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फूले नहीं समाओगे, बचपन में खो जाओगे, आप भी जानें कौन हैं 'मोत्ताइनाइ दादी मां'

मेट्रो के पहिए कई बार थमे थे लेकिन खुशियों की गाड़ी एक ऐसे सफर पर निकल चुकी थी जहां मोत्ताइनाइ दादी मां के किस्से हमसफर बने।

By Amit MishraEdited By: Published: Fri, 08 Jun 2018 07:10 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 07:10 PM (IST)
फूले नहीं समाओगे, बचपन में खो जाओगे, आप भी जानें कौन हैं 'मोत्ताइनाइ दादी मां'
फूले नहीं समाओगे, बचपन में खो जाओगे, आप भी जानें कौन हैं 'मोत्ताइनाइ दादी मां'

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]।...मेरी दादी बहुत प्यारी कहानियां सुनाती हैं। और तेरी...मैं तो इस बार छुट्टी में नानी के यहां जा रहा हूं वो मुझे पेड़ की छांव में बैठाकर बहुत सुंदर किस्से सुनाती हैं। द्वारका मेट्रो स्टेशन पर बीते शनिवार एक-दूसरे से बलगहियां करे छोटे-छोटे स्कूली छात्र ऐसी ही गपशप करते हुए मेट्रो स्टेशन के अंदर की सीढियों पर झुंड बनाए थे। उनके चेहरे पर मन के भाव साफ नजर आ रहे थे। कुछ बच्चे सोच में थे आखिर मेट्रो के अंदर उन्हें कौन सी और कैसे कहानियां सुनाई जाएंगी...। बच्चों की इस फुसफुसाहट को सुन मेरे मन की गुदगुदाहट ने भी मुझे बचपन में लौटा दिया। 

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मेट्रो के पहियों पर हर दिन जिंदगी रफ्तार भरती है। हर कोई इन पहियों पर चढ़कर जिंदगी के सुबह से शाम बिताकर अपने हर दिन की दिहाड़ी को पूरा करता है। हर कोई अपनी धुन में रमा सफर पर निकल जाता है, बिना किसी से बातचीत किए। मेट्रो स्टेशन भी लोगों की चहलकदमी संग सामंजस्य बैठा लेते हैं। लेकिन शनिवार को द्वारका मेट्रो रूट पर नजारा बिल्कुल जुदा था।

बच्चों का समूह अपनी ही मस्ती में लीन था

स्कूली ड्रेस पहने बच्चों का समूह मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो एक बारगी घर और ऑफिस या कहीं के लिए भी निकले जल्दबाजी भरे कदम थोड़े धीमे पडते-पड़ते थम जाते हैं। हर चेहरे पर आश्चर्य यह था, कि आखिर में मेट्रो में एक साथ इतने बच्चे कहां से आ गए। कोई बच्चों को देख खुश हो रहा था तो कोई इनके बहाने ही सही बचपन की यादों को तरोताजा कर रहा था। वहीं बच्चों का समूह अपनी ही मस्ती में लीन था।

हमसफर बने मोत्ताइनाइ दादी मां के किस्से 

कोई मेट्रो ट्रेन में सफर को लेकर एक दूसरे से डींगे हांक रहा था तो कोई एक दूसरे से मेट्रो की जानकारी परख रहा था। मेट्रो में कहानी सुनने को लेकर लगभग हर बच्चा उत्साहित था। मेट्रो में दाखिल होते समय बच्चों के चेहरे पर खुशी फूली नहीं समा रही थी। करीब तीन घंटे तक चले कहानी सुनाने के सफर के दौरान भले ही मेट्रो के पहिए कई बार थमे थे लेकिन खुशियों की गाड़ी एक ऐसे सफर पर निकल चुकी थी जहां मोत्ताइनाइ दादी मां के किस्से हमसफर बने।

कुछ नया हो जाए

नेशनल बुक ऑफ ट्रस्ट के संपादक कुमार विक्रम बताते हैं कि यह अपने आप में बिलकुल जुदा आयोजन है। और दिल्ली-एनसीआर के लिए तो एकदम नया है। दरअसल एनबीटी ने जापानी पब्लिशिंग हाउस के साथ मिलकर स्टोरी टेलिंग इवेंट शुरू किया है। यह आयोजन विशुद्ध रूप से बच्चों को जागरूक करने एवं उनमें पर्यावरण के प्रति समझ विकसित करने, सजग बनाने के लिए था।

