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    1500 रुपये लेकर भारत आए Dharampal Gulati ने चलाया था तांगा, संघर्ष से रचा इतिहास; खड़ा किया अरबों का कारोबार

    By Jp YadavEdited By:
    Updated: Sat, 06 Aug 2022 10:52 AM (IST)

    Dharampal Gulati कम पढ़े-लिखे महाशय धर्मपाल गुलाटी ने कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारते हुए कामयाबी का वह बेमिसाल नमूना पेश किया जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है। उनकी बनाई कंपनी एमडीएच का देश-दुनिया में बड़ा नाम है।

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    1500 रुपये लेकर भारत आए Dharampal Gulati को चलाना पड़ा तांगा, संघर्ष से रचा इतिहास; खड़ा किया अरबों का कारोबार

    नई दिल्ली [प्रियंका मेहता दुबे]। Dharampal Gulati: दिल्ली की मिट्टी पर चंद पैसे के साथ कदम रखने वाले कई शख्स ने कारोबार की दुनिया में बुलंदियों को छुआ। इससे न सिर्फ उनके रहन-सहन में बदलाव आया बल्कि हजारों लोगों के लिए रोजगार के साधन भी उपलब्ध कराए। इनके इसी प्रयास से राजधानी दिल्ली की तस्वीर धीरे-धीरे बदलती गई। ऐसी ही शख्सियतों में से एक हैं महाशय धर्मपाल गुलाटी।

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    डेढ़ हजार रुपये लेकर आए थे लोग

    महाशय धर्मपाल की बेटी किरण ग्रोवर ने बताया कि उनके पिता भारत के बंटवारे के समय सियालकोट से दिल्ली महज 1500 रुपये लेकर आये थे। यहां आते ही गुजर बसर करने की चिंता ने सताया तो सबसे पहले एक तांगा खरीदा और नई दिल्ली से कुतब रोड व पहाड़गंज तक चलाना शुरू किया। इस दौरान वे सड़क पर काफी देर तक ‘साब..दो आने सवारी, दो आने सवारी’ चिल्लाते रहते थे, लेकिन उस दौरान राजधानी की सड़कें सुनसान रहती थी, ऐसे में कई बार सवारी का इंतजार घंटों करना पड़ता था। ऐसी विषम परिस्थिति में कई बार वे हताश हो जाते थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

    खुद भी रोजाना करते थे 16-18 घंटे काम

    उन्होंने राजधानी दिल्ली की जरूरत पर ध्यान लगाया और अपने मन में बड़े सपने के साथ 'महाशय दी हट्टी' के नाम से मसाले की दुकान खोल ली। वक्त की नजाकत को समझते हुए महाशय ने मसाले का कारोबार शुरू करने के बाद वर्ष 1959 में कीर्ति नगर में पहली फैक्ट्री खोली। उस समय उनके साथ सिर्फ दस लोग थे। इन दस लोगों के साथ मिलकर खुद भी 16 से 18 घंटे रोजाना काम करते थे।

    स्वास्थ्य सेवाएं देने में भी पीछे नहीं रहे

    समय के साथ स्थितियां बदली और विकास की रफ्तार तेज हुई। महाशय जी का मसाले का कारोबार फलने-फूलने लगा और आज पूरे देश में एमडीएच की 22 फैक्ट्रियां हैं। साथ ही कई अन्य क्षेत्र में भी महाशय जी ने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी एमडीएच काम किया। फिलहाल जनकपुरी में माता चनन देवी अस्पताल, माता लीलावंती लेबेरेट्री, एमडीएच न्यूरोसाइंस संस्थान नई दिल्ली, महाशय धर्मपाल एमडीएच आरोग्य मंदिर सेक्टर 76 फरीदाबाद, महाशय संजीव गुलाटी आरोग्य केंद्र ऋषिकेश, महाशय धर्मपाल हृदय संस्थान सी-1 जनकपुरी में है।

    संघर्ष के दिनों में रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां

    इसके अलावा द्वारका में एक स्कूल है। महाशय जी कहा करते थे कि उस दौर में राजधानी दिल्ली में काफी कठिनाइयां थीं। परिवहन की समुचित व्यवस्था नहीं थी। शहरी इलाके बहुत ही कम थे। ऐसे में चुनौतियां काफी ज्यादा थी, लेकिन वे हर समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां जरूर याद रखते थे, ‘मानव जब जोर लगाता है, पत्थर भी पानी बन जाता है।’ समय के साथ राजधानी में सड़कों का जाल बनाया गया। परिवहन की सुविधा बेहतर हुई और इसका भरपूर लाभ उठाते हुए उन्होंने अपने व्यवसाय को पंख दिए। आज हमारे बीच महाशय धर्मपाल गुलाटी नहीं हैं, लेकिन उनका दृढ़निश्चय, मेहनत व लगन आज भी हमें प्रेरित करती है।

    कारोबार में खूब चलता था महाशय का दिमाग

    किरण ग्रोवर ने बताया कि पहले पिताजी बाहर से मसाला पिसवाते थे, लेकिन मिलावट होने के चलते उन्होंने खुद कीर्ति नगर में मसाला पीसने का कार्य शुरू कर दिया। वे कभी भी गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं करते थे। दिल्ली में आने के बाद मसाले के पैकेट बनाकर दिल्ली के साथ-साथ पंजाब भी भेजा जाता था। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी का दिमाग कारोबार में बहुत चलता था। 1958-59 में ही समाचार पत्र में विज्ञापन देकर मसाले का प्रचार प्रसार करते थे और इसका खूब फायदा उन्हें मिला।

    सेहत को लेकर फिक्रमंद रहते थे महाशय

    उन्होंने कहा कि दिल्ली में उस दौरान इंडिया गेट घूमने जाती थी। एक बार तांगा से हम सभी इंडिया गेट गए थे। वहां पर पुलिसकर्मी ज्यादा देर तक तांगा को रुकने नहीं देते थे। हमलोग कुछ देर घूमकर वहां से घर आ जाते थे। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी सेहत को लेकर काफी गंभीर रहते थे।

    पंजाब के बाद आए थे दिल्ली

    1970 के आसपास बुद्ध जयंती पार्क का निर्माण किया गया था। हम सभी कभी कभार उस पार्क में जाते और काफी देर तक बैठते थे। सियालकोट से पहले पंजाब आए और उसके बाद दिल्ली आना हुआ। दिल्ली में करोलबाग इलाके में काफी दिनों तक रहे। इसके साथ ही सराय रोहिल्ला के पास उनके दादाजी ने एक मकान बनवाया था। धीरे-धीरे जिस तरह दिल्ली बदलती गई उसी तरह पिताजी के मसाले का कारोबार बढ़ता गया।