Delhi Air Pollution: दिल्लीवासियों को इस साल तीन दिन मिली साफ हवा, ग्रेप में किया गया बदलाव
दिल्ली में स्वच्छता के स्तर में थोड़ा सुधार 2022 में देखने को मिला लेकिन अभी बहुत काम की दरकार है। स्वच्छता सर्वेक्षण में जहां एमसीडी की रैकिंग में मामूली सुधार हुआ तो वहीं नई दिल्ली नगरपालिका परिषद जैसे इलाके में ड्राइंग का गिरना चिंताजनक है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। पर्यावरण की दृष्टि से वर्ष 2022 पिछले चार वर्षों में फिसड्डी साबित हुआ। पूरे साल में केवल तीन दिन दिल्लीवासियों को साफ हवा मिली। 2019 के बाद से इस साल स्वच्छ हवा वाले दिन घट गए, जबकि खराब हवा वाले दिन बढ़ गए। यमुना प्रदूषित हो गई। इस वर्ष की सबसे अहम घटना ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान में बदलाव एवं सेंट्रल रिज से विलायती कीकर हटाने की प्रक्रिया का शुरू होना रही।
वायु गणवत्ता प्रबंधन आयोग ने इस वर्ष लिए ये निर्णय
दिल्ली एनसीआर में 31 दिसंबर 2022 के बाद गाड़ियों की वैध पीयूसी दिखाने के बाद ही लोगों ईंधन मिलेगा। पीयूसी केंद्रों की निगरानी के लिए 31 मार्च 2023 तक हर छह महीने में इनका आडिट अनिवार्य किया गया है। तेल कंपिनयों, राज्यों की सरकारें और एनसीआर के परिवहन विभागों को यह जानकारी दे दी गई है।
दिल्ली के आसपास के चार जिलों मं चल रहे डीजल आटो को 31 दिसंबर 2024 तक बाहर करने का लक्ष्य तय किया गया है। डीजल आटो राजधानी में पहले ही प्रतिबंधित है। अब 2024 के अंत तक यह गुरुग्राम, फरीदाबाद, गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद में भी नहीं चल सकेंगे। एनसीआर के अन्य जिलों से इन्हें बाहर करने के लिए 31 दिसंबर 2026 तक की समय सीमा तय की गई है।
दिल्ली और एनसीआर में 31 दिसंबर 2022 के बाद जहां भी पीएनजी सप्लाई नहीं होगी वहां बायोमास ईधन का इस्तेमाल प्रदूषण कंट्रोल सिस्टम के साथ होगा। वहीं 31 दिसंबर 2022 से ग्रेप की अवधि में कोयले का इस्तेमाल दिल्ली एनसीआर में पूरी तरह बंद होगा।
सड़कों की धूल कम करने के लिए दिल्ली एनसीआर की सभी सेंट्रल वर्ज के 50 प्रतिशत हिस्से को 2022 के अंत तक और 100 प्रतिशत हिस्से को 2023 के अंत तक पक्का या हरा कर दिया जाएगा। सड़कों के किनारे और साइडवाक के 20 प्रतिशत हिस्से को दिसंबर 22 तक, 50 प्रतिशत हिस्से को दिसंबर 2024 तक और 100 प्रतिशत हिस्से को दिसंबर 26 तक पक्का या ग्रीन कर दिया जाएगा। दिसंबर 22 तक राजधानी में सभी चयनित सड़कों की सफाई मशीनों से होंगी। इसके लिए मशीनों की व्यवस्था करने का लक्ष्य 2026 तक तय हुआ है।
प्रदूषण से यूं चली जंग
एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक की 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लग गया। हालांकि, यह पूरी तरह से लागू नहीं हो सका और विभिन्न स्तरों पर नियमों का उल्लंघन देखा जा रहा है।
राउज एवेन्यू में तैयार हो रही सुपर साइट और मोबाइल लैब इस वर्ष भी शुरू नहीं हो पाई। हालांकि, रियल टाइम सोर्स अपोर्शमेंन्ट अध्ययन शुरू हो गया। इससे पता चलेगा कि कहां किस वजह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
पिछले वर्ष की तुलना में पराली इस साल काफी कम जली। इसलिए इमरजेंसी वाले हालात भी नहीं बने। दिल्ली के गैस चैंबर बनने की स्थिति भी उत्पन्न नहीं हुई।
पौधारोपण और स्माग टावर, दोनों की ही रिपोर्ट आई। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के मुताबिक स्थिति संतोषजनक रही। l वन विभाग द्वारा हाई कोर्ट में जमा की गई रिपोर्ट में सामने आया कि दिल्ली में हर घंटे तीन पेड़ काटे जाते हैं।
प्रभावी नहीं वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के उपाय
ईपीसीए को खत्म कर दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव एम एम कुट्टी की अध्यक्षता में बनाया गया वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रभावी उपाय कर पाने में बहुत सफल नहीं हो रहा है। प्रदूषण का स्तर बढ़ जाने पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध भी मजाक बन रहे हैं। प्रदूषण घट जाता है, लेकिन प्रतिबंध लगे रहते हैं।
कभी प्रतिबंध हटा दिए जाते हैं और प्रदूषण बना रहता है। दोनों के बीच तालमेल अक्सर दिखाई नहीं देता। लगता है कि सीएक्यूएम जमीनी हकीकत पर कम और दाएं- बाएं से मिले दिशा-निर्देशों तथा ज्ञापन-अनुरोधों पर ज्यादा चलता है। ईपीसीए था तो उसके अध्यक्ष भूरेलाल आधी रात को भी सड़कों पर नजर आ जाते थे, लेकिन सीएक्यूएम के पदाधिकारी फोन पर भी नहीं मिलते।
थोड़ा हुआ सुधार, बहुत काम की है दरकार
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्वच्छता के स्तर में थोड़ा सुधार 2022 में देखने को मिला, लेकिन अभी बहुत काम की दरकार है। स्वच्छता सर्वेक्षण में जहां एमसीडी की रैकिंग में मामूली सुधार हुआ, तो वहीं नई दिल्ली नगरपालिका परिषद जैसे इलाके में ड्राइंग का गिरना चिंताजनक है। वह भी तब, जबकि एनडीएमसी के पास न तो संसाधनों की कोई कमी है और न ही धन की कोई कमी है।
रैंकिंग का गिरना दिखाता है कि अधिकारियों में और कर्मचारियों में मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता है, क्योंकि एनडीएमसी पहले भी नंबर एक पर आता रहा है, जबकि स्वच्छता सर्वेक्षण के चलते पूरे देश में स्थानीय निकाय अलग-अलग प्रयोग कर रहे हों और रैंकिंग में सुधार के सकारात्मक परिणाम भी आ रहे हों। ऐसी स्थिति में एनडीएमसी की स्वच्छता रैंकिंग गिरना अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
स्वच्छता रैंकिंग में खराब प्रदर्शन के बाद भी एनडीएमसी के इलाके में सार्वजनिक शौचालय की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आ रहा है। इससे पता चलता है कि अधिकारी रैंकिंग में गिरावट से कोई सबक लेना नहीं चाहते हैं। हालांकि दिल्ली नगर निगम के पूर्णकालिक नगर निगम की रैंकिंग में सुधार हुआ है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं है। यह बात सही है कि निगम के पास फंड की समस्या है, लेकिन केवल इसका बहाना लेकर निगम अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।