जानिए, अभिशाप से वरदान में कैसे तब्दील होगी पराली, मालामाल होंगे किसान, प्रदूषण पर ब्रेक
अब पराली किसानों के लिए आमदनी का स्रोत बन सकती है । इससे डिस्पोजल बर्तनों का निर्माण होगा ।
नई दिल्ली [ जेएनएन ]। धान की फसल के बाद किसानों के लिए पराली का निस्तारण एक चुनौती पूर्ण काम होता है। अधिकतर किसान पराली जला देते हैं, लेकिन यह तरीका प्रदूषण का कारण बनता है। आइआइटी दिल्ली की प्रोफेसर व छात्रों ने पराली के निष्पादन और निस्तारण का बेहतरीन व सस्ता तरीका खोज निकाला है। अब पराली किसानों के लिए आमदनी का स्रोत बन सकती है और लोग इससे बने डिस्पोजल बर्तनों का प्रयोग कर प्लास्टिक को न कह सकते हैं।
आइआइटी दिल्ली में 21 अप्रैल को होने वाले ओपन हॉउस से पहले कई नवाचार प्रदर्शित किए गए। आइआइटी दिल्ली के सेंटर फॉर बॉयोमेडिकल इंजीनियरिंग की प्रोफेसर नीतू सिंह व छात्र अंकुर कुमार व प्राचीर दत्ता ने पराली के निष्पादन का तरीका खोज निकाला है। उनकी इस खोज से प्लास्टिक से बने डिस्पोजल बर्तनों (कप, कटोरी, प्लेट आदि) का विकल्प भी मिल गया है।
इस बाबत प्रो. नीतू सिंह ने बताया कि पराली को पर्यावरण अनुकूल केमिकल के जरिये प्रोसेस कर पल्प बनाया जाता है। इस पल्प को कई उत्पादों के प्रयोग में लिया जा सकता है। किसान इस पल्प को बेच भी सकते हैं, जिसकी बाजार में कीमत 45 रुपये किलोग्राम तक मिल सकती है जबकि पल्प से डिस्पोजल बर्तन भी आसानी से बनाए जा सकते हैं।
अभी 100 फीसद पराली से बने डिस्पोजल बर्तन बाजार में सीमित मात्रा में है, लेकिन उनकी कीमत बहुत अधिक है। हमारे इस केमिकल के जरिये बनाए गए पल्प से कम कीमत में 100 फीसद शुद्ध डिस्पोजल बर्तन बनाए जा सकते हैं। इस केमिकल को पेटेंट कराने के लिए हमने आवेदन कर दिया है।
सौर ऊर्जा से चलेगा 'हरित जेनरेटर'
आइआइटी दिल्ली ने सौर ऊर्जा को एकत्रित करते हुए लेड रहित बैटरी बनाने में सफलता प्राप्त की है। यह बैटरी हरित जेनरेटर की तरह भी काम कर सकती है। आइआइटी दिल्ली केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अनिल वर्मा व छात्र डॉ. राजीव व मानशू ने यह फ्लो बैटरी बनाई है।
इसको लेकर प्रो. वर्मा ने बताया कि अभी सौर, पवन और पानी से बनी बिजली को एकत्रित कर लेड एसिड से बनने वाली बैटरी प्रयोग में लाई जाती है, जिसका जीवन कम होता है और इसे बनाने व इसके निस्तारण से जल, वायु और भूमि प्रदूषित होती है। इसके मद्देनजर यह फ्लो बैटरी बनाई है।
इसमें वेनेडियम रेडॉक्स में ऊर्जा को संरक्षित रखा जाता है। इसके बहाने संरक्षित ऊर्जा बिजली के रूप में प्राप्त की जाती है। इस बैटरी का प्रयोग 20 सालों तक किया जा सकता है जबकि इसे जेनरेटर की तरह भी प्रयोग किया जा सकता है। भारत में इसके पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया गया है।
ऊबड़-खाबड़ रास्तों को भी आसान बनाएगी यह बैसाखी
दिव्यांगजनों के लिए उनकी बैसाखी ही उनके कदम होती है, लेकिन उनके कदम अक्सर ऊबड़-खाबड़ या पथरीले रास्तों में स्थिर हो जाते हैं। इस दौरान बैसाखी उन्हें आफत सी लगती है। इस समस्या से निपटने के लिए आइआइटी दिल्ली मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जेपी खटैट व उनके छात्र अरविंद और श्रीनिवास ने नए डिजाइन की बैसाखी (फ्लेक्समोटिव) बनाई है।
यह आरामदेह बैसाखी किसी भी रास्ते में चलने लायक है। इस पर प्रो. जेपी खटैट ने कहा कि आम बैसाखी में कई महत्वपूर्ण बदलाव कर नई बैसाखी बनाई गई है। आम बैसाखी में नीचे रबड़ लगी होती है, जो ऊबड़-खाबड़ रास्तों या पथरीले रास्तों में सहायक नहीं होती है। इस कारण दिव्यांगों को अधिक ऊर्जा का प्रयोग करना पड़ता है।
वहीं आम बैसाखी की बनावट का विपरीत असर हाथों व कंधों पर भी पड़ता है, जिससे कई बार दिव्यांगों की नस दब जाती है। इसके मद्देनजर हमने नई बैसाखी तैयार की है। नई बैसाखी के नीचे लोहे की पत्तियों से डिजाइन बनाया गया है।
ये पत्तियां स्प्रिंग की तरह कार्य करती हैं और सभी तरह की सतहों पर चलने में सहायक होती हैं। वहीं, इससे मरीज के कंधों व हाथों पर पर अधिक दबाव नहीं पड़ता है। उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भी शामिल है। नई बैसाखी को 15 अगस्त 2018 से बाजार में लाने की योजना है। प्रयास है कि इसका दाम एक हजार रुपये तक रखा जाए।