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चीन की मंदी का भारत पर भी होगा असरः रघुराम राजन

सार्वजनिक और निजी निवेश में कमी देश की आर्थिक तरक्की को बाधित कर रही है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को तो कम से कम ऐसा ही लगता है। लेकिन, उन्होंने उम्मीद जताई कि विदेशी निवेश बढ़ने से यह समस्या एक हद तक कम हो जाएगी। उन्होंने कहा कि

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2015 11:53 AM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2015 12:38 PM (IST)
चीन की मंदी का भारत पर भी होगा असरः रघुराम राजन

हांगकांग। सार्वजनिक और निजी निवेश में कमी देश की आर्थिक तरक्की को बाधित कर रही है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को तो कम से कम ऐसा ही लगता है। लेकिन, उन्होंने उम्मीद जताई कि विदेशी निवेश बढ़ने से यह समस्या एक हद तक कम हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के आर्थिक हित एक दूसरे के साथ जुड़े हैं। अगर चीन में मंदी आती है तो उसका असर भारत में भी होगा। रघुराजन का यह बयान भारत सरकार उस बयान के ठीक उलट है, जिसमें कहा गया था कि चीन की मंदी का भारत पर असर नहीं होगा।

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राजन ने हांगकांग की साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट को दिए गए अपने इंटरव्यू में कहा कि चीन की मंदी समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने भारत के बारे में कहा कि देश में पूंजी का निवेश जरूरत से कम हो रहा है। इस वजह से अर्थव्यवस्था उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पा रही है, जितनी इसकी क्षमता है। चूंकि कारखाने पूरी क्षमता से 30 प्रतिशत कम उत्पादन स्तर पर चल रहे हैं, लिहाजा कंपनियां नए प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाने से कतरा रही हैं।

वहीं, हांगकांग में शुक्रवार को बिजनेस से जुड़े एक कार्यक्रम में राजन ने कहा, 'आर्थिक विकास के मोर्चे पर सबसे बड़ी चिंता निवेश को लेकर है। निजी क्षेत्र की ओर से निवेश में कमी आई है और सार्वजनिक निवेश के मामले में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है।'

निवेश घटने के कारण ही संभवतः रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए अनुमानित विकास दर घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है, जबकि पहले केंद्रीय बैंक ने अनुमान लगाया था कि घरेलू अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत के हिसाब से आगे बढ़ेगी। हालांकि यह सरकार के 8-8.5 प्रतिशत के लक्ष्य से कम है, फिर भी चीन की विकास दर से ज्यादा है।

देश में आर्थिक विकास की रफ्तार कम होने और निवेश घटने के बावजूद राजन ने कहा कि मजबूत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में कुछ बेहतरी की बदौलत निजी निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।

जनवरी से लेकर जून के बीच देश में एफडीआई बढ़कर 19.4 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले साल इसी अवधि में एफडीआई के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक है। इससे संकेत मिलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ रहा है। कुछ दिन पहले खनन, रक्षा, नागरिक विमानन और ब्रॉडकास्टिंग जैसे 15 बड़े क्षेत्रों में एफडीआई के नियमों में ढील दी गई है। उम्मीद जताई जा रही है कि इसकी बदौलत देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा।

बहरहाल, राजन ने कहा, 'हम देख रहे हैं कि एफडीआई की आमद बढ़ रही है, बतौर घोषणा भी और जमीनी स्तर पर भी। एक बार मांग के मोर्चे पर थोड़ी भी बेहतरी शुरू होते ही नए प्रोजेक्ट्स आने शुरू हो जाएंगे।'

आरबीआई ने सितंबर में रेपो रेट 0.5 प्रतिशत घटाकर 6.75 प्रतिशत कर दिया था। इसके लिए सरकार और उद्योग जगत लंबे समय से दबाव बना रहा था। दलील दी जा रही थी कि नीतिगत ब्याज दरें घटाने से ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा।

राजन अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और अन्य सेंट्रल बैंकों की अत्यधिक ढीली मौद्रिक नीति (नीतिगत ब्याज दर बिलकुल कम रखना) के प्रबल आलोचक रहे हैं। राजन का मानना है कि बाजार में सस्ता पैसा उपलब्ध होने से पूरी दुनिया की वित्तीय प्रणाली गंभीर समस्याओं से घिर सकती है। इस वजह से खास तौर पर उभरते हुए बाजारों के लिए जोखिम बढ़ रहा है। फिर भी, उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति लंबे समय तक बने रहने की संभावना नहीं है। राजन ने कहा, 'हमे नहीं लगता कि यह स्थिति (कम ग्रोथ) अगले 20 साल तक जारी रहेगी। मैं समझता हूं कि हम इस परेशानी से उबर रहे हैं। लेकिन, इसके लिए हमें मुफीद माहौल बनाना होगा।'

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