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पेड़ों ने पहनी संदेशों की पोशाक, नहीं समझे तो संकट में पड़ जाएगा इंसान का अस्तित्व

वृक्षों पर पशु पक्षियों एवं खुद पौधों के मुखौटे बना लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसका मकसद लोगों खासकर बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।

By Amit MishraEdited By: Published: Fri, 08 Jun 2018 08:07 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jun 2018 07:00 AM (IST)
पेड़ों ने पहनी संदेशों की पोशाक, नहीं समझे तो संकट में पड़ जाएगा इंसान का अस्तित्व
पेड़ों ने पहनी संदेशों की पोशाक, नहीं समझे तो संकट में पड़ जाएगा इंसान का अस्तित्व

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। पेड़ों की पोशाकों से इतनी सी खबर मिल ही जाती है बदलने वाला है मौसम...। नए आवेजे कानों में लटकते देख कर कोयल खबर देती है बारी आम की आई है...। कि बस अब मौसम-ए-गर्मा शुरू हो गया...। गुलजार की शायरी इन पेड़ों को देख बेबाक सी फिर लबों पर आ रुकी...। बस फर्क सिर्फ इतना सा है यहां भी पेड़ पोशाक में लिपटे हैं। लेकिन मौसम की नहीं, संदेशों की पोशाक में जो बयां करते हैं अभिव्यक्ति अपने होने की...। ताकीद करते हैं अपने अस्तित्व को बचाने की...। बानगी करते हैं अपने महत्व की...। 

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मोड़ पे देखा है वह बूढ़ा-सा एक पेड़ कभी...वाकिफ है, बहुत सालों से...जान पहचान सी है उससे...छोटा था तब और आज मैं भी बड़ा हो गया...और देखो ये पेड़ भी अदब से झुक कर अभी तक छाया और फल बरसा रहा...। यहां देखो इन पेड़ों पर कहीं फुदकती गिलहरी तो कहीं बाघ खामोशी से बैठा...कहीं भालू भी इत्मीनान से सोया है...। ये सारी परिकल्पना अब पेड़ों पर उतर आई हैं। जीवंत हो उठी हैं। वही दृश्य बोल उठे हैं जो कभी इतिहास के बागों में साक्षात होते थे। जब मुगल बादशाह ही नहीं कलाकार, साहित्यकार भी बाग बगीचों के दीवाने थे। यही नहीं ब्रितानी सिपाहियों को ये बगीचे इस कदर पसंद आए थे कि शालीमार बाग को उन्होंने अस्थाई ठिकाना तक बना लिया था। लेकिन अब इस आपाधापी भरे जीवन में और कंक्रीट होते शहर में दिल को सुकून देते पक्षी व पौधे अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष किया कर रहे हैं। इन्हें बचाने के मकसद से दिल्ली के नगर निगमों ने एक अनूठी पहल की है। वृक्षों पर पशु पक्षियों एवं खुद पौधों के मुखौटे बना लोगों को जागरूक किया जा रहा है। इसका मकसद लोगों खासकर बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।

मुखौटों पर संदेश 

दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के उद्यान विभाग के निदेशक आलोक सिंह बताते हैं कि बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए हम एक ऐसी योजना बना रहे थे जिससे बच्चे ना केवल पेड़ों की जानकारी हासिल करें बल्कि पशुओं के बारे में जानने के लिए भी उत्सुक हों। योजना बनाने के दौरान ही एक दिन इंटरनेट पर मैंने कुछ तस्वीरें देखीं। ये तस्वीरें मुखौटो की थीं। मेरे दिमाग में यह विचार कौंधा कि यदि हम जानवरों, पौधों के काल्पनिक चेहरे का मुखौटा पौधों पर लगाएं तो लोग आकर्षित होंगे। विदेश में इस तरह के प्रयोग किए जाते रहे हैं।

