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RCEP पर सदस्य देशों ने किए हस्ताक्षर, जानें कितना अहम है आर्थिक साझेदारी से जुड़ा यह करार, भारत ने खुद को क्यों किया इससे अलग

आसियान समूह के दस देशों को लेकर इस साझेदारी पर चर्चा की शुरुआत सबसे पहले 2012 में हुई थी। इनमें चीन जापान दक्षिण कोरिया ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश शामिल हैं। भारत को भी RCEP पर हस्ताक्षर करना था लेकिन उसने पिछले साल खुद को इससे अलग कर लिया था।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2020 10:22 AM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2020 07:35 AM (IST)
आबादी के लिहाज से देखें तो इस डील में शामिल देशों की कुल आबादी 2.1 अरब है। (PC: Pexels)

नई दिल्ली, एएफपी। चीन समर्थित क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (RCEP) पर रविवार को सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किए। इस क्षेत्रीय साझेदारी के जरिए चीन की कोशिश एशियाई बाजारों एवं व्यापार में अपना दबदबा बढ़ाना है। करीब आठ वर्ष तक विचार-विमर्श के बाद इस साझेदारी से जुड़े मसौदे को तैयार किया गया है, जिस पर रविवार को हस्ताक्षर किया गया। विश्लेषकों की मानें तो जीडीपी के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता यानी ट्रेड डील है। आइए विस्तार से जानते हैं कि यह ट्रेड डील क्या है और इसकी शुरुआत कैसे हुई और किस तरह की पृष्ठभूमि में यह चर्चा यहां तक पहुंची है। साथ ही किन वजहों से भारत ने पिछले साल इस समझौते से खुद को अलग कर लिया। 

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रीजनल कम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) क्या है?

आसियान समूह के दस देशों को लेकर इस साझेदारी पर चर्चा की शुरुआत सबसे पहले 2012 में हुई थी। इनमें चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश शामिल हैं। भारत को भी RCEP पर हस्ताक्षर करना था लेकिन उसने पिछले साल खुद को इस साझेदारी से अलग कर लिया था। 

आबादी के लिहाज से देखें तो इस डील में शामिल देशों की कुल आबादी 2.1 अरब है। वहीं, दुनिया की कुल जीडीपी में RCEP में शामिल देशों की हिस्सेदारी 30 फीसद के आसपास बैठती है।  

इस साझेदारी का लक्ष्य कम टैरिफ, विभिन्न सेवाओं में व्यापार को खोलना और निवेश को प्रोत्साहित करना है ताकि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं विश्व के अन्य राष्ट्रों के मुकाबले खड़ी हो सकें।  

RCEP का लक्ष्य कंपनियों की लागत और समय में कमी लाना भी है। इस समझौते में बौद्धिक संपदा को लेकर भी बात की गई है लेकिन पर्यावरण संरक्षण एवं श्रम अधिकार इससे अछूते हैं।   

आईएचएस मार्किट में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख राजीव विश्वास ने कहा, ''RCEP से जुड़ी आगे की बातचीत में मुख्य रूप से ई-कॉमर्स सेक्टर को लेकर बातचीत हो सकती है।'' 

यह इसलिए अहम है क्योंकि क्षेत्रीय साझेदारी से जुड़े इस करार में चीन तो शामिल है लेकिन अमेरिका नहीं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इससे क्षेत्र में चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को मजबूती मिलेगी।  

भारत ने क्यों किया खुद को अलग

भारत ने पिछले साल खुद को इस समझौते से यह चिंता जताते हुए अलग कर लिया कि देश में चीन के सस्ते सामानों का पूरा बोलबाला हो जाएगा। हालांकि, बाद में अगर भारत को लगता है तो वह इस ब्लॉक का हिस्सा बन सकता है।  

भारत ने इस साझेदारी के तहत मार्केट एक्सेस का मुद्दा उठाया था और इस बात की आशंका जतायी थी कि देश के बाजार में अगर चीन के सस्ते सामानों का दबदबा हो जाएगा तो भारत के घरेलू उत्पादकों एवं विनिर्माताओं पर बहुत अधिक असर पड़ेगा। विशेषकर टेक्सटाइल, डेयरी और कृषि सेक्टर को लेकर यह आशंका जाहिर की गई थी।  


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