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22 अक्टूबर तक न्यायिक हिरासत में रहेगा दंगा आरोपित शरजील इमाम

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इमाम को गत 25 अगस्त को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने इमाम के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी मुकदमा दर्ज किया हुआ है। स्पेशल सेल ने पहले भी दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में कोर्ट में आरोप पत्र दायर किए थे।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 10:40 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 10:40 PM (IST)
दंगा आरोपित शरजील इमाम की मुश्‍किलें बढ़ने वाली है। फाइल फोटो।

नई दिल्ली, शुजाउद्दीन। दिल्ली दंगों के आरोपित व देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम की न्यायिक हिरासत की समय सीमा कड़कड़डूमा कोर्ट ने 22 अक्टूबर तक बढ़ा दी। बृहस्पतिवार को पुलिस ने इमाम को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत में पेश किया। पुलिस ने कोर्ट से आरोपित की हिरासत अवधि बढ़ाने की अपील की थी।

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दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इमाम को गत 25 अगस्त को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने इमाम के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत भी मुकदमा दर्ज किया हुआ है। स्पेशल सेल ने कुछ ही दिनों पहले दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में कोर्ट में आरोप पत्र दायर किए थे। इमाम पर भी उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों की साजिश रचने का आरोप है। आरोपित की ओर से पेश वकील सुरभि धर ने हिरासत अवधि बढ़ाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरोप पत्र में अभी इमाम का नाम नहीं है। पुलिस की ओर से पेश वकील ने कहा कि वह समझ नहीं पा रही कोर्ट में उन्हें अभी सुना नहीं जाना है, फिर भी वह बचाव में क्यों खड़ी हुई हैं।

बता दें गत तीन सितंबर को इमाम को कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा था। 23 फरवरी को उत्तरी पूर्वी दिल्ली में सीएए के नाम पर दंगे हुए थे, जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। बड़ी संख्या में लोग घायल हुए थे।

आरोपित की पहचान करने के लिए पुलिस किसी भी तकनीक को अपना सकती है : कोर्ट

इधर, उत्तरी पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे व दिल्ली पुलिस के हेडकांस्टेल रतनलाल की हत्या के आरोपित मुहम्मद आरिफ की जमानत याचिका को कड़कड़डूमा कोर्ट ने खारिज कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की अदालत ने कहा कि आरोपित पर लगे आराेप बेहद गंभीर है। पुलिस ने आरोपित के खिलाफ जो सुबूत पेश किए हैं, उस आधार पर उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।

आरोपित के वकील महमूद पारचा ने कोर्ट से कहा कि डिजिटल पहचान कानून में कोई मायने नहीं रखती। डिजिटल साक्ष्यों के आधार पर आरोपित बनाया जाना कानूनी रूप से गलत है। पुलिस के वकील ने कहा कि आरोपित पर लूट, आगजनी, हत्या प्रयास सहित कई गंभीर आरोप हैं।

पुलिस ने आरोपित की डिजिटल तकनीक से पहचान की है। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आरोपित की पहचान के लिए पुलिस किसी भी तकनीक का सहारा ले सकती है। समय के साथ जांच के तरीके भी बदले हैं। ऐसे में कानून ने डिजिटल पहचान के वर्तमान तरीकों को मान्यता दी है। यह जरूरी नहीं है कि आरोपित की पहचान के लिए पुरानी पद्धति शिनाख्त परेड (टीआईपी) काे ही अपना जाए। कोर्ट ने कहा कि यह मामला जांच के शुरुआती स्तर पर है, जांच में पुलिस विभिन्न तरीके अपना रही है। ऐसे में जांच में खामियां नहीं निकाली जानी चाहिए। 

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