यहां हुई पहल 

आलोक सिंह ने बताया कि द्वारका सेक्टर 6 और 19, 16, 14, कालकाजी, सुंदर नगर बाजार में मुखौटे लगाए गए हैं। इसके अलावा नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने लोदी गार्डन में पेड़ों पर मुखौटा लगाया है। बकौल आलोक सिंह द्वारका, कालकाजी, ग्रेटर कैलाश, हौजखास, वसंत विहार समेत कई अन्य इलाकों के आरडब्ल्यूए अपने यहां पार्कों में पेड़ों पर मुखौटा लगाना चाहते हैं। अगले कुछ महीनों में निगम अपने प्रमुख बाजारों जैसे लाजपत नगर, न्यू फ्रेंडस कॉलोनी, डिफेंस कॉलोनी, हौज खास, मुनिरका, कालकाजी, नेहरू प्लेस, ग्रेटर कैलाश के अंदर और आसपास के पेड़ों पर मुखौटे लगाए जाएंगे।

मानों भालू-शेर साक्षात बैठे हैं 

ये मुखौटे भालू, शेर, बाघ, खरगोश, बंदर समेत कई अन्य जानवरों के मुखौटे लगे हैं। द्वारका की सोसायटियों में पेड़ों पर बाघ, भालू के मुखौटे लगे हैं। नजफगढ़ जोन में करीब सौ पेड़ों पर इंसानों के मुखौटे सजाए गए हैं। कालकाजी में पेड़ों के काल्पनिक मुखौटे लगाए गए हैं। आलोक सिंह की मानें तो इन मुखौटों का मकसद यह है कि जब कोई बच्चा पार्क में आए तो वह मुखौटा देखकर आकर्षित हो। इस तरह मुखौटों के बहाने ही सही बच्चे अभिभावकों से इन पशुओं एवं फिर पेड़ों की जानकारी हासिल करेंगे। कई जगह इन पेड़ों के पास पर्यावरण संबंधी जानकारी भी लिखी गई है। जिसमें बताया गया है कि एक पेड़ किस तरह मनुष्य को फायदा पहुंचाता है।

समझ रहे प्रकृति का महत्व

द्वारका सेक्टर-14 स्थित राधिका अपार्टमेंट निवासी पूनम कहती हैं कि आज जहां द्वारका बसा है, वहां पहले खेत व घने जंगल होते थे। बीते वक्त के साथ इनकी जगह कंक्रीट से बनी बहुमंजिला इमारतों ने ले ली। आज बच्चों के लिए यह समझना काफी कठिन है, पेड़ हमें केवल फल या फूल ही नहीं देते हैं बल्कि ये कई पशुओं व पक्षियों के लिए आसरा भी होते हैं। इस तरह की प्रतिकृतियों के माध्यम से बच्चे वन्य जीवन को आसानी से समझ पाएंगे और हरियाली के प्रति उनका नजरिया भी बदलेगा। वे यह समझ सकेंगे कि हरियाली केवल शौक या दिखावे की ही नहीं बल्कि कई मायने में जरूरत है। यदि हमें प्रकृति की विविधता को कायम रखना है तो हरियाली के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। हमें यह समझना होगा कि हरियाली नहीं तो कई जंतुओं या खुद इंसान का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा।

गार्डन सिटी का सपना 

अरावली में खनन हो या फिर दिल्ली की सरजमीं पर लगातार बसती जा रही अवैध कॉलोनियां। इनकी वजह से हरियाली का आंचल सिकुड़ता जा रहा है। शायद यही कारण है कि जब 1911 में लुटियन नई दिल्ली बसाने की योजना पर अमल कर रहे थे तो वो इसे गार्डन सिटी बनाना चाहते थे। पूरे इलाके में 13 प्रकार के पौधे लगाने की योजना बनी थी। इसमें से 8 भारतीय पौधे थे जिनमें जामुन, नीम, अर्जुन, पीपल, इमली आदि शामिल थे। अफ्रीकन सॉसेज और किंगेलिया को भी लगाया गया। मास्टर प्लान 2021 में भी हरित क्षेत्र बढ़ाने पर जोर दिया गया है। दरअसल हाल के वर्षों में हरित क्षेत्र में आशातीत विस्तार नहीं हुआ है। सन 2015 में दिल्ली के 20.22 फीसद क्षेत्र पर हरियाली थी। हरियाली बचाने के लिए जरूरी है कि प्रकृति और मानव के बीच आत्मीय संबंधों से एक बार फिर लोगों को रूबरू कराया जाए।

