दिल्ली सरकार के ग्रीन बजट से साफ होगी हवा, जानें- क्या कहते हैं एक्सपर्ट
भूरेलाल के मुताबिक, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से दिल्ली के प्रदूषण पर वर्ष भर का अध्ययन कराना भी नौटंकी के अलावा कुछ नहीं है। जब तक अध्ययन की रिपोर्ट आएगी, चुनाव का समय आ जाएगा।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। पर्यावरणविदों के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण- संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने भी दिल्ली सरकार के ग्रीन बजट को कठघरे में खड़ा किया है। ईपीसीए का कहना है कि लोक लुभावन घोषणाओं से तालियां तो बज सकती हैं, वाहवाही भी मिल सकती है, लेकिन दिल्ली की आबोहवा नहीं सुधर सकती। ईपीसीए का यह भी कहना है कि दिल्ली की आबोहवा में जो थोड़ा बहुत सुधार हुआ है, वह भी ईपीसीए, एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से हुआ है। दिल्ली सरकार का सहयोग अमूमन कहीं नहीं रहा।
बसें भी जाम का हिस्सा ही बनी रहेंगी
जागरण से बातचीत में ईपीसीए के चैयरमेन भूरेलाल कहते हैं, तीन साल में आम आदमी पार्टी सरकार ने एक भी बस नहीं खरीदी। जबकि अब वह स्टैंडर्ड बसों के साथ-साथ इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की भी घोषणा कर रही है। जबकि एक एक इलेक्ट्रिक बस दो दो करोड़ रुपये की आती है। ऐसे में ऐसी एक हजार बसें खरीदना महंगा सौदा है। चलिए, सरकार इन बसों को ले भी आए तो उसका किराया कितना होगा? वह चलेंगी कहां? पार्किंग कहां होगी और इनकी चार्जिंग की व्यवस्था क्या रहेगी? इनमें सफर करने के लिए टिकट दर क्या रहेगी? दिल्ली में तो ट्रैफिक जाम ही आम हो गया है। ऐसे में यह बसें भी जाम का हिस्सा ही बनी रहेंगी।
सरकार जनता को बेवकूफ बनाना चाह रही है
भूरेलाल के मुताबिक, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से दिल्ली के प्रदूषण पर वर्ष भर का अध्ययन कराना भी नौटंकी के अलावा कुछ नहीं है। यहां की आबोहवा क्यों खराब है, इससे कोई अंजान नहीं है। इस संबंध में कई रिपोर्ट भी उपलब्ध हैं तो विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का अपना विश्लेषण भी है। किंतु दिल्ली सरकार इस अध्ययन के सहारे भी जनता को बेवकूफ बनाना चाह रही है। जब तक इस अध्ययन की रिपोर्ट आएगी, चुनाव का समय आ जाएगा।
प्रपंच रचने की कोई आवश्यकता नहीं
डीजल चालित जनरेटरों को स्वच्छ ईंधन में तब्दील करने तथा रेस्तरां और ढाबों में इलेक्ट्रिक तंदूर इस्तेमाल कराने की योजना को भी ईपीसीए ने एक महत्वाकांक्षी योजना करार दिया है। ईपीसीए का कहना है कि जो कुछ सरकार के वश में है, अगर ईमानदारी के साथ उसे ही कर लिया जाता है तो दिल्ली की हवा खासी साफ हो जाएगी। इतने सारे प्रपंच रचने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सार्वजनिक परिवहन हो मजबूत
भूरेलाल के मुताबिक, निजी वाहनों की संख्या कम करके दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक परिवहन मजबूत और विश्वसनीय होगा तो दिल्ली वासी अपने आप ही निजी वाहनों का मोह छोड़न लगेंगे। जो वाहन सड़कों पर चल रहे हैं, उनकी प्रदूषण जांच बिना गड़बड़ी के की जानी चाहिए। सड़कों के किनारे उड़न वाली धूल को नियंत्रित किया जाना चाहिए। भवन निर्माण कार्य के दौरान धूल नहीं उड़े, इसके लिए पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात यह कि इस कार्य में ज्यादा से ज्यादा जन भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। कचरा निष्पादन की भी बेहतर व्यवस्था करनी होगी।
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