बीआरटी पर ताला, मोनो रेल भी ठंडे बस्ते में
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली सरकार ऐसी कोई भी नई योजना लेकर सामने नहीं आई है जिससे चरमराई परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सके। बावजूद इसके बसों की फर्राटा दौड़ के लिए शुरू की गई बस रैपिड ट्रांजिट (बीआरटी) के विस्तार संबंधी योजना पर ताला लगा दिया गया है। साथ ही पूर्वी दिल्ली में मोनो रेल दौड़ाने की योजना भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात के बाद दिल्ली के सांसदों ने दो टूक कहा कि राजधानी में अब बीआरटी की कोई जरूरत नहीं है। दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मकसद बसों की रफ्तार बढ़ाना था जिससे आम आदमी को अपने गंतव्य तक पहुंचने में सुविधा हो। लेकिन इस परियोजना के निर्माण में अपनाए गए तौर-तरीकों ने सड़क जाम की ऐसी समस्या खड़ी कर दी कि बाद में खुद दीक्षित ने भी इस परियोजना से हाथ खींच लिए। करीब 15 नए बीआरटी कॉरिडोर बनाने की योजना भी बनी लेकिन लगातार हो रही आलोचनाओं के मद्देनजर इन पर अमल नहीं किया गया। भाजपा शुरू से इसके खिलाफ रही। जाहिर तौर पर अब इसके आगे बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं बची है। लेकिन इस हकीकत से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि आज भी शहर के 40 फीसद यात्री बसों का इस्तेमाल करते हैं और बसों की धीमी चाल उन्हें देरी से गंतव्य तक पहुंचाती है। सरकार ऐसा कोई विकल्प नहीं पेश कर पाई है जिससे यात्रियों की सबसे बड़ी संख्या को ढोने वाली बसों के बेहतर परिचालन का रास्ता साफ हो सके।
पूर्वी दिल्ली में मोनो रेल चलाने की योजना की घोषणा इस दलील के साथ की गई थी कि जिन इलाकों में मेट्रो नहीं जा सकती, उनमें मोनो रेल चलाई जाएगी। शुरुआत पूर्वी दिल्ली से की जाएगी जबकि शहर के अन्य हिस्सों में भी इसका विस्तार किया जाएगा। लेकिन अब यह योजना भी ठंडे बस्ते में है। उपराज्यपाल नजीब जंग का कहना है कि पहले से घोषित फ्लाईओवर आदि बनाने की योजनाओं पर लगातार काम हो रहा है। वहीं, दिल्ली सरकार के अधिकारी निजी बातचीत में बताते हैं कि नीतिगत मामलों में निर्णय लेना चुनी हुई सरकार का काम है। राष्ट्रपति शासन के दौरान ऐसे फैसले शायद ही लिए जाएं।