बस्तर दशहरा में शामिल होने पहुंचे मुख्यमंत्री बघेल, करोड़ों रुपये के 89 परियोजनाओं का किया लोकार्पण
छत्तीसगढ़ के मुख्ममंत्री भूपेश बघेल बस्तर दशहरा के तहत मुरिया दरबार सहित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने आज जगदलपुर पहुंचे हैं। यहांं आकर उन्होंने कई विकास परियोजनाओं का लोकर्पण और शिलान्यास किया। साथ ही यहां उन्होंने मुरिया विद्रोह के जन नायक झाड़ा सिरहा की आदमकद मूर्ति का भी अनावरण किया।
रायपुर, जागरण आनलाइन डेस्क। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज बस्तर दशहरा के अंतर्गत मुरिया दरबार सहित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने जगदलपुर पहुंचे। मुख्यमंत्री बघेल ने जगदलपुर में स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रदेश वासियों की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की।
इस अवसर पर जिले के उद्योग मंत्री कवासी लखमा, कोंडागांव विधायक मोहन मरकाम, सांसद दीपक बैज, बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल, संसदीय सचिव रेखचन्द जैन, बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विक्रम शाह मंडावी, चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम, महापौर सफीरा साहू, नगर निगम सभापति कविता साहू सहित जनप्रतिनिधिगण उपस्थित थे।
यहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सिरहासार भवन के समीप शहीद स्मारक परिसर में मुरिया विद्रोह के जन नायक झाड़ा सिरहा की आदमकद मूर्ति का अनावरण किया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने बस्तर जिले में 89 विकास कार्यों का लोकार्पण-शिलान्यास किया, जिनकी लागत लगभग 173 करोड़ 28 लाख रुपये से अधिक है। इनमें से मुख्यमंत्री ने 77 करोड़ 38 लाख 72 हजार के 22 विकास कार्यों का लोकार्पण तथा 95 करोड़ 89 लाख 72 हजार के 67 विकास कार्यों का भूमिपूजन किया।
शहीद झाड़ा सिरहा की प्रतिमा को शहर के सिरहासार चौक स्थित शहीद स्मारक के पास लगाया गया है। वीर शहीद झाड़ा सिरहा का जन्म बस्तर जिले के आगरवारा परगना के अंतर्गत ग्राम बड़े आरापुर में परगना मांझी एवं माटी पुजारी परिवार में हुआ था। वह बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे और साथ ही जड़ी बूटियों के जानकार और कुशल नेतृत्वकर्ता भी थे। उनका व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली था। अपने इन्हीं गुणों के कारण सन् 1876 में हुए मुरिया विद्रोह का उन्होंने नेतृत्व किया था।
विद्रोह में बस्तर की आदिम संस्कृति की रक्षा, जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा, सामाजिक रीति-नीतियों के संरक्षण और अंग्रेजों से मिले सामंतवादियों द्वारा किये जा रहे शोषण के विरूद्ध सभी आदिवासियों ने झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में आवाज उठाई थी। अपनी कुशल संगठन क्षमता और रणनीति के साथ पूरे दमखम से लड़ते हुए अंग्रेजी फौज के हाथों झाड़ा सिरहा 1876 में वीरगति को प्राप्त हुए थे।