Delhi: सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी पर घमासान जारी, अब धीरे-धीरे मुखर हो रहे पुराने कांग्रेसी
शीला दीक्षित सरकार में संसदीय सचिव रहे पूर्व विधायक नसीब सिंह कहते हैं कि सोनिया गांधी अब बीमार रहने लगी हैं जबकि राहुल गांधी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालना नहीं चाहते।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखी गई चिट्ठी सार्वजनिक होने के बाद पार्टी में शुरू हुआ घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। धीरे-धीरे पुराने कांग्रेसी भी मुखर हो रहे हैं। इसी कड़ी में अब पार्टी के दो पूर्व कद्दावर विधायकों ने चिट्ठी में दिए गए सुझावों को पूर्णत: जायज ठहराया है।
इनका कहना है कि यह तो कोरोना काल की वजह से स्थिति थोड़ा नियंत्रण में है अन्यथा दिल्ली सहित और भी कई राज्यों में बगावत की चिंगारी भड़क जाती। इनका यह भी कहना है कि दशको से पार्टी की सेवा कर रहे नेताओं की बात अवश्य सुनी जानी चाहिए।
पूर्व विधायक नसीब सिंह ने दिया ये तर्क
शीला दीक्षित सरकार में संसदीय सचिव रहे पूर्व विधायक नसीब सिंह कहते हैं कि सोनिया गांधी अब बीमार रहने लगी हैं जबकि राहुल गांधी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में पार्टी चलेगी कैसे? इसी के चलते पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा उस चिटठी में कुछ सुझाव दिए गए थे। इन सुझावों व उस चिटठी को गलत ढंग से नहीं लिया जाना चाहिए। अगर समय रहते संगठन में सुधार नहीं किए जाएंगे तो भविष्य में पार्टी को और नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना काल की वजह से बहुत कुछ दबा हुआ है। अन्यथा दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों में भी पार्टी की जो स्थिति है, उसे लेकर बगावत के सुर बुलंद हो सकते हैं।
समर्पित कांग्रेसी स्वयं को उपेक्षित महसूस करते हैंः हरिशंकर
वहीं, दूसरी तरफ पूर्व विधायक हरिशंकर गुप्ता भी इन्हीं बातों का समर्थन करते हुए संवादहीनता को दूर करने पर बल देते हैं। वह कहते हैं, पार्टी में बड़े नेताओं को भी छह छह महीने तक अध्यक्ष से मिलने का समय नहीं मिल पाता। संवादहीनता के चलते जहां समस्याएं बढ़ती जाती हैं वहीं समर्पित कांग्रेसी स्वयं को उपेक्षित भी महसूस करते हैं। अगर पार्टी में कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष हो तो संवाद हीनता की स्थिति नहीं रहेगी। बहुत सारी समस्याएं तो संवादहीनता समाप्त होने के साथ ही दूर होने लगेंगी। बड़े नेताओं की बात तो हर हाल में सुनी जानी चाहिए। अगर उन्हीं की उपेक्षा होगी तो छोटे नेता और कार्यकर्ताओं को भी पार्टी के साथ जोड़े रखना मुश्किल हो जाएगा।
दूसरी तरफ सच यह भी है कि इस समय दिल्ली के ज्यादातर कांग्रेसी दर्द में हैं। दिन ब दिन पार्टी को हाशिये पर जाता देख परेशान भी हो रहे हैं। लेकिन खुलकर बोल पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। कुछ तो दबी जुबान में यहां तक कह जाते हैं कि अब कांग्रेस में कुछ नहीं बचा है। समय रहते यदि संभला नहीं गया तो फिर पछताने के सिवाए कुछ न बचेगा।
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