़ी समस्या बन रहा है। आलम ये है कि ई कचरे की मात्रा तो साल दर साल बढ़ती जा रही है, किंतु इसके निस्तारण की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं बन पाई है। इसी का नतीजा है कि यह वायु के साथ साथ जल में भी जहर घोल रहा है।
देश में 3.2 मिलियन टन ई-कचरा निकला
गैर सरकारी संगठन सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई), टाक्सिक लिंक और आरई सस्टेनेबिलेटी लिमिटेड की अलग- अलग रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021-22 के दौरान देश में 3.2 मिलियन टन ई- कचरा उत्पन्न हुआ। विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) नियमों के तहत 350,000 टन ई- कचरे का संग्रहण हुआ और इसमें से 1.2 मिलियन रिसाइकिल किया गया। मतलब, 25 प्रतिशत का भी उचित ढंग से निस्तारण नहीं हो पा रहा। ऐसे में यह ई कचरा लैंडफिल साइटों और जलाशयों में पहुंचकर जल एवं वायु दोनों को ही प्रदूषित कर रहा है।
20 राज्यों में केवल 400 डिस्मेंटलर और रिसाइकिल
स्थिति ये है कि 20 राज्यों-आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडू, यूपी, तेलंगाना, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल में केवल 400 डिस्मेंटलर और रिसाइकिलर (पर्यावरण अनुकूल निस्तारण एवं पुन: उपयोग करने वाले) हैं। इनकी सालाना प्रोसेसिंग क्षमता भी 10,68,542.72 टन ही है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 116 डिस्मेंटलर हैं।
दिल्ली में 95 प्रतिशत से ज्यादा ई कचरा नहीं हो पाता निस्तारण
दूसरी तरफ गुजरात में ज्यादातर ई कचरे की प्रोसेसिंग की जाती है। कर्नाटक दूसरे, उत्तराखंड तीसरे, तेलंगाना चौथे और तमिलनाडू पांचवें नंबर पर है। देश की राजधानी दिल्ली में सालाना दो लाख टन तक ई कचरा निकलता है, लेकिन 95 प्रतिशत से अधिक कचरे का निस्तारण ही नहीं हो पाता। हैरत की बात यह भी कि देश में उत्पन्न कुल ई कचरे में पांच प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी दिल्ली की होती है।
इस बारे में जानकारी देते हुए आरई सस्टेनेबिलेटी लिमिटेड के सीईओ, मसूद मलिक ने कहा- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) की कवरेज और प्रवर्तन को और अधिक कठोर करने की जरूरत है। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की भी आवश्यकता है जिसमें निर्माताओं, खुदरा विक्रेताओं, ई-कामर्स प्लेटफार्म और उपभोक्ताओं के बीच एकीकृत रिवर्स लाजिस्टिक्स व एकत्रीकरण प्रक्रियाएं एकीकृत हों। निर्माताओं को उपकरणों के जीवन चक्र को लंबा करने व बाद में उनके कचरे को एकत्रित कर उसके निस्तारण की व्यवस्था करने की भी आवश्यकता है।