पृथ्वी को बचाने में जुटे ये लोग, आप भी ऐसे कर सकते अपना योगदान
आज पूरा विश्व पृथ्वी दिवस मना रहा है। इस अवसर पर हम आप भी अपनी आदतों में सुधार लाकर इस धरा को हरा-भरा रखने में मदद कर सकते हैं।
पटना [चारुस्मिता]। आज पृथ्वी दिवस है। वह दिन जब हम उस धरती के बारे में सोचें, जिसके कारण जीवन संभव है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण आज पृथ्वी दिन-ब-दिन गर्म होती जा रही है। कई प्रजातियां विलुप्त हो गईं और कई होने की कगार पर हैं। इन तमाम मुश्किल हालात के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पृथ्वी को बचाने में जुटे हैं। इनकी तरह हम भी कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर पृथ्वी को बचा सकते हैं।
आइए जानते हैं...
फादर रॉबर्ट चला रहे 'बचाओ 100 वाट बिजली' मुहिम
राजधानी में हरियाली के लिए काम कर रही संस्था 'तरुमित्र' के फादर राबर्ट बिजली बचाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। वे वर्ष 2008 से 'बचाओ 100 वाट बिजली' मुहिम चला रहे हैं। उनके इस अभियान से पटना के विभिन्न स्कूलों के करीब 10,000 छात्र जुड़े हुए हैं। वे छात्र घर-घर जाकर बिजली बचाने की बात बताते हैं।
वे लोगों को जानकारी देते हैं कि किस तरह थोड़ी सी सजगता से हर व्यक्ति हर दिन 100 वाट बिजली बचा सकता है। वे बच्चे लोगों को एलइडी और सीएफएल बल्बों का प्रयोग करने, घर में अनावश्यक जल रहे बल्बों को स्विच ऑफ करने, बेमतलब का पानी खर्च न करने जिससे मोटर न चलानी पड़े आदि उपाय बताते हैं।
वाइल्ड लाइफ पर शोध कर रहे समीर
17 सालों से वाइल्ड लाइफ पर काम करने वाले समीर कुमार सिन्हा कहते हैं कि धरती पर जीवन बचा रहे इसलिए लिए पशु-पक्षी से लेकर कीड़े-मकौड़े तक, सबकी उपयोगिता है। प्राकृतिक परागनकर्ता जैसे चमगादड़, मधुमक्खी और पक्षी ये कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं, जिनसे इको सिस्टम संतुलित रहता है।
वे बताते हैं कि मधुमक्खी से लेकर चमगादड़ तक सभी अच्छे परागनकर्ता हैं। चमगादड़ ऐसा जीव है, जो अपने वजन से तीन गुना अधिक कीड़ा-मकौड़ा खाता है। इसके अलावा मधुमक्खी भी अच्छी प्राकृतिक परागणकर्ता होती है, मगर पेड़ों के कटने से इसके छत्ते भी अंधाधुंध हटाए जा रहे हैं।
प्राकृतिक आवास उजडऩे के कारण इनकी स्थिति विलुप्त होने वाली प्रजाति के अंदर आने लगी है। समीर बिहार में विलुप्त होती पक्षियों की प्रजाातियों पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्हें बचाने की मुहिम में भी जुटे हैं।
जैविक खेती को बढ़ावा दे रहीं वंदना
पर्यावरणविद् वंदना शिवा जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही हैं। 'बीजों : नई आजादी' मुहिम के तहत वे गांव-गांव घूम-घूमकर किसानों को जागरूक करती हैं। वे मल्टी नेशनल कंपनियों के हाइब्रिड बीजों से होने वाले नुकसान से किसानों को जागरूक कर रही हैं। वंदना 200 किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण भी दे रही हैं। इसके तहत वे बीजों के संरक्षण से लेकर जैविक खाद बनाने तक की प्रक्रिया बता रही हैं।
लोकगीतों से नदियों को जीवन दे रहे शंकर
कुमार अजय शंकर नदियों के संरक्षण के लिए काम करते हैं। वे पटना में गंगा के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। वे लोकगीतों की मदद से दियारा क्षेत्र में जाकर लोगों को गंगा नदी को बचाने का संदेश देते हैं। वे कहते हैं, गंगा की स्थिति सबके आंखों के सामने है और इसकी स्थिति को सुधारने के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है। वे लोगों को गंगा नदी में कूड़ा फेंकने से रोकते हंै। इसके लिए वे अपने दल के साथ कई युवाओं को भी जोड़ रहे हैं।
आप भी ऐसे कर सकते हैं योगदान
- पृथ्वी को हरा-भरा रखने में सहयोग करें। हर खास मौके को यादगार बनाने के लिए एक पेड़ जरूर लगाएं। उसकी निगरानी भी करें।
- बिजली बचाएं। घर में हो या ऑफिस में, कहीं भी बेवजह बिजली का इस्तेमाल न करें। सीएफएल और एलईडी बल्बों का इस्तेमाल करें।
- सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करें। सौर ऊर्जा न केवल पर्यावरण के लिए अच्छी है, बल्कि आपकी जेब के लिए भी हल्की है।
- अपने आस-पास कचरा न फैलाएं। प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
- पानी की बचत करें। बेवजह नलों का पानी न बहने दें। रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा दें।
- हर रोज अपनी बालकनी में पक्षियों के लिए पानी जरूर रखें। इससे पक्षियों का जीवन बचेगा।
कार्बन बढ़ा रहा पृथ्वी का पारा
आंकड़ों की मानें तो विकासशील देशों में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन सबसे अधिक होता है और इसका एक कारण बिजली की खपत भी है। अगर बिजली बचाई जाए तो तो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा भी कम होगी। कार्बन की बढ़ती मात्रा से जलवायु परिवर्तन की भी समस्या उभर कर सामने आ रही है। इस परिवर्तन को रोकने के लिए प्रदूषण कम करना सबसे जरूरी है। इसके लिए जल, जमीन और वायु से संबंधित प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा।
अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए
बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए पानी की जरूरत भी बहुत अधिक बढ़ गई है। बदलती लाइफ स्टाइल के कारण भी पानी की बर्बादी बहुत अधिक हो गई है। आज एसी, गीजर, फ्रिज के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है लेकिन ये कुछ ऐसे संयंत्र हैं जिससे कि पानी की खपत बहुत अधिक बढ़ जाती है।
इसके साथ ही इससे निकलने वाला क्लोरो फ्लोरो कार्बन भी वायु को हानि पहुंचाता है। पानी के अत्यधिक प्रयोग होने से आज कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा।
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जल संरक्षण पर काम कर रहे डॉ. अशोक घोष कहते हैं, पानी बचाने के लिए हमें अपनी लाइफ स्टाइल बदलने की भी जरूरत है। जनसंख्या वृद्धि भी नियंत्रित करनी होगी। पानी को संग्रहित करने से ग्राउंड वाटर लेवल अंदर जाने की समस्या का समाधान मिल सकता है।
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अगर वर्षा के जल को बहकर जाने से बचा लिया जाए तो वाटर लेवल फिर से सही हो जाएगा। आज कंक्रीट के जंगल बने शहर में इसकी सबसे अधिक कमी है जहां से वर्षा का जल बहते बहते समुद्र में जाकर मिल जाता है और बर्बाद हो जाता है।