कोरोना प्रभावित उद्योगों को अंदरूनी इलाज की दरकार
दिल्ली एनसीआर के उद्यमी कोरोना लॉक से भले बाहर हो गए हों लेकिन भीतरी समस्याओं से अभी भी डाउन हो रहे हैं। वजह सिर्फ ताला खोल देने से औद्योगिक इकाइयां नहीं चल पाएंगी। मशीनों को रफ्तार देने के लिए पूंजी और श्रम दोनों चाहिए। इसीलिए बहुत सी जगहों पर उद्यमी वैकल्पिक दिनों में अपनी फैक्ट्री खोल रहे हैं तो काफी जगह अभी भी खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। ऐसे में अंदरूनी इलाज की भी दरकार है।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली
दिल्ली-एनसीआर के उद्यमी कोरोना के लॉक से भले बाहर हो गए हों, लेकिन भीतरी समस्याओं से अभी भी उनका कारोबार डाउन है। वजह, सिर्फ ताला खोल देने से औद्योगिक इकाइयां नहीं चल पाएंगी। मशीनों को रफ्तार देने के लिए पूंजी और श्रम दोनों चाहिए। इसीलिए बहुत सी जगहों पर उद्यमी वैकल्पिक दिनों में फैक्ट्री खोल रहे हैं तो काफी जगह तो अभी भी खोलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। ऐसे में कोरोना प्रभावित उद्योगों को अब सीधे तौर पर अंदरूनी इलाज की दरकार है।
दरअसल, दो माह लंबे लॉकडाउन ने उद्योग और उद्यमियों दोनों की ही कमर तोड़ दी है। इस दौरान लगातार फैक्ट्रियां बंद रहने से एक नहीं, अनेकानेक समस्याएं खड़ी हो गई हैं। सबसे बड़ी समस्या तो मजदूरों की ही हैं। ज्यादातर मजदूर अब अपने घर रवाना हो गए हैं। लॉकडाउन के दौरान तो उद्यमी बिना काम कराए भी इन्हें तनख्वाह देते रहे और अब जबकि काम करने का समय आया तो मजदूर चले गए। दूसरी समस्या बिजली के बिलों की है। फैक्ट्री न चलने पर बिल भले ज्यादा न आएं मगर फिक्स चार्ज की रकम भी हजारों में है।
एक और बड़ी समस्या पूंजी की आ रही है। उद्यमियों को पहले के उत्पादन की डिलीवरी का जो पैसा पार्टियों से मिलना था, वह अटक गया है। हरेक पार्टी आर्थिक तंगी का रोना रो रही है। इसमें फंस बेचारा उद्यमी गया। बिना पूंजी के कच्चा माल कैसे आए। जिन उद्यमियों ने कच्चे माल का प्रबंध कर लिया, उन्हें नए ऑर्डर नहीं मिल रहे। कुल मिलाकर उद्योगों का चक्का हिल तो गया है, चलने भी लगा, लेकिन रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। अगर दाल-चावल, मास्क, सैनिटाइजर, पीपीई किट इत्यादि कुछ इकाइयों को छोड़ दें तो ज्यादातर उद्योगों का कमोबेश यही हाल है।
एनसीआर के शहरों में स्थिति और भी चिताजनक है। यहां पर तो बॉर्डर की सख्ती ही खत्म होने में नहीं आ रही। गुरुग्राम में सोमवार को भी सीमावर्ती नाकों पर सख्ती के कारण हजारों मजदूर निराश होकर लौटा दिए गए। गुरुग्राम पुलिस ने उन्हें अपनी सीमा में एक कदम भी आगे बढ़ाने नहीं दिया। मजदूर विनती करते रहे, लेकिन गुरुग्राम पुलिस ने उनकी नहीं सुनी। सिर्फ ई-पास वाले वाहनों को ही प्रवेश करने दिया गया। सिरहौल बॉर्डर, कापसहेड़ा बॉर्डर एवं आया नगर बॉर्डर से काफी संख्या में वाहन लौटाए गए। गाजियाबाद प्रशासन ने एक कदम आगे बढ़ते हुए राहत के समय में भी बॉर्डर क्षेत्रों में फिर से लॉकडाउन-2 के नियम लागू कर दिए हैं। बॉर्डर सील होने से दिल्ली- एनसीआर का जनजीवन ही प्रभावित नहीं होगा बल्कि उद्योग-धंधों व व्यवसायिक गतिविधियों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।
सोनीपत में भी प्रवेश के लिए कामगारों-उद्यमियों को सघन जांच से गुजरना पड़ रहा है। दिल्ली से बगैर अनुमति आ-जा रहे लोगों को बॉर्डर पर रोकने के बाद वापस लौटाया जा रहा है। दिल्ली-हरियाणा की सीमाओं से आने वाले हर व्यक्ति का बॉर्डर पर पूरा रिकार्ड रखा जा रहा है। नोएडा में स्थिति धीरे- धीरे सुधर रही है। फरीदाबाद में पुलिस-प्रशासन की तरफ से अब कोई समस्या नहीं है, लेकिन मजदूरों की कमी बड़ा मुददा बन रही है। बॉक्स-1
बिना अनुमति के बॉर्डर पर लोगों को प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। इस दौरान कई बार बहुत से लोग उलझने एवं झगड़ा करने की कोशिश भी करते हैं। उन्हें समझाया जा रहा है कि बिना अनुमति के हरियाणा सीमा में आवाजाही प्रतिबंधित है।
-रमेश चंद्र, निरीक्षक, कुंडली बॉर्डर, सोनीपत बॉक्स-2
उद्योग-धंधे इस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं। जब तक सरकार की मदद नहीं मिलेगी, स्थिति में सुधार संभव नहीं है। ब्याज दरों में कटौती भी जरूरी है और बिजली के फिक्स चार्ज माफ करना भी समय की मांग है। आधी- अधूरी फैक्ट्रियां चलाने से कोई लाभ नहीं। मजदूरों को रोकने का प्रयास भी किया जाना चाहिए।
-विनय जैन, चैयरमेन, स्मॉल स्केल पेपर कन्वर्टर एसोसिएशन
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उद्योगपतियों को इस समय कारखाने चलाने में ज्यादा परेशानी कुशल कारीगरों एवं मजदूरों के न होने की आ रही है। जो कारीगर स्थाई रूप से कारखानों में काम करते थे, वे भी कोरोना के डर से अपने गांव चले गए हैं। इसके अलावा सप्लाई चेन रुकी हुई है। इन कारणों से उद्योगों में पूरी क्षमता के साथ काम नहीं हो पा रहा है। अभी पटरी पर आने में समय लगेगा। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर दिक्कत नहीं है।
-रोहित रूंगटा, उद्योगपति, फरीदाबाद