कैंसर मरीजों के लिए बड़ी खबर, अब मिनटों में होगी बीमारी की पहचान
कैंसर के मरीजों के लिए यह बड़ी खबर है। आइआइटी पटना के शोधार्थियों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे इस बीमारी की पहचान मिनटों में हो जाएगी।
पटना [जेएनएन]। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी पटना) ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे कैंसर की पहचान मिनटों में हो जाएगी। इससे बीमारी का इलाज कम समय में सस्ते में हो सकेगा। इस तकनीक को विकसित कर दूसरी गंभीर बीमारियों के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।
नैनो कण के इस्तेमाल से विकसित की तकनीक
चिकित्सा विज्ञान के लिए यह शोध किया है आइआइटी पटना के रसायन विज्ञान विभाग के शिक्षक प्रो. प्रलय दास और पीएचडी छात्रा सीमा सिंह ने। उन्होंने नैनो कणों का इस्तेमाल कर नई तकनीक विकसित की है। उनके अनुसार कैंसर ग्रसित और सामान्य कोशिकाओं के डीएनए की संरचना में अंतर को ध्यान में रखते हुए नैनो कणों को बनाया गया है। डीएनए की क्षति को कैंसर का एक मुख्य कारण माना गया है।
प्रो. दास के अनुसार क्षतिग्रस्त डीएनए कैंसर का संकेत है, जो कैंसर के शीघ्र निदान में सहायता कर सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर शोध को आगे बढ़ाया गया है।
कॉपर नैनो क्लस्टर और कार्बन डॉट करेंगे काम
इस तकनीक में डीएनए को आधार बनाकर धातु कॉपर से कॉपर नैनो क्लस्टर बनाया गया है। डीएनए पर विकसित ये कॉपर नैनो क्लस्टर यूवी (पराबैंगनी) लाइट के प्रकाश में लाल रंग की रोशनी प्रदर्शित करते हैं। इसी तरह कार्बन से बने कार्बन नैनो कण, जिन्हें कार्बन डॉट नाम दिया गया है, यूवी लाइट के प्रकाश में नीला रंग प्रदर्शित करते हैं। शोध में यह पाया गया है कि क्षतिग्रस्त डीएनए पर कॉपर नैनो क्लस्टर सकारात्मक परिणाम नहीं देता और प्रक्रिया अधूरी रह जाती है।
डैमेज और सामान्य डीएनए में अंतर हो जाता है स्पष्ट
प्रो. प्रलय ने कहा कि इस तकनीक के सत्यापन के लिए कार्बन डॉट को जब इस डीएनए और कॉपर के घोल में डाला गया तो यूवी लाइट में कार्बन डॉट द्वारा प्रकाशित नीले रंग की रोशनी कम हो गई, जबकि सामान्य कोशिकाओं के डीएनए में कार्बन डॉट की रोशनी में अंतर नहीं पड़ा। इस तकनीक में केवल यूवी लाइट से नैनो कणों की रोशनी के अंतर को खुली आंखों से देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस तकनीक के उपयोग से कैंसर का निदान काम समय और काम लागत में किया जा सकेगा।
अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका में जगह
यह शोध इसी माह अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका 'सेंसर्स एंड एक्टूएटर्स बी : केमिकल' में प्रकाशित हुआ है। शोधार्थियों के अनुसार इस तकनीक का उपयोग करके और भी बीमारियों का निदान किया जा सकता है, जिसपर अभी अध्ययन जारी है। प्रो. प्रलय ने कहा कि कार्बन डॉट को आइआइटी के लैब में जरूरत के अनुसार कभी भी तैयार किया जा सकता है।
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विशेषज्ञ भी शोध के हुए मुरीद
आइजीआइएमएस पटना के कैंसर रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार सिंह ने कहा कि अभी कैंसर की शंका होने पर ऊत्तकों की बायोप्सी और कोशिकाओं का एफएनएसी (फाइन निडिल अस्पिरेशन साइटोलोजी) के माध्यम से जांच कराई जाती है। यह काफी जटिल तरीका है और कई दिन में संभावित परिणाम देता है। लेकिन, डीएनए की पहचानने की क्षमता विकसित होते ही कैंसर समेत कई बीमारियों को आसानी से पहचाना जा सकेगा।
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