इस इमारत में छिपा है 400 साल का अतीत, पटना के महागिरजाघर के तहस-नहस होने की कहानी
393 वर्ष प्राचीन पादरी की हवेली महागिरिजाघर का है सुनहरा इतिहास ईसाई समुदाय द्वारा 1628 ई. में पादरी की हवेली स्थापित की गई 1772 ई. से 1779 के बीच फिर से पादरी की हवेली गिरिजाघर का निर्माण 700 रुपये में हुआ
पटना सिटी, जागरण संवाददाता। बिहार की राजधानी पटना का बेहद लंबा इतिहास तो है ही, इस शहर की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भी बेहद समृद्ध रही है। पटना के मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। सिखों के आखिरी गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली पर बने तख्त श्रीहरिमंदिर की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर तक है। इसी तरह इस्लाम, इसाइयत और जैन मतावलंबियों के लिए भी यह शहर बेहद महत्वपूर्ण है। पटना सिटी के गुरहट्टा स्थित पादरी की हवेली महागिरजाघर 392 वर्ष पुराना है। ईसाई समुदाय द्वारा 1628 ई. में स्थापित पादरी की हवेली सैकड़ों वर्ष बाद भी अपने भीतर उस दौर का खूबसूरत इतिहास समेटे हुए है।
अशोक राजपथ से गुजरते वक्त आसानी से पड़ जाती हैं निगाहें
पादरी की हवेली स्थित गिरजाघर की स्थापना के समय मुगल बादशाह जहांगीर का शासन था। तब अंग्रेज भी भारत आ चुके थे। इस गिरजाघर में काम करने के लिए कोलकाता से कापूचिन पुरोहित फादर साइमन फिगुएरडी को बुलाया गया था। फादर ने यहां प्रार्थना स्थल का भी निर्माण कराया। अशोक राजपथ से गुजरनेवालों इस चर्च पर आसानी से निगाहें पड़ जाती हैं। वर्तमान में इसके फादर ललित प्रमुख हैं।
1763 के युद्ध में पूरी तरह तहस-नहस कर दिया गया था गिरजाघर
1713 ई. में कापुचिन धर्मसंगियों ने विकसित पूजा घर का निर्माण कराया। 1763 ई. में अंग्रेजी एवं मीर कासिम के सिपाहियों के बीच युद्ध के दौरान अनेकों अंग्रेजों का कत्ल हुआ। उन अंग्रेजों को गिरजाघर से कुछ दूरी पर स्थित गिरजा अस्पताल के सटे कब्रिस्तान में दफनाया गया। युद्ध के दौरान पादरी की हवेली गिरजाघर को तहस-नहस कर दिया गया था।
700 रुपए में बनी थी गिरजाघर की मौजूदा आलीशान इमारत
इसके बाद रिवेटी के कापूचिन फादर जोसेफ द्वारा 1772 ई. से 1779 के बीच फिर से पादरी की हवेली गिरजाघर का निर्माण कराया। कोलकाता के प्रसिद्ध वेनेटियन आर्किटेक्ट टेरेटो ने डिजाइन तैयार किया। उस समय सूर्खी-चूने का प्रयोग कर दीवार का निर्माण हुआ था। उस समय 700 रुपये में गिरजाघर का निर्माण हुआ था। पीले रंग की इमारत दूर से ही दिखती है। इमारत के अग्र भाग में ऊंचाई तथा मोटा चार पिलर है। 1782 ई. में गिरजाघर में अष्टधातु से निर्मित विशाल मरिया घंटा नेपाल नरेश पृथ्वी नारायण के पुत्र बहादुर शाह द्वारा भेंट किया गया। घंटे का नाम मरिया अंकित है।
क्रिसमस को लेकर बढ़ने लगी है गिरजाघर की रौनक
वर्ष 2013 के नवंबर माह में पादरी की हवेली पर्यटन विभाग के मानचित्र पर आ गई। पादरी की हवेली महागिरजाघर के मुख्य द्वार का निर्माण फादर जेराम ने वर्ष 2014 में कराया। पटना आनेवाले पर्यटकों के लिए पादरी की हवेली महागिरजाघर आकर्षण का क्रेंद्र है। फादर ललित बताते हैं कि रविवार के अलावा यहां क्रिसमस, नववर्ष, गुड फ्राइडे, ईस्टर जैसे त्योहारों पर भीड़ जुटती है। क्रिसमस के मौके पर पादरी की हवेली महागिरिजाघर की रौनक और बढ़ जाती है।
कैसे पहुंचें पादरी की हवेली गिरिजाघर
पादरी को हवेली महागिरजाघर अशोक राजपथ पर स्थापित है। यहां पहुंचने के लिए पर्यटकों को गांधी मैदान की ऒर से आने में सहूलियत होती है। यह गांधी मैदान से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पादरी की हवेली। यहां आने के लिए पर्यटक अशोक राजपथ होते हुए गायघाट, पश्चिम दरवाजा के रास्ते पादरी की हवेली महागिरजाघर पहुंचते हैं। पादरी की हवेली महागिरजाघर से दो किलोमीटर पहले शक्तिपीठ बड़ी पटनदेवी मंदिर तथा गायघाट गुरुद्वारा हैं। पादरी की हवेली के दो किलोमीटर पूरब विश्व में सिखों के दूसरा तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब तथा सिद्ध पीठ छोटी पटनदेवी व प्राचीन काली मंदिर है। पटना जंक्शन से पादरी की हवेली की दूरी लगभग 11 किलोमीटर, पटना साहिब स्टेशन से लगभग तीन किलोमीटर तथा गुलजारबाग स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी है।
पटना का चौथा सबसे पुराना चर्च है बैप्टिस्ट यूनियन चर्च
पटना के खेतान मार्केट के पास बारी पथ स्थित बैप्टिस्ट यूनियन चर्च पटना का सबसे पुराना चर्च है। चर्च के फादर एमवी थॉमस बताते हैं कि इस चर्च का निर्माण 1880 में हुआ था। एक बार में यहां 500 लोग बैठकर प्रार्थना कर सकते हैं। मिशनरी सोसायटी लंदन के द्वारा इसकी स्थापना की गई थी। सोसायटी द्वारा जमीन खरीद कर इस चर्च की स्थापना की गई थी। 2005 में इस चर्च ने अपने 125 वर्ष पूरे किए। चर्च के जर्जर हो जाने के बाद 2006 में इस चर्च को तोड़कर इसे फिर से बनाया गया। नया भवन 2008 में बनकर तैयार हो गया। आम लोगों के लिए ये चर्च हर रविवार को सुबह 9:30 से सुबह 11:30 तक खुलता है।
1855 में बना था कुर्जी चर्च
कुर्जी मोड़ से पश्चिम संत माइकल स्कूल के बगल में बने कुर्जी चर्च की स्थापना 1855 में हुई थी। ये पटना का दूसरा सबसे पुराना चर्च है। इस चर्च के फादर पायस प्रशांत बताते हैं कि ये चर्च अंग्रेजों के समय का है। इस चर्च की भव्यता देखते ही बनती है।