Delhi News: शाहीन बाग और कृषि कानून विरोधी आंदोलन ने राजधानी दिल्ली में फैलाई भारी अशांति
कृषि कानून विरोधी आंदोलन ने राजधानी में भारी अशांति फैलाई है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन की अगर बात करें तो उस दौरान रास्ते बंद होने से स्थानीय लोगों को आवाजाही में काफी दिक्कतें आईं।
नई दिल्ली। दिल्ली में अक्सर छोटे-बड़े आंदोलन होते रहते हैं, लेकिन शाहीन बाग और वर्तमान में चल रहा कृषि कानून विरोधी आंदोलन ने राजधानी में भारी अशांति फैलाई है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन की अगर बात करें तो उस दौरान रास्ते बंद होने से स्थानीय लोगों को आवाजाही में काफी दिक्कतें आईं। अब गत दो महीने से ज्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन के कारण लोगों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य रास्ते बंद होने से पंजाब और हरियाणा से रोजमर्रा का सामान नहीं आ पा रहा है। इस वजह से कई चीजों के दाम बढ़ गए हैं। लोगों को भारी र्आिथक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। इसलिए अशांति या भारी आर्थिक नुकसान की आशंका वाले आंदोलनों को जल्द खत्म कराने की दिशा में काम किया जाना बेहद जरूरी है। राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण यहां विदेशी मेहमान आते रहते हैं। वीवीआइपी लोगों यहां रहते हैं, इसलिए राजधानी की सुरक्षा पुख्ता रखना भी जरूरी होता है। कोई भी आंदोलन जब लंबा चलता है तो उसमें उपद्रवी और अराजक तत्व शामिल होने लगते हैं। साथ ही देश को अस्थिर करने वाली ताकतें भी पर्दे के पीछे से उसे हवा देने लगती हैं, जो देशहित में नहीं है।
नहीं ली गई स्वीकृति
किसान आंदोलन के लिए पुलिस या किसी अन्य एजेंसी से आंदोलन की स्वीकृति नहीं ली गई। लिहाजा इसे अवैध कहना गलत नहीं होगा। चूंकि वहां भारी संख्या में आंदोलनकारी मौजूद हैं और उन्हें राजनीतिक दलों का समर्थन भी हासिल है इस स्थिति में पुलिस जबरन प्रदर्शन स्थल से लोगों को हटा भी नहीं सकती। हां, खास रणनीति बनाकर उन्हें को काबू में रखा जा सकता है। गणतंत्र दिवस के दिन हुई घटना दोबारा ना घटे, इसके लिए पुलिस को अपने सूचना तंत्र को और मजबूत करने की जरूरत है ताकि आंदोलनकारियों के बीच से मिली सूचना के आधार पर आगे का कार्यक्रम बनाकर उन्हेंं अशांति फैलाने से रोका जा सके।
कमजोर सूचना तंत्र का परिणाम
26 जनवरी के दिन आयोजित मुख्य परेड की सुरक्षा के मद्देनजर ज्यादातर पुलिसर्किमयों की ड्यूटी राजपथ व नई दिल्ली इलाके में लगी थी। बचे हुए बल को ट्रैक्टर परेड के लिए तय मार्ग पर लगाया गया था। इसी बीच, ट्रैक्टर परेड तय मार्ग छोड़कर दिल्ली में प्रवेश कर गई।
ट्रैक्टर परेड को लाल किले की तरफ ले जाने की सूचना के बाद पुलिस को उन मार्गों पर लगाया गया। हालांकि पहले भी वहां सुरक्षा के पर्याप्त उपाए किए गए थे, लेकिन उपद्रवी ट्रैक्टर से बैरिकेड्स हटाकर आगे बढ़ने में सफल हो गए। लाल किले पर भी वे मनमानी करने में कामयाब रहे।
यदि पुलिस का सूचना तंत्र पुख्ता होता तो तय स्थान से जैसे ही ट्रैक्टर परेड आगे बढ़ी, वैसे ही उसे रोका जा सकता था। घटना के बाद रास्ते में कटीले तार और बैरिकेड्स की जिस प्रकार की व्यवस्था पुलिस ने बार्डर पर अब की है यदि वह पहले की जाती तो गणतंत्र दिवस के दिन हुए हंगामे को रोका जा सकता था।
कार्रवाई का हो डर
इस प्रकार के आंदोलन को थकाने वाली रणनीति से काबू में किया जा सकता था। इसके तहत पुलिस आंदोलनकारी को एक रास्ते से दूसरे रास्ते पर घुमाती रहती है। इस बीच, पुलिस रास्ते में बचाव का काम करती है और घूमते रहने से आंदोलन करने वाले थक जाते हैं। लिहाजा वे अपने मूल उद्देश्य में सफल नहीं हो पाते।
अन्य उपाय के तहत कड़ी कार्रवाई का भय दिखाकर आंदोलनकारियों को काबू किया जाता है। मीडिया व अन्य माध्यम से उनसे शांति की अपील की जाती है।
(बालकृष्ण शर्मा, पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त, दिल्ली।)
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