खेल में कोई भी बदलाव व्यावहारिक होने चाहिए- सुनील गावस्कर
गावस्कर ने कहा कि विनू मांकड का जब निधन हुआ तो वह उम्र में 60 के शुरुआती पड़ाव पर थे। उनके दो पुत्र अशोक जिनके साथ मुझे कालेज के समय प्रथम श्रेणी और टेस्ट क्रिकेट में समय बिताने का मौका मिला।
(सुनील गावस्कर का कालम)
यह पिछले सप्ताह हुआ था, लेकिन इस पर विश्वास करना और यह मानना अभी भी इतना कठिन है कि राहुल मांकड नहीं रहे। हां, मार्च की शुरुआत में उनका एक एपिसोड था, लेकिन केंट में अपनी बेटी के घर वापस आ गए थे और ठीक हो गए थे। अप्रैल के मध्य तक दुबई लौटने की उम्मीद कर रहे थे जहां वह रहते थे। लेकिन यह होना नहीं था।
विनू मांकड का जब निधन हुआ तो वह उम्र में 60 के शुरुआती पड़ाव पर थे। उनके दो पुत्र, अशोक जिनके साथ मुझे कालेज के समय, प्रथम श्रेणी और टेस्ट क्रिकेट में समय बिताने का मौका मिला। उनका भी जब निधन हुआ तो वह 60 साल दौर में थे। अतुल जो कालेज में मेरी कक्षा में थे उन्होंने ने भी जब दुनिया छोड़ी तो वह भी 60 साल के पड़ाव पर ही थे। राहुल भी 60 साल की उम्र में ही थे जो तीनों भाईयों में सबसे छोटे थे। वह क्रिकेट को पसंद करते थे और इस बारे में काफी देर तक बात कर सकते थे। क्वींसलैंड के ग्रिफिथ विश्वविद्यालय में अपने प्रशासनिक अनुभव से वह एक महान खेल प्रशासक बन सकते थे लेकिन उन्हें मौका नहीं दिया गया। पिछले महीने उन्होंने सुना कि एमसीसी ने गेंदबाज के छोर पर गेंदबाज द्वारा बल्लेबाज को रनआउट करने को अनुचित बताया।
राहुल ने अस्पताल के बिस्तर से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। रनआउट के इस तरीके को उनके परिवार के उपनाम से संदर्भित किया था। उनके पिता ने 1947-48 में आस्ट्रेलिया के पहले भारत दौरे के दौरान दो बार ऐसा किया था। उस वक्त आस्ट्रेलिया के कप्तान रहे सर डोनाल्ड ब्रैडमैन ने कहा था कि इस तरह रनआउट करने में कुछ भी गलत नहीं है और नान स्ट्राइकर बल्लेबाज को गेंद छोड़ने तक क्रीज पर रहना चाहिए। इसके बावजूद एक पत्रकार ने इस तरह रनआउट करने को मांकड नाम दिया। उम्मीद है इस तरह आउट के तरीके को भारतीय मीडिया में लेजेंड के नाम से नहीं कहा जाएगा।
कानून में एक और बदलाव आया है जो एमसीसी ने लाया है, लेकिन इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं पढ़ा है कि खेल के इतने लंबे समय तक चलने वाले कानून को क्यों बदला गया है। यह बदलाव एक नए बल्लेबाज के स्ट्राइक लेने के बारे में है, भले ही दोनों बल्लेबाज कैच लेने के बाद क्रीज पार कर गए हों। यह क्यों बदला गया है, यह ज्ञात नहीं है, कम से कम मैंने इसका कोई कारण नहीं पढ़ा है, लेकिन यह खेल के सामरिक पहलुओं में से एक को हटा रहा है। एक बेहतर बल्लेबाज जो नान स्ट्राइकर छोर पर खड़ा है, उसकी रणनीति कैच हाथ में आने से पहले स्ट्राइक पार करने की होगी जिससे वह अगली गेंद का सामना कर सके।
कठिन समय में यह जीत और हार के बीच अंतर पैदा कर सकता है। अफसोस की बात है कि अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। नया बल्लेबाज स्ट्राइक लेगा और अगर वह निचले क्रम का बल्लेबाज है जो बल्ले से इतना निपुण नहीं है, तो उसकी टीम के मैच जीतने की संभावना कम होगी। उत्तेजना, चिंता और स्लो मोशन में यह देखना कि क्या बल्लेबाज कैच लेने से पहले क्रीज पार कर गया था, यह वो चीजें है जो कानून में बदलाव के बाद मायने नहीं रखते। क्या यह जरूरी था? यह खेल को कैसे बढ़ाता है? यह खेल को कैसे प्रभावित करता है? यह सभी ऐसे प्रश्न हैं जो विशेष रूप से हर बार पूछे जाएंगे जब मैच का अंत रोमांचक तरीके से होगा। वहीं गेंदबाज निश्चित रूप से बाउंड्री को बड़ा करना चाहेंगे। कानून या खेल की परिस्थितियों में कोई भी बदलाव व्यावहारिक होना चाहिए जो हमारे इस महान खेल को बढ़ा सकते हैं। क्या आपको ऐसा नहीं लगता?