दिल्ली-NCR में नाबालिग क्यों पकड़ रहे अपराध की राह, पूर्व पुलिस अधिकारी ने बताई वजह
अपराध की राह पर चलने वाले 99 फीसद किशोर झुग्गी-बस्ती व गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले होते हैं।
नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में तमाम ऐसे अपराध हैं, जिनमें आमतौर पर नाबालिग अपराधी ही संलिप्त पाए जाते हैं। चाहे वह सड़कों पर होने वाला असंगठित अपराध हो, ठकठक गैंग जैसा संगठित अपराध हो या बड़े गिरोहों के गुर्गे के रूप में काम करने की बात हो, इनमें बड़ी संख्या में नाबालिग अपराधी पकड़े जाते हैं।
नाबालिगों के अपराध के रास्ते पर जाने के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण आर्थिक अभाव व अशिक्षित होना। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण झुग्गियों इत्यादि में रहने के दौरान नशे के प्रति झुकाव नाबालिगों को अपराध की ओर धकेल देता है। वहीं, महानगरीय सभ्यता के कारण भी किशोर अपराध की दलदल में धंसते जाते हैं।
दिल्ली-एनसीआर जैसे महानगरीय क्षेत्र में अभिभावकों के पास अपने बच्चों पर ध्यान देने, उनकी समस्याओं को जानने और उसे दूर करने के लिए समय नहीं है। ऐसे बच्चों के गलत संगत में पड़कर अपराध के रास्ते पर जाने की आशंका ज्यादा रहती है। अपराध की राह पर चलने वाले 99 फीसद किशोर झुग्गी-बस्ती व गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले होते हैं। शिक्षा व पैसे के अभाव में किशोर अपने से अधिक पैसे वालों को देखकर उन्हीं की तरह जीवन जीने की इच्छा पालने लगते हैं और इस इच्छापूर्ति के लिए किशोर अपराध का रास्ता चुन बैठते हैं। तत्काल जरूरतें पूरी करने का उन्हें यही एक सरल मार्ग नजर आता है और वे बिना सोचे समझे इस मार्ग पर चलने लगते हैं।
किशोर उम्र में अपराध करने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न आपराधिक गिरोह से जुड़े बदमाश उनके दिमाग में यह बात बैठा देते हैं कि अगर वे किसी तरह का अपराध करेंगे भी तो उन्हें कठोर सजा नहीं मिलेगी और वे जल्दी छूट जाएंगे। अगर संगीन अपराध नहीं है तो नाबालिगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज नहीं होता है, इसलिए ये अपराधी अपने नाबालिग होने का लाभ उठाते हैं।
गिरोह के सरगना अपने विरोधियों को सबक सिखाने व अन्य किसी भी तरह की आपराधिक वारदात के लिए किशोरों को तरह-तरह का लालच देकर उनसे वारदात कराते हैं। किशोरों से अपराध करवाना आपराधिक गिरोहों के लिए बहुत आसान भी होता है। थोड़े से पैसे, अच्छा खाना, शराब व अन्य नशा उपलब्ध कराने व हथियार देने पर किशोर जोश में बड़ी से बड़ी वारदात कर देते हैं। सजा मिलने पर जहां बालिग अपराधियों को जेल भेजा दिया जाता है, वहीं नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजा जाता है, जहां उन्हें हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं और वे जल्दी मुक्त भी हो जाते हैं।
आपराधिक मानसिकता हो जाने के कारण मामूली सजा के बाद छूटने पर ये नाबालिग अपराधी आमतौर पर सुधरने के बजाय अपराध की दलदल में धंसते जाते हैं। कई नाबालिग अपराधियों के पकड़े जाने पर पूछताछ में सामने आता है कि वे अनेक वारदात को अंजाम दे चुके हैं। ऐसे नाबालिग अपराधियों के सुधरने की संभावना बहुत कम होती है। वहीं, किसी गिरोह के साथ मिलकर काम करने वाले नाबालिग अपराधी बालिग होते होते परिपक्व अपराधी में तब्दील हो जाते हैं, जो आगे भी समाज के लिए समस्या की वजह बनते हैं। दिल्ली में सड़कों पर होने वाले अपराध बहुत बड़ी समस्या है।
दिल्ली का वीवीआइपी इलाका हो, पॉश कॉलोनी या अन्य जगह। लोग कहीं भी सड़कों पर सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। बाइक सवार झपटमार किसी भी इलाके से राह चलते पुरुष व महिलाओं से चेन, मोबाइल व पर्स आदि झपटकर फरार हो जाते हैं। लूटपाट व झपटमारी की सर्वाधिक वारदात में किशोर ही पकड़े जाते हैं।
( दिल्ली पुलिस के पूर्व सहायक आयुक्त ओपी सिंह की संवाददाता राकेश कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)
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