नए साल में नई पॉलिसियां
अब जिस तरह से बीमारियों का ट्रेंड बदल रहा है, तकनीकी में बदलाव हो रहा है और स्वास्थ्य की लागत बढ़ रही है, उसे देखते हुए इसमें कोई दोराय नहीं कि स्वास्थ्य बीमा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
अब जिस तरह से बीमारियों का ट्रेंड बदल रहा है, तकनीकी में बदलाव हो रहा है और स्वास्थ्य की लागत बढ़ रही है, उसे देखते हुए इसमें कोई दोराय नहीं कि स्वास्थ्य बीमा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जहां तक नए वर्ष 2015 की बात है तो यह कई मायने में काफी अहम रहने वाला है। अगले वर्ष हमें बाजार में कई तरह के नए हेल्थ बीमा उत्पाद देखने को मिलेंगे।
वैसे तो समूचे बीमा क्षेत्र में पिछले एक दशक में काफी बदलाव आए हैं, लेकिन हेल्थ बीमा में सबसे ज्यादा तब्दीलियां देखने को मिली हैं। काफी प्रगति के बावजूद हेल्थ बीमा के हालात को देखकर संतोष नहीं जताया जा सकता। बहुत कुछ किया जाना अभी शेष है। विकसित देशों की बात तो छोड़ दीजिए, यदि विकासशील देशों के साथ भी तुलना करें तो अपना देश स्वास्थ्य बीमा में काफी पीछे है।
चाहे मामला देश की कुल आबादी के हेल्थ बीमा कवेरज का हो या फिर सेहत पर खर्च का। भारतीय स्वास्थ्य पर खर्च भी बहुत अधिक कर रहे हैं। हेल्थ बीमा की पहुंच सिर्फ सात फीसद लोगों तक ही है। इसमें सरकारी स्कीमों को शामिल कर लें तो अमूमन 15 फीसद भारतीयों तक हेल्थ इंश्योरेंस की पहुंच है। देश की सवा अरब की आबादी को देखते हुए यह बहुत ही कम है।
अब जिस तरह से बीमारियों का ट्रेंड बदल रहा है, तकनीकी में बदलाव हो रहा है और स्वास्थ्य की लागत बढ़ रही है, उसे देखते हुए इसमें कोई दोराय नहीं कि स्वास्थ्य बीमा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जहां तक नए वर्ष 2015 की बात है तो यह कई मायने में काफी अहम रहने वाला है। उद्योग हेल्थ बीमा को लेकर नई जागृति पैदा करने, नए तरह के उत्पादों को लांच करने, ग्राहकों के हिसाब से मूल्यवद्र्धित सेवा देने पर खास जोर देगा।
कंपनियों को सेवा की गुणवत्ता स्तर को बढ़ाने, डाटा विश्लेषण व तकनीकी पर खास ध्यान देना होगा। इस बारे में कंपनियों को सावधानी से कदम उठाने होंगे, ताकि हेल्थ बीमा उत्पादों की सही मांग बाजार में पैदा हो सके। ज्यादा से ज्यादा लोग अपने स्वास्थ्य का बीमा करवाएं, इसके लिए जरूरी है कि जागरूकता अभियान सही तरीके से चलाया जाए।
अगले वर्ष हमें बाजार में कई तरह के नए हेल्थ बीमा उत्पाद देखने को मिलेंगे। तीन साल पहले की तुलना में अब आयुर्वेद, होम्योपैथी, फिजियोथेरेपी, गर्भावस्था का कवरेज भी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के तहत मिल रहा है। आगे भी आसानी से समझ में आने वाले, लेकिन ग्राहकों की हर जरूरत को पूरा करने वाले हेल्थ बीमा उत्पाद बाजार में खूब सफल होंगे।
यूनीवर्सल कवरेज को केंद्र की तरफ से बढ़ावा मिलने पर सरकारी व निजी क्षेत्र की कंपनियां बेहतर स्वास्थ्य सेवा देंगी। साथ ही हेल्थ बीमा में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे। कंपनियां बेहतर लक्ष्य के साथ अपने उत्पाद लांच करेंगी। कोशिश भी यही होगी कि देश के सभी नागरिकों को उत्तम गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवा किफायती शुल्क पर उपलब्ध हो। ग्राहकों को भी उत्पादों के चयन में थोड़ी ज्यादा सतर्कता बरतनी होगी।
कंपनियों को भी इस पर ध्यान देना होगा कि हेल्थ बीमा का प्रसार महानगरों से बाहर निकल छोटे शहरों व देश के ग्रामीण हिस्से में हो। ऐसे उत्पाद भी तैयार करने होंगे जो कम आय वाली आबादी को भी हेल्थ बीमा की सुविधा दिला सकें। यह काम बेहतर रणनीति और तकनीकी की मदद से संभव है। हेल्थ बीमा में डिजिटाइजेशन की वजह से भी काफी बदलाव देखने को मिला है। पॉलिसी बेचने से लेकर ग्राहकों के क्लेम सेटलमेंट तक का सारा काम इससे काफी आसान हो चुका है।
अगले वर्ष हेल्थकेयर उत्पाद लांच करने के साथ ही बीमा कंपनियों को अनियमित जीवन शैली से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने वाले उत्पाद लाने होंगे, ताकि ग्राहकों को वैसे खर्चों से भी बचाया जा सके जो अभी तक कंपनियां नहीं दे पा रही हैं। जीवन स्तर की गुणवत्ता बनाने वाले उत्पादों का भी दौर जल्द ही शुरू होने वाला है। ओपीडी ट्रीटमेंट में छूट देने वाले हेल्थ बीमा उत्पाद तो आज भी उपलब्ध हैं।
आंख, दंत चिकित्सा के क्षेत्र में कई तरह के अनूठे उत्पाद आज चुके हैं और इसमे और विस्तार देखने को मिल सकता है। बीमारियों को रोकने में ग्राहकों की मदद करने वाले हेल्थ बीमा उत्पादों का दौर भी शुरू होने वाला है। उदाहरण के तौर पर स्पा, आयुर्वेदिक चिकित्सा, योगा. जिम आदि में छूट देने वाली स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां भी बाजार में पेश की जा सकती हैं।
अगले वर्ष अगर सब कुछ ठीक रहता है तो देश में यूनीवर्सल हेल्थ केयर मॉडल की तरफ कदम बढ़ाया जा सकता है। मोदी सरकार ने इसे अपना प्रमुख एजेंडा घोषित किया है।
सुरेश सुगठन
प्रमुख (हेल्थ इंश्योरेंस)
बजाज अलायंज जनरल इंश्योरेंस