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Indian Akshay Urja: अक्षय ऊर्जा के जरिये पैदा हो सकते हैं रोजगार के 50 लाख नए अवसर

Indian Akshay Urja एक अध्ययन में दावा किया गया है कि 2050 तक उत्तर भारत की ऊर्जा प्रणाली को 100 फीसद तक अक्षय ऊर्जा में तब्दील किया जा सकता है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 01:58 PM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 02:17 PM (IST)
Indian Akshay Urja: अक्षय ऊर्जा के जरिये पैदा हो सकते हैं रोजगार के 50 लाख नए अवसर
Indian Akshay Urja: अक्षय ऊर्जा के जरिये पैदा हो सकते हैं रोजगार के 50 लाख नए अवसर

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Indian Akshay Urja: फिनलैंड की लापीनराटा-लाटी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलॉजी (एलयूटी) एवं दिल्ली की क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक अध्ययन में दावा किया गया है कि 2050 तक उत्तर भारत की ऊर्जा प्रणाली को 100 फीसद तक अक्षय ऊर्जा में तब्दील किया जा सकता है। इससे फिलहाल यानि 2020 में 825 मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड के बराबर जिन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, उसे 2050 तक शून्य किया जा सकता है। वहीं रोजगार के 50 लाख नए अवसर पैदा हो सकते हैं। यह अध्ययन बुधवार को इंटरनेशनल सोलर अलायंस द्वारा आयोजित व‌र्ल्ड सोलर टेक्नॉलॉजी समिट में पेश किया गया। इस अध्ययन में भविष्य की किफायती ऊर्जा प्रणाली का खाका तैयार करने के लिये भू-स्थानिक व घंटेवार मांग का विश्लेषण किया गया है।'

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बिल्डिंग ब्लॉक्स ऑफ इंडियाज एनर्जी फ्यूचर-नॉर्थ इंडियाज एनर्जी ट्रांजिशन बेस्ड ऑन रिन्यूएबल्स'शीर्षक वाले इस अध्ययन में बताया गया है कि अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण न सिर्फ तकनीकी व वित्तीय रूप से संभव है बल्कि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता खत्म करने पर पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित होगा। 2020 में जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा प्रणाली में तकरीबन 30 लाख रोजगार पैदा हुए हैं, जबकि अक्षय ऊर्जा प्रणाली से 2050 में 50 लाख तक रोजगार के अवसर उत्पन्न हा सकेंगे। इस रिपोर्ट में भारत द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के भारी उत्सर्जन, बिजली की बढ़ती मांग और भूजल के अत्यधिक दोहन के गंभीर खतरों का भी जिक्र किया गया है।

रिपोर्ट में देश के आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर (लद्दाख सहित), हिमाचल प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अध्ययन में बिजली पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों जैसे परिवहन, ऊर्जा, ऊष्मा इत्यादि की बिजली संबंधी आवश्यकताओं को जीवाश्म ईंधन और परमाणु ऊर्जा से इतर अक्षय ऊर्जा में रूपांतरित करने का खाका भी पेश किया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  1. जहां वर्ष 2020 से 2035 के बीच उत्तर भारत में प्राथमिक ऊर्जा की मांग करीब 3000 टेरावाट/घंटा (टीडब्ल्यूएच) से दोगुनी होकर 2050 तक 5200 टीडब्ल्यूएच हो जाएगी। वहीं, बिजली की लेवलाइज्ड कॉस्ट (एलसीओई) 2020 की 5325 रुपए/मेगावाट (71 यूरो/मेगावाट) के मुकाबले करीब 2100 रुपए/मेगावाट (28 यूरो/मेगावाट) तक गिर जाएगी।
  2. अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता को 100 फीसद तक किए जाने की स्थिति में राज्यों के बीच बिजली के ट्रांसमिशन के दौरान होने वाली ऊर्जा की हानि को 30 फीसद से घटाकर 17 फीसद तक लाया जा सकेगा।
  3.  वर्ष 2030 में कुल उत्पादित बिजली में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 50 फीसद से बढ़कर 2050 तक करीब 97 फीसद जबकि ऊर्जा भंडारण में इसकी हिस्सेदारी 80 फीसद से अधिक हो जाएगी।
  4. अगर जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों की जगह इलेक्टि्रक वाहन इस्तेमाल किए जाएं, उनमें सिंथेटिक ईंधन जैसे हाइड्रोजन और फिशर ट्राप्स फ्यूल और सस्टेनेबल बायोफ्यूल का उपयाग किया जाए तो यात्री किराया और माल ढुलाई की कीमतें भी गिरेंगी।
  5. सौर और वायु ऊर्जा पर निर्भरता की स्थिति में समुद्र के पानी के अलवणीकरण की एलसीओई मौजूदा 83 रुपये/घन मीटर (1.1 यूरो/घन मीटर) से घटकर 2050 में 53 रुपये/घन मीटर (0.7 यूरो/घन मीटर) रह जाएगी।
  6. कोयले के बजाय सौर ऊर्जा से बिजली पैदा किए जाने को तरजीह देने पर वर्ष 2030 के बाद रोजगार के दोगुने से ज्यादा अवसर (16 लाख 50 हजार) पैदा किए जा सकेंगे।
  7. वर्ष 2050 में हर राज्य में एलसीओई अलग-अलग होगी। उत्तर-प्रदेश, जम्मू कश्मीर और लद्दाख में एलसीओई जहां 1650 रुपए/मेगावाट होगी। वहीं, दिल्ली एवं पंजाब में 4200 रुपए प्रति मेगावाट रहेगी। 

आरती खोसला (निदेशक, क्लाइमेट ट्रेंड्स) का कहना है कि यह अध्ययन हमें साफ तौर पर बताता है कि भारत कोविड-19 महामारी के बाद पैदा हालात में हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई कर रहा है। लिहाजा, एकीकृत ऊर्जा प्रणाली की सोच को साकार करना संभव है। उत्तर भारत में 63 फीसद बिजली कोयले से पैदा की जाती है। जबकि लॉकडाउन के दौरान जब बिजली की मांग गिरी तो ऊर्जा आपूर्ति में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों का दबदबा भी बढ़ा। 

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