वोडाफोन, केयर्न ऑफर का लाभ उठाएं या मुकदमेबाजी करती रहेंः अरुण जेटली
वोडाफोन ग्रुप और केयर्न एनर्जी जैसी कंपनियों के लिए पिछली तारीख से टैक्स मामलों को निपटाने का विकल्प खुला है। वे चाहें तो सरकार के वन-टाइम ऑफर का लाभ उठाएं।
नई दिल्ली। वोडाफोन ग्रुप और केयर्न एनर्जी जैसी कंपनियों के लिए पिछली तारीख से टैक्स मामलों को निपटाने का विकल्प खुला है। वे चाहें तो सरकार के वन-टाइम ऑफर का लाभ उठाएं। इसके तहत उन्हें मूल टैक्स राशि का भुगतान करना होगा। ब्याज व जुर्माने की राशि से छूट मिलेगी। दूसरा रास्ता यह है कि वे मुकदमेबाजी को जारी रखें। यह कहते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ किया कि यह कंपनियों पर निर्भर करता है कि वे कौन सा विकल्प चुनती हैं। किसी को कोई विकल्प चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
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जेटली बोले कि जो कंपनियां पेशकश स्वीकार नहीं करना चाहती हैं, सरकार को उनसे कोई समस्या नहीं है। यदि वे मुकदमेबाजी को जारी रखना चाहती हैं तो यह उनकी इच्छा है। टैक्स मांग की नियति मुकदमे के नतीजे पर निर्भर करेगी।
मामले के मध्यस्थता प्रक्रिया (आर्बिट्रेशन) में होने के बावजूद बीते महीने वोडाफोन और केयर्न को नोटिस भेजे गए। जबकि सरकार ने बीती तारीख से यानी रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स कानून का इस्तेमाल करते हुए ताजा मांग नहीं करने की प्रतिबद्धता जताई है। इस पर जेटली ने कहा कि यदि पहले से मौजूद आकलन आदेश हैं तो नोटिस जाएंगे ही। यदि संबंधित अधिकारी नोटिस जारी नहीं करता है तो कल कैग या सीबीआइ उससे सवाल करेगा कि क्यों वह फाइल पर बैठा रहा।
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सरकार ने केयर्न एनर्जी से 10,247 करोड़ रुपये की टैक्स मांग की है। वहीं वोडाफोन 2007 में हचिसन के स्वामित्व वाले मोबाइल फोन कारोबार में 67 फीसद हिस्सेदारी खरीदने को लेकर टैक्स मांग का सामना कर रही है। उससे कर, ब्याज और जुर्माने में 14,200 करोड़ रुपये की मांग की गई है।
वित्त मंत्री ने 2016-17 के लिए आम बजट पेश करते हुए रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स मामलों के निपटान की एकबारगी योजना की पेशकश की थी। इसमें कहा गया था कि कंपनियां केवल बकाया टैक्स का भुगतान कर मामले का निपटान कर सकती हैं। ऐसे मामले में ब्याज व जुर्माने की देनदारी माफ कर दी जाएगी। संबद्ध कंपनी को अदालतों, ट्रिब्यूनल या मध्यस्थता प्रक्रिया में लंबित सभी वादों को वापस लेना होगा।
ज्वैलर्स को आश्वासन
वित्त मंत्री ने कहा है कि सराफा कारोबारियों का उत्पीड़न न हो, इसके लिए वह आगे बढ़कर मदद को तैयार हैं। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि सोने जैसे लक्जरी आइटम को बिना टैक्स के नहीं छोड़ा जा सकता है। सोने और हीरे के जेवरातों पर एक फीसद उत्पाद शुल्क लगाए जाने के फैसले के खिलाफ दो मार्च से ज्वैलर्स की हड़ताल अब भी जारी है।