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Delhi MCD Politics: समीकरण न बदले इसलिए साधी चुप्पी, निगम की कई सीटें रिक्त

दिल्ली के तीनों नगर निगमों की एक दर्जन सीटें रिक्त हैं पर किसी भी कोने में उपचुनाव की सुगबुगाहट नहीं है। सभी पक्ष शांत हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 24 Aug 2020 03:20 PM (IST)Updated: Mon, 24 Aug 2020 03:20 PM (IST)
Delhi MCD Politics: समीकरण न बदले इसलिए साधी चुप्पी, निगम की कई सीटें रिक्त

नई दिल्ली [निहाल सिंह]। राजनीतिक दलों की महत्ता इससे पता चलती है कि उसके पास सदन में संख्याबल कितना है? वहीं राजधानी में एक दर्जन निगम की सीटें खाली होने के बाद भी कोई राजनीतिक दल चुनाव कराने के लिए का बल नहीं दिखा रहा है जबकि पार्षदों के विधायक बनने के चलते दिल्ली के तीनों नगर निगमों की एक दर्जन सीटें रिक्त हैं पर किसी भी कोने में उपचुनाव की सुगबुगाहट नहीं है। सभी पक्ष शांत हैं।

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असल में डेढ़ वर्ष बाद निगम के आम चुनाव होने हैं। इस वजह से राजनीतिक दल इस चुनाव से घबरा रहे हैं। उन्हें डर इन सीटों के परिणाम को लेकर है। अगर चुनाव में कूदे तो इस नतीजों का असर 2022 में होने वाले निगम चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता हैं। इसलिए भाजपा-कांग्रेस और आप तक ने चुप्पी साध रखी है और कोई भी पार्टी चुनाव की मांग चुनाव आयोग से नहीं कर रही है।

गले की फांस बने प्रस्ताव

उत्तरी दिल्ली नगर निगम में आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए बीते माह से नए कर लगाने और वर्तमान करों में वृद्धि के लाए गए प्रस्ताव सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की गले की फांस बन गए हैं। आलम अब यह हो गया है कि भाजपा न इन प्रस्तावों को पास कर पा रही है और न ही रद कर पा रही है। इसकी वजह आम आदमी पार्टी (आप) का इन करों को लेकर उसके खिलाफ मोर्चा खोलना है। इन प्रस्तावों को मंजूर किया जाता या फिर रद, यह तो स्थायी समिति के पटल पर प्रस्तावों को रखे जाने के बाद ही पता चलता, लेकिन आप ने बैठक से पहले ही मीडिया रिपोर्ट के आधार पर इन प्रस्तावों का विरोध शुरू कर दिया है। इसलिए स्थायी समिति की दो बैठकें हो जाने के बाद भी सत्तारूढ़ भाजपा आप को राजनीतिक लाभ मिलने से बचाने के लिए फैसला नहीं ले पा रही है।

अपनों से ही लगी श्रेय लेने की होड़

नगर निगमों और राज्य सरकार में अच्छे कामों के श्रेय लेने की होड़ मची रहती है। बीते दिनों कोरोना संक्रमण कम होने पर दिल्ली सरकार में सत्ताधारी आप और विपक्षी भाजपा में इस श्रेय लेने की होड़ खुले तौर पर दिखाई दी। आप ने इसे मुख्यमंत्री केजरीवाल के मॉडल का कमाल बताया तो वहीं दिल्ली के भाजपा नेताओं ने इसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप की देन बताया। इससे इतर, दिल्ली में भाजपा के महापौरों के बीच भी श्रेय लेने की होड़ तेज है।

यही वजह है कि डेंगू के खिलाफ तीनों नगर निगम की संयुक्त प्रेसवार्ता हुई तो उसमें दक्षिणी दिल्ली की महापौर अनामिका नहीं पहुंची। अनामिका के करीबियों को लगता है कि संयुक्त प्रेस वार्ताओं में जय प्रकाश सारा श्रेय खुद ले जाते हैं, बाकि महापौरों के हाथ ठेंगा लगता है। इस प्रकरण की चर्चा नगर निगम के गलियारे में चटखारे के साथ खूब है।

स्वच्छता सर्वेक्षण से खुल गई पोल

दिल्ली में स्वच्छता सर्वेक्षण ने दिल्ली के तीनों नगर निगमों की पोल खोल दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुहिम को खुद पार्टी के सत्ताधारी नगर निगमों ने ठेंगे पर रखा है। वैसे, यह पहली बार नहीं हैं जब इस मामले में दिल्ली के कई निकाय देशभर में फिसड्डी साबित हुए हैं। देश की राजधानी का निकाय होने के बावजूद पांच वर्षो से ये ऐसा ही प्रदर्शन दोहराते आ रहे हैं। यह स्थिति तब है जबकि दिल्ली से ही स्वच्छ भारत मिशन का श्रीगणेश हुआ।

पूर्वी से लेकर दक्षिणी और उत्तरी निगम सभी की बदतर हालत सालों से बरकरार है। ये नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) से भी सबक सीखने को तैयार नहीं है जबकि केंद्र सरकार इनको संसाधन भी उपलब्ध करा रही है। अब इस सर्वेक्षण परिणाम पर जहां सत्तारूढ़ भाजपा बंगले झांक रही है तो विपक्ष हमलावर है। चुनाव से पहले उन्हें सही मौका हाथ लगा है।

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