दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण से एक और बड़ा खतरा, गर्भवती और गर्भ में पलते बच्चे को हो सकती हैं कई तरह की बीमारियां
Air Pollution राष्ट्रीय राजधानी में स्मॉग की चादर लगातार बनी हुई है। यहां की दमघोंटू हवा सबसे ज्यादा गर्भवती और गर्भ में पल रहे बच्चे के जीवन के लिए हर दिन अलग-अलग बीमारियों का अंदेशा पैदा कर रही है। ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि वाहनों व फैक्ट्रियों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस नवजात को मिर्गी का मरीज बना सकती है।
अजय राय, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में स्मॉग की चादर लगातार बनी हुई है। यहां की दमघोंटू हवा सबसे ज्यादा गर्भवती और गर्भ में पल रहे बच्चे के जीवन के लिए हर दिन अलग-अलग बीमारियों का अंदेशा पैदा कर रही है। ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि वाहनों व फैक्ट्रियों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस नवजात को मिर्गी का मरीज बना सकती है।
वहीं, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भी दिमाग के प्रतिरक्षा पर सीधे हमला कर रहा है। इससे गैस सीधे खून में मिलकर तमाम बीमारियों को जन्म दे सकती है। यह कई अध्ययनों में सामने आ चुका है कि दिल्ली में कुल वायु प्रदूषण भर में अकेले वाहन प्रदूषण का लगभग 72 प्रतिशत का योगदान है।
अध्ययन में क्या पता चला?
एक अध्ययन में पता चला है कि तीसरी तिमाही के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के संपर्क में आने से ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार वाले बच्चों का जन्म होता है। उस अध्ययन से यह भी पता चला कि प्रारंभिक और देर की गर्भावस्था अवधि के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड का संपर्क मिर्गी से पीड़ित बच्चे के जन्म से जुड़ा था।
दक्षिण कोरिया ने किया अध्ययन
यह अध्ययन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा दावा डेटा का उपयोग करके गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषकों और भारी धातुओं के मातृ संपर्क का न्यूरोलॉजिकल विकारों के जोखिम पर प्रभाव पर किया गया है। यह रिपोर्ट मेडिसीना जर्नल में इसी साल प्रकाशित हुई है। वहीं, प्रसवपूर्व सल्फर डाइऑक्साइड के ज्यादा संपर्क में रहने से गर्भ में पल रहे बच्चे में अस्थमा और घरघराहट का खतरा बढ़ सकता है।
सल्फर के प्रभाव से वायुमार्ग के सिकुड़ने से घरघराहट, सीने में जकड़न और सांस लेने में तकलीफ होती है। अस्थमा से पीड़ित बच्चों में अस्थमा के दौरे अधिक बार आते हैं। हृदय संबंधी रोग बढ़ने का खतरा बना रहता है।
मस्तिष्क को निशाना बना रहा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
दिल्ली की हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड भी सेहत के लिए बेहद हानिकारक है। यह मस्तिष्क के मजबूत प्रतिरक्षा को भेदने में सक्षम है। नाइट्रोजन मस्तिष्क में जाकर ऑक्सीजन के साथ मिलकर एक केमिकल बनाता है। उसे ऑक्सीनाइट्राइट कहते हैं और ये हमारे मस्तिष्क के बाहरी व अंदरूनी हिस्से को नुकसान पहुंचाता है।
यहां से मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र मस्तिष्क में खून की नलियां किसी तत्व को अंदर जाने से रोकती हैं। लेकिन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड इतना घातक है कि उस मजबूत अवरोधक को भी आसानी से पार कर लेता है और मतिष्क के द्वारा खून में घुल जाता है।
इस दौरान मस्तिष्क में मौजूद न्यूरांस को हानि पहुंचाता है। यह बच्चों के आईक्यू पर गहरा असर डालता है। इससे दिमाग व सोचने की क्षमता कमजोर हो सकती है।
सीएनजी भी सुरक्षित नहीं
जब दिल्ली लगातार गैस चैंबर बनी हुई है। ऐसे में डीजल या पेट्रोल चालित वाहन ही नहीं, सीएनजी चालित वाहन या फैक्ट्रियां भी राजधानी की हवा में जहर घोल रही हैं। सीएनजी जैसी प्राकृतिक गैस जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और सल्फर डाइऑक्साइड भी उत्सर्जित होता है। वायु प्रदूषक गैसें जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन गैस आसानी से फेफड़ों से रक्त में प्रवेश करती हैं और किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती हैं। व्यक्तिगत रूप से मानव शरीर पर इन गैसों के प्रभाव के बारे में कोई विशेष अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन विभिन्न अध्ययनों से मानव शरीर पर गैसीय प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों का पता चला है।
कटे तालु व होठ के भी खतरे
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और पीएम2.5 के संपर्क में आने से शिशु मृत्यु दर और असमय गर्भपात में अहम कारण है। इस साल बीएमजे जर्नल में प्रकाशित और चीन में किए गए एक अध्ययन में गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषकों के संपर्क और शिशुओं में जन्मजात हृदय रोगों और कटे तालु और कटे होंठ के खतरे के संबंध को बताया गया है।
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दिल्ली में कुल वायु प्रदूषण भार में अकेले वाहन प्रदूषण का लगभग 72 प्रतिशत योगदान
एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में कुल वायु प्रदूषण भार में अकेले वाहन प्रदूषण का लगभग 72 प्रतिशत योगदान है। इसके अलावा, बड़े आवासीय परिसरों सहित बुनियादी ढांचे का निर्माण संभावित रूप से दिल्ली के वायु प्रदूषण भार में योगदान देता है। दिल्ली में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ने का प्रमुख कारण बढ़ता यातायात भार है। वायुमंडल में नाइट्रिक आक्साइड, ओजोन और हाइड्रोकार्बन के संयोजन से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का निर्माण होता है। इसलिए नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण को कम करने के लिए इसके निर्माण में शामिल सभी तीन घटकों को लक्षित करने की आवश्यकता है।
वायु प्रदूषण के दौरान खुली हवा सांस लेना वैसे तो किसी न किसी प्रकार से हानि पहुंचाता ही है। व्यस्कों का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है, इसलिए उनपर प्रभाव तुरंत नहीं दिखता। लेकिन, शिशुओं, गर्भवती व बुजुर्गों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। सल्फर डाइऑक्साइड व नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का खतरनाक स्तर खून में मिलकर शिशुओं के लिए ज्यादा घातक बन जाता है। ये दोनों गैस बड़ी मात्रा में दिल्ली के वायुमंडल में मौजूद हैं और बच्चों के फेफड़े और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा रहे हैं। -डॉ. विनय राय, नवजात व शिशु रोग विशेषज्ञ, क्लाउड नाइन अस्पताल