पेड़ों की पूजा 

नगर निगम मुखौटों के जरिए पेड़ों की महत्ता से लोगों को परिचित कराएगा। अधिकारी ने बताया कि भविष्य में हम लोगों को बताएंगे कि अति प्राचीन काल से भारत में वृक्षों की पूजा की जा रही है। यह कृतज्ञता के कारण किया जाता है क्योंकि हम जानते हैं कि पेड़ के बिना जीवन का कोई भी अस्तित्व नहीं हो सकता है। भारतीय संस्कृति में माना जाता है कि पेड़ों में मनुष्यों की तरह जीवन है जो हमारी तरह दर्द और खुशी को महसूस करते हैं इसलिए पेड़ और उनके उत्पाद हमारे अनुष्ठानों और समारोहों का एक विशिष्ट हिस्सा हैं। समय के साथ-साथ नीम, बरगद, बेल समेत कई अन्य वृक्षों को धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा गया है। यहां तक कि विविध देवी और देवता विभिन्न पेड़ों से जुड़े हुए हैं जैसे बेल, रुद्राक्ष भगवान शिव से आम भगवान हनुमान और कामदेव अशोक के पेड़ के साथ जुड़े हैं। यह बताने का मकसद लोगों को पेड़ों का संरक्षण करने पर जोर देने के लिए प्रेरित करना होगा।

जनता को सीखने को मिलेगा

जहां तक मेरी जानकारी है, मुझे नहीं लगता कि इसके पहले इस तरह का प्रयोग किया गया था। यह शायद पहली बार हो रहा है। इस तरह के प्रयोग संग्रहालय में तो किए गए हैं लेकिन इस तरह बाग बगीचों में पहली बार है। संग्रहालय में किसी जानवर, पेड़ का मुखौटा, चित्र लगाया जाता रहा है। चित्र के साथ अमुक पेड़, जानवर की जानकारी लिखी जाती है। जिसमें यह बताया जाता है कि यह पौधा, पक्षी कहां मिलता है, कितनी संख्या है आदि-आदि। यह पहल सराहनीय है, जनता को सीखने को मिलेगा।

एम शाह हुसैन, साइंटिस्ट इंचार्ज, अरावली बॉयोडायवर्सिटी पार्क

तीस हजार पेड़ लगाए

शाहजहां के जमाने में जहांआरा बेगम ने न केवल बहुत से पेड़ लगाए बल्कि दिल्ली के पुराने पेड़ बचाए भी थे। दिल्ली में उन दिनों पेड़ कम हो रहे थे। ऐसे में उन्होंने तीस हजारी में तीस हजार पेड़ लगाए। ये पौधे अरब, इराक, कश्मीर, एशिया के विभिन्न हिस्सों से लेकर आए गए थे। बगीचा वर्तमान तीस हजारी अदालत से लेकर कश्मीरी गेट तक कुदसिया गार्डन तक था। चांदनी चौक में भी उन्होंने बहुत से पौधे लगाए थे। वर्तमान टाउन हाल के पीछे जो गांधी पार्क है उसे उनके द्वारा पौधे लगाने के कारण ही उन दिनों बेगम पार्क कहकर पुकारा जाता था। यहां लोगों के आराम के लिए सराय भी बनवाई थी, जो बहुत ही खूबसूरत थी।

आरवी स्मिथ, इतिहासकार

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