निवेश की राह में पॉलिसी और लालफीताशाही सबसे बड़ी बाधाः एसएंडपी
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के मुताबिक भारत में निवेश की राह में सबसे बड़ी बाधा नीतिगत अड़चल और नौकरशाही है। एसएंडपी ने एशिया की तीन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। एजेंसी ने भारत, चीन और इंडोनेशिया से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया है।
मुंबई। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के मुताबिक भारत में निवेश की राह में सबसे बड़ी बाधा नीतिगत अड़चल और नौकरशाही है। एसएंडपी ने एशिया की तीन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। एजेंसी ने भारत, चीन और इंडोनेशिया से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया है।
एसएंडपी के मुताबिक इन तीनों देशों में भारत के हालात अलग हैं। यहां कॉरपोरेट आय करीब-करीब स्थिर हो गई है, लेकिन डेट (ऋण) मार्केट में तेजी बनी हुई और निवेश में कमी हो रही है।
एस एंड पी ने कहा, 'हमारा मानना है कि सरकारी नीतियों के मामले में आ रही दिक्कतों और नौकरशाही संबंधी परेशानियों की वजह से निवेश बाधित हुआ है। अब चुनौती मौजूदा संपत्तियों से संभावित आय के दोहन की है।'
इससे पहले एस एंड पी ने कहा था कि राजकोषीय कमजोरी की वजह से भारत के क्रेडिट प्रोफाइल पर दबाव बना हुआ है। इस एजेंसी ने भारत के लिए आउटलुक स्थिर रखते हुए इसे 'बीबीबी' रेटिंग दी हुई है, जो जंक ग्रेड (बेकार) से थोड़ा ही ऊपर है। लेकिन, एक दूसरी रेटिंग एजेंसी मूडीज ने आउटलुक की रेटिंग सकारात्मक कर गी है और यह भी कहा कि अगले एक-डेढ़ साल में रेटिंग बढाई जा सकती है।
वहीं, रेटिंग एजेंसी एस एंड पी के मुताबिक भारत की स्थिति नाजुक बनी हुई है। फाइनेंस या कमोडिटी सेक्टर से कोई भी झटका अब तक के तमाम सुधारों पर पानी फेरने के लिए काफी होगा। एजेंसी के मुताबिक आगे और राजकोषीय सुधारों के बगैर निवेश के तौर पर सरकारी खर्च में बढोतरी जारी रखने में काफी दिक्कत आ सकती है।
एस एंड पी ने कहा है कि चीन और इंडोनेशिया के साथ-साथ भारत में भी गैर-जरूरी (विवेकाधीन) उपभोक्ता सामान, एनर्जी, इंडस्ट्री और माइनिंग सेक्टर की चुनौतीयां बरकरार हैं। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि बावजूद इसके डेट मार्केट गुलजार है, लेकिन निवेश घटता जा रहा है।
वित्त मंत्रालय के मुताबिक दिसंबर में खत्म हुई छमाही के दौरान देश का कुल बाहरी कर्ज 15.5 अरब डॉलर या 3.5 प्रतिशत ब़़ढकर 461.9 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था। बाहरी कमर्शियल उधारी और प्रवासी भारतीयों ([एनआरआई)] की तरफ से डिपॉजिट ब़़ढना इसकी अहम वजहें रहीं।
साल 2014 के दौरान कंपनियों के लिए घरेलू बाजार से कर्ज उठाना महंगा पडा क्योंकि ब्याज दरें ज्यादा रहीं। यही कारण रहा कि उन्होंने अपेक्षाकृत कम ब्याज दरों पर अंतरराष्ट्रीय बाजार से कर्ज उठाए। पिछले साल कंपनियों ने करीब 50 अरब डॉलर का कर्ज उठाया, जिसमें से 21 अरब डॉलर विदेशी कर्ज रहा।