तीसरी दुनिया में भारत के साथ पांव जमाना चाहता है यूरोपीय संघ
भारत की दुनिया में बनती छवि को देखते हुए अब यूरोपीय संघ एक निर्विवाद रणनीतिक साझीदार मान विकास परियोजना साथ में चलाने के इच्छुक है।
जयप्रकाश रंजन, वियना। बदलते वैश्विक माहौल में अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता हासिल करने में नए सिरे से जुटा यूरोपीय संघ भारत को निर्विवाद तौर पर अपना एक अहम रणनीतिक साझेदार देश मान रहा है। विश्र्व पटल पर भारत की मजबूत हो रही छवि की वजह से यूरोपीय संघ भी हर तरह से भारत के साथ रिश्तों को नया आयाम देने में जुटा हुआ है। यही वजह है कि यूरोपीय संघ भारत के साथ दक्षिण एशियाई समेत अन्य मुल्कों में विकास परियोजना चलाने को इच्छुक है।
वैसे तो इस बारे में 30 मार्च, 2016 को भारत-यूरोपीय संघ (ईयू) की शीर्षस्तरीय बैठक में काफी चर्चा हुई थी लेकिन इस बारे में आगे का एजेंडा तय करने के लिए जल्द ही दोनों पक्षों के बीच एजेंडा तय होगा। वैसे भारत और ईयू के बीच इस किस्म की साझेदारी को लेकर नेपाल, पाकिस्तान सरीखे देशों ने आंखें तरेरी हैं लेकिन ईयू इसको गंभीरता से लेते हुए नहीं दिख रहा है।
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यूरोपीय संघ के शीर्ष अधिकारियों का कहना है कि भारत के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं है बल्कि इससे विकासशील देशों को तेजी से अपनी स्थिति सुधारने का मौका मिलेगा। ईयू भारत के सहयोग से दक्षिण एशिया में समाजिक व स्वास्थ्य विकास से जुड़ी परियोजनाओं में खास तौर पर काम करना चाहता है। चूंकि भारत के पास इस तरह का तंत्र है और समाजिक विकास को लेकर भारत का अनुभव काफी व्यापक हो चुका है, इसलिए ईयू इसका फायदा अन्य देशों को देने में मदद करेगा। चूंकि पड़ोसी राजनीतिक या आपसी प्रतिद्वंदिता की वजह से कई विकासशील देश भारत से सीधे तौर पर समाजिक व आर्थिक मदद लेना नहीं चाहेंगे लेकिन जब यह मदद ईयू के जरिए दी जाएगी तो उनका व्यवहार अलग होगा।
संघ मानता है कि भारत सरकार की तरफ से महिलाओं और बच्चियों के विकास सरीखी योजनाएं दूसरे विकासशील देशों के लिए भी मुफीद साबित हो सकते हैं। इसके अलावा हर व्यक्ति को वित्तीय सेवा से जोड़ने संबंधी भारत सरकार का अनुभव भी दूसरे देशों में सफल साबित हो सकता है। सनद रहे कि भारत और ईयू के बीच शीर्षस्तरीय वार्ता के बाद जारी संयुक्त विज्ञप्ति में नेपाल को मदद पहुंचाने को लेकर जो जिक्र किया गया था उसका नेपाल सरकार ने क़ड़ा विरोध किया था। माना जाता है कि इससे पाकिस्तान भी खुश नहीं है।
इसी क्रम में बिन बुलाये शरणार्थियों की भयंकर समस्या से जूझ रहे यूरोपीय देशों ने इसका हल निकालने के लिए भारत से मदद की गुहार लगाई है। यूरोपीय संघ के लगभग दर्जन भर देशों में अफ्रीका और एशिया के तकरीबन के 10 लाख शरणार्थी पहुंच चुके हैं। इससे न सिर्फ यूरोपीय संघ की राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था के चरमराने की बात हो रही है बल्कि इससे आने वाले दिनों में यूरोप के जनसंख्या अनुपात के ही बदल जाने की बात हो रही है।
ईयू के सदस्य देश आस्टि्रया के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चूंकि भारत बांग्लादेश और श्रीलंका से आये हुए शरणार्थियों का बाढ़ झेल चुका है इसलिए हम उससे इस बारे मे अनुभव लेना चाहते हैं।