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कुशल कर्मचारी बने सबसे बड़ी चुनौती

भारत उन गिने-चुने देशों में शुमार है, जहां ढांचागत विकास की जोरदार संभावना है, लेकिन एक बड़ी चुनौती भी है। यहां कुशल कर्मचारी और नौकरी के बेहतर मौके पैदा करना निहायत मुश्किल काम है, जबकि इनके बगैर तेज विकास दर का तानाबाना बुनना लगभग असंभव है। ग्लोबल फाइनेंशियल

By Shashi Bhushan KumarEdited By: Published: Sat, 03 Oct 2015 08:07 AM (IST)Updated: Sat, 03 Oct 2015 12:35 PM (IST)

नई दिल्ली। भारत उन गिने-चुने देशों में शुमार है, जहां ढांचागत विकास की जोरदार संभावना है, लेकिन एक बड़ी चुनौती भी है। यहां कुशल कर्मचारी और नौकरी के बेहतर मौके पैदा करना निहायत मुश्किल काम है, जबकि इनके बगैर तेज विकास दर का तानाबाना बुनना लगभग असंभव है। ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विस फर्म मैक्वेरी की रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

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रिपोर्ट के मुताबिक अभी से लेकर साल 2025 तक भारत की कामकाजी आबादी में लगभग 10 करोड़ नए लोग जुड़ जाएंगे। कुल मिलाकर ऐसे लोगों की तादाद दुनियाभर की कुल कामकाजी आबादी की 20 फीसद हो जाएगी। दक्षिण अमेरिका में 1.4 करोड़ कामकाजी लोग बढ़ेंगे, जबकि चीन में कामधंधा करने वाले 2.9 करोड़ लोग कम हो जाएंगे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मांग की गंभीर कमी वाली दुनिया में भारत ऐसा देश है, जहां तगड़ी मांग की गुंजाइश बन रही है। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती जरूरत के मुताबिक पर्याप्त संख्या में कुशल कामकाजी लोग तैयार करने की है। ऐसे लोगों की ही बदौलत उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है और बड़ी तादाद में नौकरियों की व्यवस्था की जा सकती है।

मैक्वेरी का अनुमान है कि अगले दशक के दौरान भारत में कुल विवेकाधीन खर्च (एक तरह से गैर-जरूरी खर्च) काफी बढ़ जाएगा। कुल विवेकाधीन खर्च 2025 तक करीब 33,000 अरब रुपये हो जाएगा। वर्ष 2005 में ऐसा खर्च 11,400 अरब रुपये था, जबकि 2015 में 22,200 अरब रह सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुकूल नीतिगत माहौल, ढांचागत सुधारों और बढ़ते उत्पादकता स्तर के सहारे भारत तेज और स्थायी विकास की राह पर चल पड़ेगा। भारत में जो आबादी का अनुकूल ढांचा है, उसका फायदा उठाने के तीन अहम घटक शिक्षा, उत्पादकता और रोजगार के पर्याप्त साधन हैं।

अर्थव्यवस्था सही राह पर

स्किल इंडिया, कारोबार सुगम माहौल, स्मार्ट सिटी और औद्योगिक गलियारे जैसी पहल के साथ भारत ने आर्थिक विकास के सही रास्ते पर चलना शुरू किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल आबादी के महज सात फीसद लोगों के पास व्यावसायिक शिक्षा है। दक्षिण अमेरिका में ऐसे लोगों की तादाद 70 प्रतिशत है। इसके अलावा आय से जुड़े कामकाज में महिलाओं की भागीदारी कम होने के कारण यहां हर रोजगार प्राप्त व्यक्ति पर निर्भर लोगों की संख्या 1.7 है, जो चीन के अनुपात से दोगुना है। भारत में आर्थिक विकास का तानाबाना एक हद तक घरेलू मांग पर आधारित है।

रिपोर्ट के मुताबिक आगामी वर्षो में शहरीकरण तेजी से बढ़ेगा, क्योंकि लोग खेती-बाड़ी छोड़कर गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार तलाशने लगे हैं, खास तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में। अनुमान है कि 2015 में शहरी आबादी 41.8 करोड़ है। यह 2025 तक बढ़कर 50.9 करोड़ हो जाएगी, जो तब तक कुल जनसंख्या का 36 प्रतिशत होगी।

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