जापान की प्रसिद्ध पुस्तक

मोत्ताइनाइ दादी मां जापान में एक बहुत ही प्रसिद्ध पुस्तक है। जिसमें बच्चों को ज्ञानवर्धक बातें चित्रों के माध्यम से सिखाई जाती हैं। इस पुस्तक का भारत में अनुवाद किया गया है। इसी पुस्तक के जरिए द्वारका मेट्रो स्टेशन के तीन नंबर प्लेटफॉर्म पर 200 बच्चों को मेट्रो के अंदर कहानी सुनाई गई। बकौल कुमार विक्रम 8 से 12 साल के ये बच्चे मुनि इंटरनेशनल स्कूल, विद्या आनंद निकेतन, स्वरांजलि विद्या मंदिर, बाल भारती पब्लिक स्कूल के थे।

हरा-भरा संदेश 

कुमार विक्रम कहते हैं कि एनबीटी द्वारा पहली बार आयोजित यह स्टोरी टेलिंग कार्यक्रम पूरी तरह पर्यावरण पर आधारित था। बच्चों को मोत्ताइनाइ दादी मां किताब के जरिए खाना बर्बाद नहीं करने, कागज बर्बाद ना करने, पेंसिल के उपयोग संबंधी कहानियां सुनाई गई। यह पूरा किस्सागोई करीब तीन घंटे तक चला। प्रसिद्ध स्टोरी टेलर जय श्री सेठी ने बच्चों को कहानियां सुनाई। इस दौरान बच्चों ने स्वच्छता से संबंधित कई सवाल भी पूछे। मसलन, पड़ोसी को कैसे सुधारे, घर में सफाई कैसे करें, यदि कोई मना करे तो उसे कैसे समझाएं आदि।

जापान में लोकप्रिय है मोत्ताइनाइ

मोत्ताइनाइ जापानी शब्द है। जिसका अर्थ प्रकृति से मिले उपहारों एवं इन उपहारों से हमारे लिए प्रोडक्ट बनाने वालों के बारे में सोचने से अर्थ लिया जाता है। अंग्रेजी में इसका एक अर्थ बर्बाद ना करो भी होता है। मारिको सिंजू ने जापान में मोत्ताइनाइ दादी मां किताब लिखी है। किताब में वो लिखती हैं कि एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे पूछा कि मोत्ताइनाइ का क्या अर्थ होता है। मैं यह सोचती रही कि आखिर इस शब्द का कैसे विश्लेषण करूं। दरअसल, कई जापानी शब्द ऐसे हैं जिनका अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में अनुवाद मुश्किल होता है। मोत्ताइनाइ उन्हीं शब्दों में से एक है। इस शब्द की व्याख्या के दौरान ही अपनी चिंता को किताब में चित्रों के जरिए समझाने का प्रयास किया गया है।

क्या है किताब में

किताब में छह पाठ हैं। जिसमें चित्रों के माध्यम से बच्चों को ज्ञान की बातें बताई गई हैं। पहला पाठ खाने की बर्बादी पर केंद्रित है। इसमें बताया गया है कि खाना बर्बाद नहीं करना चाहिए। जबकि दूसरा पाठ पानी की बर्बादी पर है। इसमें चित्र के जरिए दिखाया गया है कि एक बच्चा टूथब्रश करते समय पानी का नल खुला छोड़ देता है। दादी मां कहती है कि तुम्हें मुंह धोने के लिए एक ग्लास पानी बहुत है, नल बंद करो। पानी बर्बाद मत करो। तीसरा पाठ बच्चे के रोने पर आंसू बर्बाद ना करने की सीख दी जाती है। इसी तरह चौथे पाठ में घर में बेकार पड़ी चीजों को मिलाकर पेंटिंग बनाने की सीख दी गई है। आमतौर पर यह देखा जाता है कि पेंसिल घिस जाने पर बच्चे फेंक देते हैं। इसमें बताया गया है कि लाल, आरेंज, काला, लाइट ग्रीन पेंसिल को इक्ट्ठा कर रेनबो इंद्रधनुष पेंसिल बनाया जा सकता है। इसी तरह बिजली बचाने का भी संदेश दिया गया है।

भविष्य में आयोजित होंगे ऐसे इवेंट 

कुमार विक्रम कहते हैं, इस तरह के इवेंट बच्चों को उत्साहित करते हैं। पहले आयोजन से सीख लेकर एनबीटी आगामी दिनों में भी इस तरह के कई आयोजन करेगा। यह आयोजन भी बच्चों पर केंद्रित ही रहेंगे। दरअसल, बच्चे बड़ों को जब संदेश देते हैं तो सभी जल्दी प्रेरित होते हैं। प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान और गांधी जी पर आधारित भी आयोजन करेंगे।  

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