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Delhi BJP Politics: क्या पद को लेकर नाराज हैं दिल्ली भाजपा के ये 3 बड़े नेता

Delhi BJP Politics फिर से दिल्ली भाजपा प्रवक्ता बने हरीश खुराना और प्रदेश उपाध्यक्ष से मुख्य प्रवक्ता बनने वाले अभय वर्मा भी नाखुश बताए जाते हैं। दरअसल इन्हें पद तो मिला लेकिन अनुभव के लिहाज से कद नहीं बढ़ा।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 01:32 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 01:32 PM (IST)
भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिह्न की फाइल फोटो।

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। सियासत में पद का विशेष महत्व होता है। सियासी भविष्य को आगे बढ़ाने में इससे मदद मिलती है। यही कारण है कि इसे हासिल करने के लिए नेता हर दांव-पेच आजमाते हैं। कुछ अपने मकसद में कामयाब होते हैं कुछ को निराशा हाथ लगती है। दिल्ली भाजपा में भी कई नेताओं को निराशा हाथ लगी है। लाख कोशिशों के बावजूद अधिकतर पुराने पदाधिकारी टीम से बाहर हो गए हैं। कई टीम में जगह बनाने में तो कामयाब रहे लेकिन मनचाहा पद नहीं मिला। इससे उनमें नाराजगी भी है। तेजिंदर पाल सिंह बग्गा युवा मोर्चा के अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन इस बार भी उन्हें प्रवक्ता की ही जिम्मेदारी मिली। बताते हैं इससे वह संतुष्ट नहीं हैं। फिर से प्रवक्ता बने हरीश खुराना और प्रदेश उपाध्यक्ष से मुख्य प्रवक्ता बनने वाले अभय वर्मा भी नाखुश बताए जाते हैं। दरअसल इन्हें पद तो मिला, लेकिन अनुभव के लिहाज से कद नहीं बढ़ा।

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अन्य मुद्दों पर क्यों हैं डांवाडोल

कृषि कानून को लेकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित अन्य विपक्षी पार्टियां नरेंद्र मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही हैं। वहीं, विपक्ष पर दुष्प्रचार का आरोप लगाते हुए भाजपा नेता भी जनता के बीच पहुंच रहे हैं। राजधानी में भी पार्टी विशेष अभियान चला रही है। एक तरह से इसमें पूरी ताकत झोंक दी गई है। खास बात यह है कि राजधानी में खेती करने वालों की संख्या बहुत कम है। बावजूद इसके प्रदेश नेतृत्व की पूरी ऊर्जा कृषि कानून पर केंद्रित है। पार्टी की इस रणनीति से कार्यकर्ताओं में असहमति भी है। उनका कहना है कि सार्वजनिक यातायात की समस्या, प्रदूषण, कोरोना संक्रमण, आर्थिक गतिविधियां, स्कूलों में शिक्षकों की कमी जैसे विषय आम दिल्लीवासियों से जुड़े हुए हैं, मगर नेता इसे लेकर गंभीर नहीं हैं। दिल्लीवासियों के हित को ध्यान में रखकर कृषि कानून जागरूकता अभियान को सीमित दायरे में चलाकर अन्य मुद्दों पर जोर देना होगा।

सेवा सप्ताह पर सेवाभाव की कमी

राजनीतिक पार्टियों में अक्सर कोई अभियान जोरशोर से शुरू होता है, लेकिन बाद में कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा हो जाता है। भाजपा का सेवा सप्ताह अभियान में कुछ ऐसा ही हुआ है। पार्टी ने दो चरणों में इस अभियान को चलाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर 14 से 20 सितंबर तक चले पहले चरण के अभियान में कार्यकर्ताओं व नेताओं में खूब जोश दिखा। बड़े नेता भी राजधानी में जगह-जगह सेवा करते दिखे। लेकिन, पंडित दीन दयाल उपाध्याय जयंती पर 25 सितंबर से शुरू हुए दूसरे चरण में सेवाभाव में कमी रही। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर को इस अभियान की समाप्ति के अवसर पर भी सिर्फ खानापूर्ति की गई। इससे पहले बिजली आंदोलन का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ था। उम्मीद की जा रही है कि पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों की घोषणा के बाद अब इस तरह की लापरवाही नहीं होगी।

लड़ाकों की जारी है खोज

दिल्ली की सत्ता से दूर भाजपा के लिए नगर निगमों पर कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है। उसे निगम से बेदखल करने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। हालांकि, चुनाव होने में लगभग डेढ़ वर्ष का समय है, लेकिन आप के आक्रामक रुख से भाजपा नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है। पार्टी निगमों को लेकर आप नेताओं के सवालों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए लड़ाकों की खोज कर रही है। इन नेताओं पर आम जनता के बीच निगमों की छवि चमकाने की भी जिम्मेदारी रहेगी। इस वजह से ऐसे नेताओं को तलाशा जा रहा है जिन्हें निगमों की कार्यप्रणाली की अच्छी जानकारी हो। एक तरह से उनके ज्ञान, आक्रामकता और वाकपटुता पर पार्टी का भविष्य निर्भर करेगा, इसलिए चयन में देरी हो रही है। प्रदेश पदाधिकारियों के साथ ही कई प्रवक्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के नाम पर विचार किया जा रहा है।

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